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(३१) वहीं *पक्ष वसु-शर-शशि-ईसा चतुर्मास्य औ विता दिया, चतुर्मास्य जाने पर अकबर से जा फिर संयोग किया। वहां सुनाया तब मुनिवरने उन्हें धर्म उपदेश उदार, पन,हाथी,घोड़े, रथ अकबर देने लगा उन्हें इसबार ॥
(३२) हरिविजय जी ने पर सादर उनको भी न किया स्वीकार, बह्वाग्रह के बाद दान वर मांगे निम्न लिखित अनुसार । "कैदी गण को छोड़ो करदो पिंजड़ों के पक्षी स्वच्छन्द, और आठ दिन “पर्युषण" में करो जीवहिंसा सब बंद ।
(३३) देने में बरदान किया अकबर ने भी औदार्योत्कर्ष, शिरोधार्य मुनिवर की आज्ञा तब की अतिशय शीघ्र सहर्ष ।
आठ दिवस ही नहीं किन्तु बारह दिन को की हिंसा बंद, जिस से मुनिवर हीर विजय जी को भी हुआ अमित आनंद।
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