Book Title: Gita Darshan Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 329
________________ *खोज की सम्यक दिशा लेकिन आदमी की आकांक्षा को खोजें, तो वह जरूर ऐसा धन | | जाते हैं। अगर दो सीढ़ियों पर चढ़ जाते हैं, तो चार पर नीचे उतरना खोजना चाहता है, जो फिर उसका ही हो; और फिर कभी भी ऐसा पड़ता है। वह कीमत चुकानी पड़ती है। न हो कि पराया हो जाए। हर आदमी एक ऐसी संपदा खोजना । एक आदमी अगर एक बड़े पद पर पहुंच जाता है, तो पद पर चाहता है, जो सदा-सदा के लिए शाश्वत उसकी अपनी हो। | पहुंचने के लिए जो बेचैनी और परेशानी उठानी पड़ती है, उसमें परमात्मा के सिवाय ऐसी कोई संपदा हो नहीं सकती, जो छीनी न स्वास्थ्य खो देता है। तब एक दिन देखता है कि सड़क पर एक जा सके। सिर्फ वही है, जो छीना नहीं जा सकता। फकीर जा रहा है, जिसके पास स्वास्थ्य की अपार संपदा है, तब आदमी जब धन खोजता है, तो-तीसरे नंबर पर-भीतर वह मन ईर्ष्या से भर जाता है। एक सीढ़ी पर कोई चढ़ा हुआ है, जहां खालीपन अनुभव करता है, रिक्तता अनुभव करता है; उसे भर वह नीचे पड़ गया है। लेना चाहता है। पूरी जिंदगी दौड़कर भी, धन की राशि लग जाती एक आदमी पद की दौड़ में प्रतिभा को खो देता है। असल में है, भीतर का खालीपन नहीं भरता। लेकिन आदमी खोजता | पद की दौड़ अगर पूरी करनी हो, तो प्रतिभा की जरूरत भी नहीं है। इसीलिए है कि भीतर भर जाए, एक आंतरिक फुलफिलमेंट हो; प्रतिभा हो, तो खतरा है। उतनी दौड़ में जाना मुश्किल होगा। एक एक भीतर तप्ति हो जाए, भरापन आ जाए: ऐसी कोई कमी न | गहरी मूढ़ता चाहिए, तो पद की दौड़ में आदमी अंधा होकर लग मालूम पड़े, कोई अभाव न मालूम पड़े; संतुष्ट हो जाए भीतर, | जाता है। वह योग्यता है। प्रतिभा खो देता है। इधर प्रतिभा खो जाती तृप्ति आ जाए; क्षणभर को भी ऐसा न लगे कि मुझे कुछ और है, जिस दिन पद पर पहुंचता है, उस दिन पाता है कि चारों ओर चाहिए। यह तीसरी बात है। | प्रतिभा के दीए जल रहे हैं, और सीढ़ियों में वह पिछड़ गया है। आदमी धन इसलिए खोजता है कि ऐसी अवस्था आ जाए कि जिंदगी अनेक सीढ़ियां हैं। अगर कोई एक सीढ़ी पर चढ़ता है, कुछ उसे मांगने को न बचे, कुछ चाहने को न बचे; ऐसा न रहे उसे | दूसरों पर नीचे उतर जाता है। और किसी भी सीढ़ी पर कितना भी कि फलां चीज मेरे पास नहीं है; अभाव न खटके, खालीपन न चढ़ जाए, फिर भी पाता है कि उससे भी ऊपर सीढ़ियों पर लोग खटके; सब मेरे पास है, ऐसी तृप्ति हो। लेकिन कितना ही धन | चढ़े हुए हैं! मिल जाए, ऐसी तृप्ति होती नहीं। ऐसी तृप्ति तो केवल उसी को | लेकिन आदमी की आकांक्षा सही है। आदमी चाहता है ऐसी होती है, जिसे परमात्मा का धन मिल जाता है। अवस्था, जहां वह किसी से नीचा न रह जाए। तो धन की भी खोज कितनी ही गलत हो, दिशा कितनी ही भ्रांत सिवाय परमात्मा को पाए और कोई उपाय नहीं है। हो, आकांक्षा बिलकुल सही है। वह जो भीतर बीज है, वह लेकिन एक मजे की बात है। आदमी चाहता है कि मैं किसी से बिलकुल सही है। मार्ग चाहे अंकुर का कितना ही विकृत हो जाए, नीचे न रह जाऊं, इसलिए दूसरों को नीचा करने में लग जाता है! लेकिन उसकी अनजानी खोज बिलकुल प्रामाणिक है। पर उसे पता नहीं है कि जो वह कर रहा है, वही सारे लोग भी कर एक आदमी पद चाहता है। पद चाहता है तीन कारणों से, किसी | रहे हैं! मैं एक आदमी हूं; तीन अरब आदमी जमीन पर हैं। मैं भी से हीन न मालूम पडूं, किसी से नीचा न मालूम पडूं। लेकिन कितना | इस कोशिश में लगा हूं कि किसी से नीचे न रह जाऊं। और इसके ही कोई पद खोजे, सदा कोई न कोई आगे मौजूद रहता है। अब | | लिए दूसरों को नीचा करने में लगा है। तीन अरब आदमी, इसी तक ऐसा एक भी आदमी किसी पद पर नहीं पहुंच पाया, जहां | कोशिश में वे भी लगे हैं। वे भी दूसरों को नीचा करने में लगे हैं, जाकर वह कह सके, अब मेरे आगे कोई भी नहीं है। कुछ भी हो | ताकि वे ऊपर हो जाएं। एक-एक आदमी तीन-तीन अरब जाए, कितनी ही बड़ी सीढ़ी चढ़ जाए, जितनी बड़ी सीढ़ी चढ़ता है, | | आदमियों के खिलाफ लड़ रहा है! हारेगा नहीं, तो क्या होगा? तीन पाता है कि आगे और सीढ़ियों पर लोग पहले से चढ़े हुए हैं। | अरब आदमी मुझे नीचा करने में लगे हैं; मैं तीन अरब आदमियों और ऐसा सभी को अनुभव होता है। अनुभव होने के कई | को नीचा करने में लगा हूं! एक पागलों की भीड़ है, जिसमें कोई जटिल कारण हैं। एक तो जिंदगी इकहरी सीढ़ी नहीं है, अनेक कहीं पहुंच नहीं सकता। सीढ़ियों का जोड़ है। अगर आप एक सीढ़ी पर चढ़ जाते हैं, तो | - लाओत्से ने कहा है कि मैंने तो शांति का सूत्र इसी में जाना कि अनेक बार उसी में चढ़ने की वजह से दूसरी सीढ़ी पर नीचे उतर उस जगह बैठ जाओ, जिससे नीची कोई जगह न हो, अन्यथा उठाए 303

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