Book Title: Gnatadharmkathanga Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ५ रैवतकपतवर्णनम्
कीदृश इत्याह — तुङ्गः = अत्युन्नतः, 'गगणतलमणु लिहत सिहरे ' गगनतलमनुलिहच्छिखरः आकाशमदेशमनुस्पृशति शृङ्ग यस्येत्यर्थ 'णाणानिगुच्छगुम्मलयाबलिपरिगए ' नानाविधगु उगुल्मलतारलीपरिगत नानाविधागुच्छादयः परिगताः= सर्वत समुद्भूता यत्र सः, गुच्छगुल्मलता नलीशब्दा. पूर्वं व्याख्याता, 'हसमिगमयूरको चसारसचप वायमयणसाल को इलकुलोत्रवेए 'दसमृगमयूरकोञ्चसारसचक्रवाकमदनसालको क्लिकुलोपपेत इसादि-कोक्लिान्ताना कुलैः वृन्दैः उपपेतः =युक्तः । अत्र - मदनशाल: = सारिका विशेष, अन्ये प्रसिद्धा. । ' अणेगतडकडगविवरउज्झरयपवायभार सिहर पउरे ' अने+तटस्टक वित्ररोज्झर+प्रपातप्राग्भारशिखरमचुरः, अनेके तटाः कटकामेखलाच यत्र स तथा विवराणि = कन्दराथ, उज्झरका:- निर्झराः पर्वतात् पतनशीला जलप्रवाहाथ, प्रपाताः = तटरहितनिराधारस्थानानि च, अथवा प्रपाताः = गर्ताथ, प्राग्भारा : =ईपदवनताः पर्वतभागाथ, शिपौरस्त्य दिग्विभाग में ईशान कोण में रैवतक नाम का एक पर्वत था (तुगे गगणतलम लिहत सिहरे ) यह बहुत ऊँचा था । इस की चोटी आकाश तल को छूती थी ( णाणविहगुच्छ गुम्मलयावलिपरिगए ) नाना प्रकार के गुच्छों से, गुल्मो से लताओं से और वल्लियों से यह सर्व प्रकार से युक्त था । इन गुच्छादि शब्दो का अर्थ पहिले लिखा जा चुका है। (हममिगमयूर कोच मारस चक्कवावमयणसाल कोइरल कुलो
वे ) हम, मृग, मयूर, क्रोंच, सारस, चक्रवाक सारिका - मेना और कोयल इन के सम्रहो से यह उपेत -युक्त था। (अणेग तडक डगविवरउज्झरयपवायफभारमिहरपउरे) अनेक तटों से अनेक कटको ( मेखला ) से, अनेक कढराओं से, अनेक उज्झरको से, निर्झरनों से- पर्वतों से गिरते हुए जल प्रवाहों से, अनेक प्रपातो से - तटरहित निराधारस्थानों से अथवा गर्तो से कुछ कुछ झुके हुए अनेक पर्वत
हे ईशान जेबुभावतः नाभे पर्वत हतो ( तुगे गगणतलमणुलिहतसिहरे ) તે महुन् या हते। तेना शिमरेश भाराने स्पर्शता ता ( णाणाविद्दगुच्छ गुम्मलयाव लिपरिगए ) अने लतना गुरहो, शुभो, बताओो भने पटलीओ થી તે ઢંકાએલા હતા ગુરુ વગેરે શબ્દોના અર્ચા પહેલા સ્પષ્ટ કરવામા આવ્યા જે ( हसमिगमयूर कोंचसारसच कत्रायमायण सालको इललोववेए ) हस, હરણા, મેાર, ક્રોચ, સાતમ, ચકવાડ મેના અને કાયલાના સમૂહોથી તે યુક્ત ते ( अगतडक डगविव र उज्झरयपवायपन्भारसिहर पउरे) मने तटेो भेमला थे। ( उटजे ) मनेऽ ओ भने ४२जे- (अशुभ) पर्वता उपरथी નીચે વહેતા પાણીના પ્રવાહ, અનેક પ્રપાતેા-તટ વગરના નિરાધાર ક્થાને