Book Title: Gita Darshan Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 361
________________ * नीति और धर्म * एक तरफ निर्णय लेंगे, एक तरफ निर्णय को तोड़ने का उपाय करते | दुश्मन है, अपने को बदल डालेगा! साधु को यह भय लगा कि चोर रहेंगे। कहीं पहुंचेंगे नहीं। यथार्थ निश्चय का अर्थ हुआ कि पूरे चित्त | के साथ रहने से कहीं मेरी साधुता नष्ट न हो जाए! से लिया गया हो। हसन ने बाद में कहा कि उस दिन मुझे पता चला कि मेरे साधु एक सूफी फकीर हसन एक गांव में आया है। रात आधी हो गई का जो निश्चय था, वह चोर के निश्चय से कमजोर था। वह ज्यादा है, कहीं ठहरने को कोई जगह नहीं है; अजनबी, अपरिचित आदमी दृढ़ निश्चयी था। है। सराय के मालिक ने कहा कि कोई गवाह ले आओ, तब मैं गया, चोर के घर रात रुका। कोई सुबह, भोर होने के पहले चोर ठहरने दूंगा। आया; हसन ने दरवाजा खोला। हसन ने पूछा, कुछ मिला? चोर ने आधी रात, गवाह कहां खोजे? अनजान, अपरिचित गांव है। | हंसते हुए कहा, आज तो नहीं मिला, लेकिन फिर कोशिश करेंगे। कोई पहचान वाला भी नहीं है। परेशान है। एक झाड़ के नीचे सोने | ___ उदास नहीं था, परेशान नहीं था, चिंतित नहीं था; आकर मजे से को जा रहा है कि तब एक आदमी उसे पास से गुजरता हुआ दिखाई | | सो गया! दूसरी रात भी गया। और हसन एक महीने उसके घर में पड़ा। उसने उस आदमी से कहा कि पूरी बस्ती सो गई है; किसी | | रहा, और रोज ऐसा हुआ कि रोज वह खाली हाथ लौटता और को मैं जानता नहीं हूं। क्या आप मेरे लिए थोड़ी सहायता करेंगे कि | हसन उससे पूछता कि कुछ मिला? और वह कहता, आज तो नहीं, चलकर सराय के मालिक को कह दें कि आप मुझे जानते हैं! | लेकिन फिर कोशिश करेंगे! उस आदमी ने कहा—पास आकर हसन को देखा कि फकीर | | फिर बरसों बाद हसन को आत्म-ज्ञान हुआ। दूर उस चोर का है-हसन को कहा कि पहले तो मैं तुम्हें अपना परिचय दे दं, कोई पता भी न था कहां होगा। जिस दिन हसन को आत्म-ज्ञान कि मैं एक चोर हं. और रात में अपने काम पर निकला है। एक हआ. उसने पहला धन्यवाद उस चोर को दिया और परमात्मा से चोरे की गवाही एक साधु के काम पड़ेगी या नहीं, मैं नहीं जानता! | कहा, उस चोर को धन्यवाद! क्योंकि उसके पास ही मैंने यह सीखा सराय का मालिक मेरी बात मानेगा, नहीं मानेगा। मेरी गवाही का | | कि साधारण-सी चोरी करने यह आदमी जाता है और खाली हाथ बहुत मूल्य नहीं हो सकता। लेकिन मैं एक निवेदन करता हूं कि मेरा | लौट आता है; लेकिन उदास नहीं है; थकता नहीं; निश्चय इसका घर खाली है। मैं तो रातभर काम में लगा रहूंगा, तुम आकर सो | टूटता नहीं। कभी ऐसा नहीं कहता कि यह धंधा बेकार है, छोड़ दें; सकते हो। कुछ हाथ नहीं आता! हसन थोड़ा चिंतित हुआ। और उसने कहा कि तुम एक चोर __ और जब मैं परमात्मा को खोजने निकला, उस परम संपदा को होकर भी मुझ पर इतना भरोसा करते हो कि अपने घर में मुझे | खोजने निकला, तो न मालूम कितनी बार ऐसा लगता था कि यह ठहराते हो? | सब बेकार है; कुछ मिलता नहीं। न कोई परमात्मा दिखाई पड़ता चोर ने कहा, जो बरे से बरा हो सकता है, वह मैं करता है। है, न कोई आत्मा का अनुभव होता है। पता नहीं इस सब बकवास अब इससे बुरा और कोई क्या कर सकेगा? चोरी ही करोगे न | में मैं पड़ गया हूं, छोडूं। और जब भी मुझे ऐसा लगता था, तभी ज्यादा से ज्यादा! यह आम अपना काम है। तुम घर आकर रह | मुझे उस चोर का खयाल आता था कि साधारण-सी संपदा को सकते हो। | चुराने जो गया है, उसका निश्चय भी मुझसे ज्यादा है; और मैं परम सराय में जगह नहीं मिली। सराय अच्छे लोगों ने बनाई थी। एक | संपदा को चुराने निकला हूं, तो मेरा निश्चय इतना डांवाडोल है! चोर ने जगह दी! और उसने कहा, अब और बुरा क्या हो सकता | तो जिस दिन उसे ज्ञान हुआ, उसने पहला धन्यवाद उस चोर को है। लेकिन फिर भी हसन डरा कि चोर के घर में रुकना या नहीं | दिया और कहा कि मेरा असली गुरु वही है। हसन के शिष्यों ने रुकना! या झाड़ के नीचे ही सो जाना बेहतर है! | उससे पूछा कि उसके असली गुरु होने का कारण? तो उसने कहा, बाद में हसन ने कहा कि उस दिन मुझे पता चला कि मेरा साधु | | उसका दृढ़ निश्चय! उस चोर से कमजोर था। साधु डरा कि चोर के घर रुकू या न रुकूँ! | दृढ़ निश्चय का अर्थ है कि पूरे प्राण इतने आत्मसात हैं कि चाहे और चोर न डरा कि इस अजनबी आदमी को घर में ठहराऊं या न | | हार हो, चाहे जीत; चाहे सफलता मिले, चाहे असफलता, निर्णय ठहराऊ! चोर को यह भी भय न लगा कि यह साधु है, अपना नहीं बदलेगा। दृढ़ निश्चय का अर्थ है, चाहे असफलता मिले, चाहे 335

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