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गीता दर्शन भाग-44
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च। यह ऐसे ही हुआ, जैसे कोई सोचे कि शेष समय दूसरे काम मय्यर्पित मनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम् ।। ७ ।। करें, घड़ी आधी घड़ी को श्वास ले लें! यह नहीं हो सकता। यह
अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना । असंभव है। परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन् ।। ८ ।। कृष्ण अर्जुन को इसलिए कहते हैं, इसलिए हे अर्जुन, तू सब कविं पुराणमनुशासितारम्
समय में निरंतर मेरा स्मरण कर और युद्ध भी कर। यह स्मरण तेरे अणोरणीयां समनुस्मरेद्यः ।
युद्ध में बाधा नहीं बनेगा। और तू अगर सोचता हो कि प्रभु को सर्वस्य धातास्मचिन्त्यरूपम्
स्मरण करना है, तो जंगल में भाग जाना पड़ेगा, तो गलत सोचता आदित्यवर्णं तमसः परस्तात् ।। ९ ।। | है। तू युद्ध भी कर और स्मरण भी कर। इसलिए हे अर्जुन, तू सब समय में निरंतर मेरा स्मरण कर | इसका अर्थ हुआ, जो व्यक्ति जो कर रहा है, उसे करता रहे,
और युद्ध भी कर । इस प्रकार मेरे में अर्पण किए हुए और स्मरण भी करे। लेकिन कठिनाई मालम पडती है। क्योंकि जब मन-बुद्धि से युक्त हुआ निःसंदेह मेरे को ही प्राप्त होगा। | भी हम स्मरण करेंगे, तब दूसरे काम के करने में बाधा पड़ेगी।
और हे पार्थ, परमेश्वर के ध्यान के अभ्यास रूप योग से चित्त की व्यवस्था ऐसी है कि चित्त की नोक पर एक चीज से युक्त अन्य तरफ न जाने वाले चित्त से निरंतर चिंतन करता ज्यादा एक साथ नहीं हो सकती। जब आप एक बात को स्मरण करते हुआ पुरुष परम दिव्य पुरुष को अर्थात परमेश्वर को ही हैं, तब दूसरी बात से चित्त हट जाता है। दूसरी बात पर लगाते हैं, प्राप्त होता है।
तो पहली बात से हट जाता है। चित्त का स्वभाव एकाग्र होना है। इससे जो पुरुष सर्वज्ञ, अनादि, सबके नियंता, सूक्ष्म से भी __ तो युद्ध करते हुए प्रभु को कैसे स्मरण किया जा सकता है? अति सूक्ष्म, सबके धारण-पोषण करने वाले, अचिंत्यस्वरूप, | | अगर युद्ध करते समय भी कोई राम-राम की धुन लगाए रहे, तो सूर्य के सदृश प्रकाशरूप, अविद्या से अति परे, शुद्ध | या तो उसका मन राम-राम में उलझेगा, और तब युद्ध से छूट सच्चिदानंदघन परमात्मा को स्मरण करता है...। जाएगा; और या युद्ध में उलझेगा, तो राम-राम को भूल जाएगा।
और कृष्ण कहते हैं, अर्जुन, तू दोनों साथ ही साथ कर। तो निश्चित
ही यह स्मरण किसी और तरह का होगा-उसे हम समझ 11 भु का स्मरण या तो थोड़ी देर को हो सकता है। लेकिन लें जिससे युद्ध में कोई बाधा नहीं पड़ेगी। प्र थोड़ी देर को किया हुआ स्मरण प्राणों की गहराई तक परमात्मा का स्मरण या तो उसके नाम के दोहराने से जुड़ जाता
प्रवेश नहीं कर पाता है। सतह ही छती है उससे. है. जो कि सच्चा स्मरण नहीं है। सच्चे स्मरण में नाम की भी अंतस्तल अछूता रह जाता है। श्वास की भांति सतत स्मरण | जरूरत नहीं रह जाती। असल में नाम तो बहाना है स्मरण को रखने चाहिए। श्वास जैसे बीच में बंद हो जाए, तो जीवन से संबंध छूट का। जैसे कोई आदमी बाजार जाता है और कोई चीज लाने की जाता है, ऐसे ही स्मरण का धागा भी क्षणभर को भी छूट जाए, तो | | तैयारी करके जाता है, और भूल न जाए, तो अपने कपड़े में एक परमात्मा से संबंध टूट जाता है। स्मरण श्वास है परमात्मा की तरफ गांठ लगा लेता है। भूल न जाए, इस डर से कपड़े में गांठ लगा व्यक्ति के जीवन से बहती हुई। शरीर से जुड़े रहना हो, तो श्वास | लेता है। भूल न जाए इस डर से, जिसे भूलने का डर है, उसे गांठ चाहिए; प्रभु से जुड़ा रहना हो, तो स्मरण चाहिए।
लगानी पड़ती है। लेकिन जो भूल सकता है, वह बाजार जाकर यह लेकिन हम चौबीस घंटे यदि प्रभु का स्मरण करें, तो और शेष भी भूल सकता है कि गांठ किसलिए लगाई थी। सब काम कब कर पाएंगे? यदि चौबीस घंटे प्रभु का स्मरण ही | | मैंने सुना है कि रूजवेल्ट जब बोलते थे, तो अक्सर भूल जाते करना हो, तो कब करेंगे भोजन, कब सोएंगे, कब जागेंगे; कब | थे और काफी लंबा बोल जाते थे। बीस मिनट बोलना हो, तो साठ दुकान, कब बाजार, कब युद्ध-यह सब कब होगा? इसलिए एक | मिनट बोल जाते, अस्सी मिनट बोल जाते। बड़ी मुश्किल खड़ी हो समझौता आदमी ने खोजा, और वह यह कि और सब काम भी हम | | जाती थी। और जब वे प्रेसिडेंट हुए, तो उनके मित्रों ने कहा, अब करें, घड़ी आधी घड़ी को प्रभु का स्मरण कर लें।
| ऐसी भूल-चूक नहीं चलेगी। तो पहले ही दिन बोलने खड़े हुए, तो
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