Book Title: Gita Darshan Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 382
________________ * गीता दर्शन भाग-42 हाथ हट गया। तो या तो हवाई जहाज की गति से घूमते रहो आ जाए। वर्तुलाकार, तो जमीन से बच जाओगे। लेकिन जमीन का कर्षण समय में, कभी आपने खयाल किया कि आपको वर्ष, माह, खींचता ही रहेगा। | जीवन इकट्ठा नहीं मिलता, एक-एक क्षण एक-एक बार मिलता हां, दो सौ मील के पार अगर हम किसी भी चीज को फेंक दें, | है! कभी आपने खयाल किया कि दो क्षण इकडे आपके हाथ में तो फिर जमीन खींचने में असमर्थ हो जाती है। दूसरा नियम शुरू | कभी नहीं होते! एक क्षण, और जब वह छिन जाता है, तभी दूसरा हो गया। जमीन के घेरे के बाहर दो सौ मील की जमीन का फील्ड आपके हाथ में उतरता है। है, एनर्जी फील्ड है। उसके बाहर फिर जमीन नहीं खींचेगी। फिर एक क्षण से ज्यादा आपके हाथ में कभी नहीं होता। कोई आदमी एक छोटा-सा कंकड़ भी छोड़ दो, तो जमीन की ताकत उसे खींचने | | कितनी ही कोशिश करे कि दो क्षण मेरे हाथ में हो जाएं, तो नहीं हो की नहीं है। फिर वह कंकड़ अनंत में घूम सकता है। | सकते। एक ही क्षण हाथ में होता है। जब वह खिसक जाता है हाथ ठीक ऐसे ही, जीवन के आंतरिक नियम भी हैं। जब तक हम | | से, तब दूसरा आता है। अगर आपने रेत से चलती हुई घड़ी देखी क्षणभंगुर के घेरे में ही सब कुछ खोजेंगे, शाश्वत को खोजेंगे, तब | | है, तो एक-एक दाना रेत का गिरता रहता है। बस, एक दाना ही तक हम क्षणभंगुर से खिंचते रहेंगे, टूटते रहेंगे, परेशान होते रहेंगे। गुजरता है छेद से। जब एक गुजर जाता है, तब दूसरा दाना गुजरता वह स्थिर हमें उपलब्ध नहीं होगा, शाश्वत की प्रतीति नहीं होगी। है। दो दाने साथ नहीं गुजरते। एक और दिशा भी है, आदमी के पार। जैसे जमीन के पार दो | समय का भी एक दाना हमें मिलता है, एक क्षण। क्षण समय सौ मील के पार उठने की, ठीक ऐसे ही, आदमी के प्रेम, वस्तुओं | का एटम है, आखिरी कण है। उसके आगे विभाजन. नहीं हो के आकर्षण के पार, परमात्मा के प्रेम की तरफ उठने की भी एक | | सकता। एक क्षण हमें मिलता है। वह खोता है, तो दूसरा हाथ में आंतरिक दिशा है। उस दिशा में उठते ही सारे नियम दूसरे हो जाते | | आता है। हैं। यहां सब क्षणभंगुर है, वहां कुछ भी क्षणभंगुर नहीं है। यहां सब । इसका अर्थ हुआ कि हमारे पास एक क्षण से ज्यादा जिंदगी कभी सुखरहित है, वहां सब दुखरहित है। | नहीं होती! चाहे बच्चा हो, चाहे जवान हो, चाहे बूढ़ा हो; चाहे मैं नहीं कहूंगा कि वहां सुख है। क्योंकि आप नहीं समझ पाएंगे। | गरीब हो, चाहे अमीर हो; चाहे ज्ञानी हो, चाहे अज्ञानी हो-एक • क्योंकि सुख तो आपने जाना नहीं कभी। अगर मैं कहूं, वहां सुख | क्षण से ज्यादा जिंदगी किसी के पास नहीं होती। है, तो आपकी समझ में कुछ भी न आएगा। और अगर आएगा भी, क्षणभंगुर का यह भी अर्थ है कि पूरा जीवन क्षण से ज्यादा हमारे तो वही सुख समझ में आएंगे, जो आप यहां जानना चाह रहे थे। पास नहीं होता। नहीं। मैं कहूंगा, यह संसार सुखरहित है; और वह संसार, | और क्षण कितनी छोटी चीज है आपको पता है? आपको पता परमात्मा का, दुखरहित है। दुखरहित इसलिए कि आप दुख को नहीं होगा। जिसे हम सेकेंड कहते हैं घड़ी में, वह बहुत बड़ा है। भलीभांति जानते हैं। आपका दुख वहां कोई भी नहीं होगा। । बहुत बड़ा है। अब तक समय की ठीक-ठीक जांच-पड़ताल नहीं मावतः, आपका कोई भी सुख वहां नहीं होगा। क्योंकि आपके हो सकी; क्योंकि बड़ा सूक्ष्म मामला है समय का। सब दुख इन्हीं सुखों से पैदा हुए हैं। लेकिन क्षण, आप ऐसा ही समझें, डेमोक्रीट्स या वैशेषिक यह क्षणभंगुर है, वह शाश्वत है। यहां हर चीज क्षण में बदल | भारत के आज से तीन-चार हजार साल पहले परमाणु की जो जाती है, वहां कुछ भी कभी नहीं बदला है। कल्पना करते थे, परमाणु का जो खयाल करते थे, तो उनका निश्चित ही, जहां बदलाहट बिलकुल नहीं है, वहां समय नहीं खयाल था कि परमाणु आखिरी टुकड़ा है, उससे ज्यादा नहीं टूट हो सकता, वहां टाइम नहीं हो सकता। क्योंकि समय तो बदलाहट सकता। लेकिन फिर परमाणु भी टूट गया और अब इलेक्ट्रान हमारे का माध्यम है। जहां भी समय होगा, वहां बदलाहट होगी। जहां | हाथ में है। अब इलेक्ट्रान जो है, वस्तु का आखिरी टुकड़ा है। वह बदलाहट नहीं होगी, वहां समय नहीं होगा। | कितना बड़ा है, यह कहना मुश्किल है; वह कितना छोटा है, यह यहां, जहां हम जीते हैं, वहां हम समय में जीते हैं। समय की | | कहना मुश्किल है। और जो भी बातें कही जाती हैं, वे सब अंदाज प्रक्रिया को हम समझ लें, तो क्षणभंगुर का दूसरा अर्थ समझ में हैं, अनुमान हैं। 356

Loading...

Page Navigation
1 ... 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392