Book Title: Heervijay Suri Jivan Vruttant
Author(s): Kanhaiyalal Jain
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१३] ( ३७ ) सभी धर्म के पन्थ खुले हीं कोई द्वार नहीं हो बंद, धार्मिक विषयों में सारेजन भोगें सुस्वच्छन्द - आनंद | सब भिन्न मतावलंबियों में जो होवे सुखद पुनीत बातें वे सुनते हैं लखते धार्मिक तत्व नवीन अतीत ॥ ( ३८ ) उनका हम बहिरंग न लखते, पढ़ते गूढ़ हृदय के भाव, उनके उत्तम सिद्धान्तों पर अनुभव करते हृदय झुकाव | फिर उनके प्रस्तावों पर कर औचित्या नौचित्य विचार, देते हैं आदेश "उन्हों का अखिल राज्य में हो विस्तार" || ( ३६ ) हीर विजय के चेलोंके निरख कठिन दृढ़ पावन ताप, हृदय झुक गया, यहां बुलाए गये, उपस्थित होने आप | उनकी विनती पर यह हमने किया निजाज्ञा का विस्तारउनके पर्युषण पर्वो हिंसाका होगा न प्रचार || For Private And Personal Use Only

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