Book Title: Gyandhara Tap Tattva Vichar Guru Granth Mahima
Author(s): Gunvant Barvalia
Publisher: Arham Spiritual Centre

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Page 96
________________ SRCISISISIOISISISISISIMINS ज्ञानधाRANSISISISISISISISISISISISISIS गुरु प्रेम का नाता ऐसा भवसागर तिराता है, दृढ श्रद्धा और समर्पण से शिष्य सब कुछ पाता है। गुरु ही परमात्म तत्त्व है, गुरु है साक्षात, गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु पिता-मात । स्नेह से शक्ति बना अनीर, वही समर्पित होता है, प्रसन्नता के इन पुष्पों से, जीवन सुगंधित बन जाता है। जब तक है गुरु प्राण की कृपा, यात्रा पूर्ण हो जाती है, ज्ञान भक्ति की ये पटरी पर शिष्य की गाडी चलती है। भवभ्रमण की इस यात्रा में गुरु मिलना दुर्लभ है, पुन्य कमाया जब किसीने, तो गुरु मिलना सुलभ है। भक्ति ही तो शक्ति है, ये शक्ति मुझमें भर जाए, मुझ अंतर की श्रद्धा भक्ति से आतम परमातम हो जाए । भक्ति ही उल्लास है, भक्ति है मुझ जीवन, रोम-रोम में भक्ति की सरिता बहती रहे हरदम । भक्ति ही तो शक्ति है, भक्ति जीवनधन, भक्ति ही तो मुक्ति है, पाना आनंदधन । भक्ति ही समर्पण है, भक्ति है दर्पण, भक्ति स्व का अर्पण है, भक्ति है तर्पण | भक्ति निर्मल धारा है, भक्ति स्नेह शरण, भक्ति विशुद्ध प्रेम ह, भक्ति निरावरण | अनंत जन्मों केअनंत बंधन में, अनंत बार हम बंधते हैं, पर गुरु शिष्य का अनोखा, बंधन मुक्ति पथ दिखते हैं । तप सम्राट गुरु आप है अवधूत योगी आप, करते हैं जो जप जाप निशदिन पुन्य पाए अमाप । तप सम्राट है गुरु हमारे, आजीवन है मौन लिया, सेवा सम्राट का पद प्रतिष्ठित, सब लोगों ने है दिया। गुरु प्राण की जीवनरेखा योग्य शिष्य को खिच लिया, यही पात्रता थी गुरु में , जीवन चरित को दिखा दिया । G SAGASISISISISISISISISKOISAR तत्त्व दिया REASISISISISISISISISIONSIS जिनकाा है विश्वास गुरु पर और प्रभु से प्यार है, प्रभु की बानी, प्रभु की गरिमा, यही उनका आधार है। आभा फैली है इस धरती पर जिनका उज्जवल इतिहास है, यही हमारे तपसम्राट है, यही हमारा श्वास है । गम खाना, नम जाना, करना नहीं विवाद, निंदा न करना और किसी की, यही है तपसम्राट । सम्यक राह बनाने वाले गुरु है महान, पर जीवन अन्त सुधारने वाले है, सद्गुरु और महान । कर्म वेदनीय आया उदय में, फिर भी गुरुवर रहे सजाग, तप जप और साधना से, छूट गया था पुद्गलों का राग । अंतिम दिन में साधना से कर्म खपाया गुरुवर ने, जीवन था अद्भुत जिनका, जैसा बताया जिनवर ने। देह परसे दृष्टि दृष्टाकर, बन गये आतमज्ञानी, देह और आत्मा की भिन्नता से बन गए सच्चे ज्ञानी । अरिहंत प्रभु की धून सूनकर, अंतिम श्वास लिया गुरुवर ने, मोन भारमें हो अटल रह देह त्याग दिया गुरुवर ने । अस्त हुआ जब तेज सितारा, गोंडल गच्छ बन गया सुना, शोक व्याप्त हुआ शिष्यों में प्राण परिवार पड़ गया सूना । पंचम आरे में प्रतभिा दारे, आप समान नहीं कोई जहां में, धव तारक बनकर रहना गुरु की, जिवन के मजधार में। प्राण परिवार का प्राण गया और शिष्यों का धबकार गया, गोंडल गच्छ नायक था, वह विश्रांति का स्थान गया । शताब्दी वर्ष में श्रद्धा सुमन आपके चरण में धरते हैं, सदगुरु खीले हम जीवन में, यही हरदम मांगते हैं । फूल खिलता है इस जहां में, महक उनकी सदा रहे, सूरज डूब गया अभी जहां पर, रोशनी उनकी सदा रहे । गुरुवर की बस यही कहानी, भूल न सकते उनकी बानी, अब क्या है हम उन्ही गुरु को अंतर में है आहे और आंखों में पानी । ***

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