Book Title: Gita Darshan Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 356
________________ *गीता दर्शन भाग-4 हैं। दोनों संयुक्त हैं। मैं आपसे यह कह रहा हूं कि कालाबाजारी करके मंदिर बनाया है, ऐसा नहीं। कुछ भी करिएगा, तो आप पाएंगे कि अशुभ भी साथ में हो रहा है। इस जगत में शुद्ध शुभ नहीं किया जा सकता; शुद्ध अशुभ भी नहीं किया जा सकता। अशुभ करने भी कोई जाए तो शभ होता रहता है. शभ करने भी कोई जाए. तो अशुभ होता रहता है। वे संयुक्त हैं; वे एक ही चीज के दो छोर हैं। विभाजन मन का है; अस्तित्व में कोई विभाजन नहीं है। इसलिए कृष्ण कहते हैं, शुभ-अशुभ दोनों से मुक्त हो जाता है। और उनसे मुक्त हुआ मुझको ही प्राप्त होता है। क्योंकि परमात्मा, अर्थात मुक्ति। इसलिए जिन्होंने मुक्ति को बहुत जोर दिया, उन्होंने परमात्मा शब्द का उपयोग भी नहीं करना चाहा। महावीर ने परमात्मा शब्द का उपयोग नहीं किया। क्योंकि महावीर ने कहा, मुक्ति पर्याप्त है, मोक्ष पर्याप्त है। मोक्ष शब्द काफी है। मुक्त हो गए, सब हो गया। अब और चर्चा छेड़नी उचित नहीं है। लेकिन महावीर के लिए मोक्ष का जो अर्थ है, वही हिंदुओं के लिए, मुसलमानों के लिए, ईश्वर का अर्थ है। ईश्वर का और कोई अर्थ नहीं है, परम मुक्ति, दि अल्टिमेट फ्रीडम। क्योंकि जब तक अहंकार मौजूद है, तब तक मैं कभी मुक्त नहीं हो सकता। क्योंकि अहंकार की सीमाएं हैं, कमजोरियां हैं। अहंकार की सुविधाएं-असुविधाएं हैं। अहंकार कुछ कर सकता है, कुछ नहीं कर सकता। बंधन जारी रहेगा। सीमा बनी रहेगी। सिर्फ परमात्मा ही जब मेरा केंद्र बनता है, मेरी सब सीमाएं गिर जाती हैं। उसके साथ ही मैं मुक्त हो जाता हूं। उसके साथ ही मुक्ति है। वही मक्ति है। आज इतना ही। पांच मिनट बैठेंगे। जल्दी न करेंगे। पांच मिनट कीर्तन में सम्मिलित हों। और बीच में पांच मिनट कोई भी न उठे, अन्यथा बैठे लोगों को तकलीफ होती है।

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