Book Title: Gita Darshan Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 254
________________ * गीता दर्शन भाग-44 महात्मानस्तु मां पार्थ दैवी प्रकृतिमाश्रिताः । तो अतीत से हम जी नहीं सकते, क्योंकि अतीत में हमारा कोई भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम् । । १३ ।। अनुभव जीवन का नहीं है। अतीत तो दुख की एक लंबी कथा है। सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढव्रताः । फिर भी हम जीते हैं, तो हमारे जीने की प्रेरणा कहां से आती होगी? नमस्यन्तश्च मां भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते ।। १४ ।। पीछे से तो यह धक्का आता नहीं है। निश्चित ही यह खिंचाव आगे परंतु हे पार्थ, दैवी प्रकृति के आश्रित हुए जो महात्माजन है, से आता होगा। भविष्य हमें खींचता है, और भविष्य के खिंचाव में वे तो मेरे को सब भूतों का सनातन कारण और नाशरहित हम चलते हैं। अतीत के धक्के में नहीं, भविष्य के खिंचाव में, __ अक्षरस्वरूप जानकर अनन्य मन से युक्त हुए | भविष्य के आकर्षण में। भविष्य के आकर्षण का नाम आशा है। निरंतर भजते हैं। __ आशा का अर्थ है, जो कल नहीं हुआ, वह आने वाले कल में और वे दृढ़ निश्चय वाले भक्तजन निरंतर मेरे नाम और । हो सकेगा। जो कल नहीं मिला, वह कल मिलेगा। जो पीछे संभव गुणों का कीर्तन करते हुए तथा मेरी प्राप्ति के लिए यत्न | नहीं हुआ, वह भी आगे संभव हो सकता है। इस संभावना का जो करते हुए, और मेरे को बारंबार नमस्कार करते हुए, सदा मेरे | सपना है, वही हमें जिलाता है। अतीत व्यर्थ गया, कोई हर्ज नहीं; ध्यान में युक्त हुए अनन्य भक्ति से मुझे उपासते हैं। | भविष्य में सार्थकता मिल जाएगी। असफलता लगी हाथ में अब तक, लेकिन कल सफलता के फूल भी खिल सकते हैं। यह संभावना, यह आशा हमें खींचती चली जाती है। आशा के वश हम 1 नुष्य की मूढ़ता के संबंध में थोड़ी बातें और जान लेनी | जीते हैं। 01 जरूरी हैं। क्योंकि उन्हें जानकर ही हम आज के सूत्र ___ उमर खय्याम ने अपने एक गीत की कड़ी में कहा है कि मैंने में प्रवेश कर सकेंगे। तीन लक्षण कृष्ण ने मूढ़ता के | | लोगों को दुख झेलते देखा और फिर भी जीते देखा! लोगों को पीड़ा और कहे हैं. वथा आशा. वथा कर्म और वथा ज्ञान वाले। पाते देखा और फिर भी जीवेषणा से भरा देखा, तो मैं बहत चिंतित इन तीन शब्दों को ठीक से समझ लेना उपयोगी है। क्योंकि व्यर्थ | | हुआ। इतना दुख है कि समस्त मनुष्य-जाति को आत्महत्या कर आशा में जो उलझा हुआ है, वह सार्थक आशा करने में असमर्थ | लेनी चाहिए। दुख इतना है कि जीवन कभी का असंभव हो जाना हो जाता है। व्यर्थ ज्ञान में जो उलझा है, सार्थक ज्ञान की ओर उसकी चाहिए था। लेकिन जीवन असंभव नहीं होता। दुखी से दुखी आंख नहीं उठ पाती। व्यर्थ कर्म में जो लीन है, वह उस कर्म को व्यक्ति भी जीए चला जाता है। खोज ही नहीं पाता, जिसकी खोज से समस्त कर्मों के बंधन से | तो उमर खय्याम ने कहा है कि मैंने पूछा ज्ञानियों से, बुद्धिमानों मुक्ति संभव है। | से, लेकिन कोई उत्तर न पाया। क्योंकि उन ज्ञानियों और बुद्धिमानों व्यर्थ आशा क्या है? और हम सब जिस आशा में जीते हैं, उसमें को भी मैंने दुख में ही पड़े हुए देखा। और उनके दरवाजे पर, उनके हमने कभी कोई सार्थकता पाई है? सभी आशा में जीते हैं। आशा | | मकान पर, मैं जिस दरवाजे से प्रवेश किया, सब चर्चा के बाद उसी के बिना जीना तो कठिन है। आशा के सहारे ही जीते हैं। आशा का | दरवाजे से मुझे वापस आ जाना पड़ा, वही का वही। कोई उत्तर हाथ अर्थ है भविष्य। अतीत तो दुख के अतिरिक्त कुछ भी नहीं दे जाता। | न आया। सब जगह से निराश होकर एक दिन मैंने आकाश से पूछा अपने अतीत को लौटकर देखें, तो दुख का एक समूह, दुख की | कि जमीन पर इतने लोग रह चुके हैं अरबों-अरबों, न मालूम कितने एक राशि मालूम पड़ती है, विफलताओं का एक ढेर, सभी सपनों | कालों से! आकाश, तूने सबको देखा है। सब दुख में जीए। क्या की राख। पीछे लौटकर देखें, तो कोई कणभर को भी आनंद की | तू मुझे बता सकता है कि उनके जीने का राज क्या है? सीक्रेट क्या कोई झलक नहीं दिखाई पड़ती है।। | है? इतना दुख, फिर भी आदमी जीए क्यों चला जाता है? अगर मनुष्य को अतीत के सहारे ही जीना हो, तो मनुष्य इसी क्षण | तो उमर खय्याम ने कहा है, आकाश ने एक ही शब्द उच्चारा, गिर जाए और जी न सके। क्योंकि अतीत में कछ भी तो नहीं है, जो आशा, होप। एक ही छोटा-सा शब्द, आशा। प्रेरणा बने। अतीत में कुछ भी तो नहीं है, जो सहारा बने। अतीत में | आदमी जीए चला जाता है, दौड़े चला जाता है। कोई स्वप्न पूरा कुछ भी तो नहीं है, जो जीवन को आगे ले जाने के लिए गति दे। । हो सकेगा, इसलिए पैरों में गति बनी रहती है, प्राणों में ऊर्जा बनी 1228

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