Book Title: Gita Darshan Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 351
________________ ६ कर्ताभाव का अर्पण शर्त ऐसी है, जैसे मैं आपसे कहूं, नदी से तो गुजरें, लेकिन पानी | लगता है कि जब भी हम प्रेम में पड़ेंगे, तो कामवासना पीछे आ में पैर न छुए; आग से तो गुजर जाएं, लेकिन जलन जरा भी न हो। जाएगी। आप कहेंगे, बिना आग से गुजरे जलन नहीं होती, तो मैं बिना आग एक और भी प्रेम है, जो वासना की छाया की तरह नहीं जाना से गुजर जाऊं, जलन नहीं होगी। लेकिन शर्त यह है, आग से गुजरें जाता, वरन एक अंतर्निहित दशा की तरह जाना जाता है। और जलन न हो। इसे थोड़ा समझ लें। ध्यान रहे, कोई अगर चाहे तो प्रेम को छोड़ दे, तो वासना छूट जब भी मैं कहता हूं प्रेम, तो मेरा मतलब होता है किसी से। और जाती है। यह कठिनाई है। अगर आग में न जाएं, तो जलने का कोई जब भी मैं कहता हूं ज्ञान, तो मतलब होता है मुझमें। और जब भी सवाल नहीं है। अगर पानी में न जाएं, तो भीगने का कोई सवाल | | मैं कहता हूं प्रेम, तब तीर किसी और की तरफ झुक जाता है, इशारा नहीं है। बहुत लोग हैं, जो प्रेम से इसीलिए भयभीत हो जाते हैं कि किसी और की तरफ हो जाता है। जब भी मैं कहता हूं ज्ञान, तो दूसरे प्रेम में गए, तो जले; भीगे; प्रेम में गए, तो वासना रहेगी ही। की तरफ तीर नहीं जाता; ज्ञान होता है मेरा। तो जब भी मैं कहता हूं इसलिए जो ज्ञान की दिशा में चलने वाले लोग रहे, उन्होंने कहा, प्रेम, तब दूसरा भीतर प्रवेश कर गया; प्रेम शब्द कहते ही मैं प्रेम से सावधान रहना। प्रेम में पड़ना ही मत। सावधान करने का अकेला नहीं रह जाता, दूसरा आ जाता है। कारण इतना ही था कि आशा बहुत कम है कि प्रेम में पड़े और | | इसका मतलब हुआ कि हमारा समस्त प्रेम का अनुभव किसी वासना में न पड़ जाएं। प्रेम और वासना के बीच इतना गहरा संबंध | | आंतरिक अवस्था का अनुभव नहीं है, केवल व्यक्तियों के बीच जो है कि प्रेम में गए, तो वासना में चले ही जाएंगे। इसलिए ज्ञानियों | वासना के संबंध हैं, उनका ही अनुभव है। इसी वजह से प्रेम शब्द ने कहा है कि वासना से तो बचना जरूरी है। प्रेम से बच जाना, तो का उपयोग करते ही...अगर मैं अपने कमरे में अकेला बैठा हूं, वासना से बच जाओगे। और आप आएं, और मैं कहूं कि मैं ज्ञान में था, तो आप कमरे में भक्त की शर्त बडी कठिन है। कष्ण कहते हैं. प्रेम में तो जाना. चारों तरफ नहीं देखेंगे कि कोई मौजद है या नहीं। अगर मैं कहं, मैं वासना से बच जाना; आग में चलना, जलना मत; पानी में उतरना, बड़े प्रेम में था, तो आप चारों तरफ कमरे के देखेंगे कि कोई मौजद भीगना मत। | है! आप अकेले प्रेम में थे! तो फिर शायद सोचेंगे, आंख बंद करके इसलिए मैं कहता हूं, भक्ति थोड़ी कठिन बात है। लेकिन बड़ी | | कोई कल्पना कर रहे होंगे। लेकिन दूसरा जरूरी मालूम पड़ता है, क्रांति भी है। चाहे कल्पना में ही सही। अब इसे हम थोड़ा समझें कि प्रेम अनिवार्य रूप से वासना क्यों | जिस प्रेम की कृष्ण बात कर रहे हैं, वह ज्ञान की तरह ही बात बन जाता है? क्या यह अनिवार्यता प्रेम में है कि प्रेम वासना बनेगा | | है, ध्यान की तरह ही बात है। दूसरे से उसका संबंध नहीं है; स्वयं का ही आविर्भाव है। इसे आप ऐसा समझें कि जैसे ध्यान की ___ अगर ऐसा अनिवार्य हो, तो फिर कृष्ण यह शर्त नहीं लगाएंगे। | साधना होती है, ऐसे ही प्रेम की साधना होती है। यह अनिवार्यता प्रेम में नहीं है। यह अनिवार्यता कहीं मनुष्य की बैठे हैं कमरे में, प्रेम अनुभव करें; अपने चारों तरफ प्रेम बुनियादी समझ की भूल का हिस्सा है। फैलता हुआ अनुभव करें; भीतर प्रेम भरा हुआ अनुभव करें। असल में जब भी हम प्रेम करते हैं, तो वासना के कारण ही करते | | लोक-लोकांतर तक आपका प्रेम फैल जाए, लेकिन दूसरे की हैं। वासना पहले आ जाती है, प्रेम पीछे आता है। वासना पहले अपेक्षा को मौजूद न करें। एक घंटा रोज दूसरे की अपेक्षा को बीच हमारे द्वार को खटखटा जाती है और तब प्रेम प्रवेश करता है। हमने में न लाएं। जो भी प्रेम जाना है, वह वासना के पीछे जाना है। हमने जो भी प्रेम ___ प्रेम दूसरे से संबंध नहीं, वरन मेरे भीतर एक घटना है, जो चारों जाना है, वह वासना की छाया की तरह जाना है। इसलिए हमारे प्रेम तरफ फैलती चली जाती है, जैसे दीए से प्रकाश फैलता है। ऐसा के अनुभव में वासना छा गई है। और हमने जन्मों-जन्मों तक जब | बैठ जाएं घंटेभर। और मुझसे प्रेम फैल रहा है चारों तरफ। कमरे भी प्रेम जाना है, वासना के पीछे जाना है। हमारा प्रेम जो है, वह की दीवालों को पार करके नगर की दीवालों में भर गया है। और हमारी कामवासना की छाया से ज्यादा नहीं है। इसलिए हमें डर नगर की दीवालों को पार करके राष्ट्र, और राष्ट्र की दीवालों को ही? 1325

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