Book Title: Gita Darshan Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 349
________________ * कर्ताभाव का अर्पण मेरी आत्मा गंदी है, इससे आपको मतलब नहीं; मैं नहा-धोकर, वासनारहित हो। साफ कपड़े पहनकर आपके पास आऊं, पर्याप्त है। क्योंकि ___ तो भक्त सरल मामला नहीं है। लेकिन सरल इसलिए दिखाई आपका जो मिलन होने वाला है, वह मेरे शरीर से और मेरे कपड़ों | पड़ने लगा कि भक्ति से हमने जो कुछ जोड़ रखा है, वह सब ऐसा से होने वाला है, मेरी आत्मा से नहीं। अगर मैं यह कहूं कि मेरी | बचकाना है, ऐसा चाइल्डिश, जुवेनाइल है, कि लगता है कि सरल आत्मा बहुत पवित्र है, लेकिन मैं सब गंदगी ओढ़कर आपके पास है! एक आदमी माला फेर रहा है, तो हम सोचते हैं, भक्त हो गया। आऊंगा; तो आप कहेंगे, आत्मा आप जानें, कृपा करके यह गंदगी एक आदमी जाकर मंदिर की घंटी बजा लेता है, हम सोचते हैं, मेरे पास न लाएं। भक्त हो गया। एक आदमी दीया भगवान के सामने घुमा लेता है, समाज का अर्थ है, हमारे बाहरी व्यक्तित्व के मिलन का स्थल। | तो हम सोचते हैं, भक्त हो गया। समाज को इससे चिंता है कि आपका बाहर का पहलू ठीक हो जाए, ___ अगर भक्ति इतनी ही है, तो मैं आपसे कहता हूं, भक्ति से फिर भीतर की आप जानें। वह आपकी निजी समस्या है। | आप कभी पहुंच ही न सकेंगे। इतना सस्ता यह रास्ता नहीं हो लेकिन धर्म इतने पर नहीं रुकता। धर्म कहता है कि असली, | | सकता। भक्ति अति जटिल है, अति कठिन है। निजी समस्या को ही हल करना है। अच्छा है कि आप अच्छे | इसलिए दुनिया में अगर हम ठीक से खोजने जाएं, तो ज्ञानी आदमी हैं, बुरे नहीं हैं। बेहतर है। लेकिन धर्म कहता है, यह पर्याप्त जितनी बड़ी मात्रा में हुए हैं, उतनी बड़ी मात्रा में भक्त नहीं हुए हैं। नहीं है। जरूरी है, पर्याप्त नहीं है। अच्छे हैं, बहुत अच्छा है। | यह सुनकर आपको हैरानी होगी। इसलिए ज्ञानियों के जगत में जो लेकिन अच्छे पर ही रुक गए, तो धोखे में हैं। अच्छे से भी पार | | नाम हैं ऊंचाई पर, उतनी ऊंचाई पर भक्तों के नाम आप खोजकर जाना होगा। न बता सकेंगे। बुद्ध हैं, कि महावीर हैं, कि शंकर हैं, कि 'शुद्ध बुद्धि का अर्थ है, जहां न वासना रही, न विचार रहा; जहां याज्ञवल्क्य हैं—इनकी कोटि में, इस ज्वलंत कोटि में भक्तों को दोनों खो गए। तब सिर्फ शुद्ध चेतना रह जाती है। रखना मुश्किल पड़ जाएगा। और उसका कारण यह है कि भक्त तो एक शर्त तो कृष्ण ने कही कि शुद्ध बुद्धि हो और दूसरी बात | होना दुरूह है, कठिन है। दोहरी शर्त है वहां। कही कि निष्काम प्रेमी हो। प्रेम भी उसका निष्काम हो। __ और बुद्धि को शुद्ध कर लेना आसान भी है, हृदय को शुद्ध करना बुद्धि अशुद्ध होती है विचार से प्रेम अशुद्ध हो जाता है वासना और भी जटिल है; क्योंकि बुद्धि ऊपर है, हृदय गहरे में है। और से, कामना से। ऐसा समझें कि बुद्धि से अर्थ है आपके चिंतन की | | बुद्धि तो मैनिपुलेट की जा सकती है; हाथ से उसमें कुछ किया जा क्षमता का, और प्रेम से अर्थ है आपके हृदय के अनुभव की क्षमता | | सकता है। लेकिन हृदय तो इतना अपना मालूम पड़ता है कि उसमें का। आपका मस्तिष्क अशुद्ध होता है विचार से, और आपका | दूरी ही नहीं होती है; उसमें कुछ करना बहुत मुश्किल हो जाता है। हृदय अशुद्ध होता है कामना से, वासना से। और जब तक हृदय इसे ऐसा समझें। अगर मैं आपसे कहूं कि फलां व्यक्ति को आप और बुद्धि दोनों शुद्ध न हों, तब तक भक्त का जन्म नहीं होता। तब | | कोशिश करें प्रेम करने की, तब आपको पता चलेगा कि कितना तक भक्त का जन्म नहीं होता। | कठिन मामला है! कैसे कोशिश करेंगे प्रेम करने की? क्या कभी इसलिए मैं निरंतर कहता हूं कि भक्त को आप ऐसा मत समझना | | भी कोई कोशिश से प्रेम कर पाया है? कौन कर पाया है कोशिश कि वह सरल बात है। ऐसा लोग अक्सर समझाते हुए सुने जाते हैं से प्रेम कभी? जितनी कोशिश करेंगे, उतना ही पाएंगे, प्रेम कि भक्ति बड़ी सरल चीज है; ज्ञान तो बड़ा कठिन है। | मुश्किल हुआ चला जाता है! लेकिन ध्यान रहे, ज्ञान की एक ही शर्त है कि बुद्धि शुद्ध हो। ___ आपसे बुद्धि का कोई भी सवाल हल करवाना हो, कोशिश से और भक्ति की शर्त दोहरी है, कि बुद्धि शुद्ध हो और हृदय निष्काम | | हल हो सकता है। कोई भी विचार कितना ही जटिल हो, कोशिश हो। इसलिए जो आपको समझाते हैं कि भक्ति सरल है, मैं नहीं | | से हल हो सकता है। किसी भी विचार को समझने में कितनी ही समझ पाता कि वे कैसे समझाते हैं? क्योंकि बुद्धि तो शुद्ध हो ही, | | अड़चन हो, कोशिश से हल हो सकती है। प्रेम कोशिश से हल जितनी ज्ञान मांग करता है, उतनी तो मांग भक्ति करती ही है, उससे नहीं होता; प्रयत्न बिलकुल ही व्यर्थ है। थोड़ी ज्यादा मांग भी करती है। हृदय भी, प्रेम की क्षमता भी । इसलिए प्रेमी को हम अंधा कहते हैं। इसीलिए कहते हैं कि है 323

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