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SIGISISISISISISISISISIOISAR A५ तत्त्व दिया SKSISISISISISISISISISISIS अपना काम चला लेते हैं तो बोलने में हमारी जिस शक्ति या उर्जा का ह्रास होता है, उसे बचाकर हम अनजाने में ही अपनी बौद्धिक चेतना, आध्यात्मिक गहराई और गुरुत्तर ध्यान में वृद्धि करते रहते हैं। यह उचित ही कहा है कि कम बोलने बाल व्यक्ति ही किसी भी मामले में सही निर्णय ले पाता है और कम बोलने वाले व्यक्ति की बातों से ही लोग प्रभावित भी होते हैं। कम बोलकर हम अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रख सकते हैं, जो जैन जीवन शैली का एक प्रमुख सिद्धान्त भी है। सम्पूर्ण बातों को देखते हुए सारांश में हम यही कह सकते हैं कि जैन धार्मिक साहित्यों में वर्णित मौन व्रत की मान्यता और व्यापकता प्राचीन काल से ही रही है, पर अपने वर्तमान काल में भी अन्य रीति-रिवाजों और पारम्परिक तीन - त्योहारों में इसकी गणना इसके धार्मिक सामाजिक व्यवहारिक एवं व्यक्तिगत विकास के स्रोत के रुप में की जाती है। जब से आयुर्वेद और चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञों ने मौन रहने के मानसिक एवं शारीरिक महत्वों को बतलाया है, तब से तो यह व्रत इतना लोकप्रिय हो गया है कि इसे स्वाभाविक रुप से हर व्यक्ति अपनाना चाहेगा ।
GROISISISIOISISISISISRMINS ज्ञानधाRANSISISISISISISISISISISISISIS इलाकों को अपने लपेट में ले किया। पर जब आग की लपेटें फैलते-फैलते सेठ सुब्रत के महल तक पहुंची, तो धर्मदेव ने स्वयं वहाँ उपस्थित होकर इस आग से इनके पूरे परिवार और इलाके की रक्षा की। इस दैवीय आर्य के कारण सेठ सुबत की एक बार फिर सबों ने प्रशंसा की और इनके धार्मिक आचरण से प्रेरित हुए। सेठ सुब्रत भी सम्पूर्ण जीवन धर्मार्थ और सामाजिक परोपकार में संगल्न रहे। तीर्थंकर नेमिनाथ ने मुनि सुव्रत की कथा का अन्त करते हुए यह भी बतलाया कि किस प्रकार एक देव ने सेठ की भक्ति और आध्यात्म विवेक की परीक्षा लेने के लिए उसे विभिन्न प्रकार से पीड़ित किया, परन्तु इन सबों से सुब्रत विचलित नहीं हुए और वे गहन ध्यान में चले गए। अन्तः इस देव ने इनके भक्तिभाव की प्रशंसा की तथा वापस अपने लोक चले गए। बाद में सेठ ने अपनी इच्छा से मोक्ष को प्राप्त किया ।
जैन परम्पराओं में मौन ब्रत या मौन एकादशी का जितना वर्णन किया गया है और उसकी महत्ता बतलाई गई है, दूसरे धर्म या पंथ में इसे वैसा महत्त्व नहीं दिया गया है। जैन धर्म के अनुसार शुद्ध और अच्छा वचन को अगर चाँदी माना जाए तो मौन व्रत को सोना समझा जाना चाहिए। इस व्रत की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि मात्र इस व्रत को पालन से ही व्यक्ति ज्ञान और मोक्ष दोनों को प्राप्त कर सकता है। इस व्रत के पालन के लिए कोई विशेष पूजा-पाठ और विधि विधान नहीं करने पड़ते। जैन दर्शन में यह बतलाया गया है कि मौन एकादशी का पालन करने वाला व्यक्ति जीवन में उच्च श्रेणी का आनन्द प्राप्त करता है। यहाँ बार-बार यह दुहराया गया है कि इस दिन किये गये कार्य की ब्यापकता डेढ़ सौ गुण तक बढ़ जाती है।
मौन व्रत या मौन साधना का क्षेत्र बहुत ही विशाल है। इसके पालन किये जाने के काल या अवधि को विषय में अलग-अलग विचार दिये गए हैं। कुछ लोग इसका पालन प्रतिदिन संध्या से अगले दिन सुबह तक करते हैं, तो कुछ सप्ताह में एक दिन जबकि कुछ महीनों के विशेष दिनों में और कई तो ऐसे हैं, जो साल में पन्द्रह दिनों से एक महीने तक मौनव्रत का पालन करते हैं। जहाँ महावीर ने अपनी साधना को बारह वर्षों में नियमित रूप से इसका पालन किया, वहीं आधुनिक काल में महात्मा गांधी, महर्षि अरविन्द और विनोबा भावे जैसे लोगों ने इसके धार्मिक स्वरुप से इतर मौन रहने की परम्परा का अनुसरण अपने जीवन में लम्बे समय तक किया। अब तो विश्व के अधिकांश वैज्ञानिक भी स्वीकार करने लगे हैं कि यदि हम नियमित रूप से मौन रहने की साधतना करते हैं या ब्यर्थ में बोलने से बचते हैं, अथवा से कम बोलकर