Book Title: Gita Darshan Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 345
________________ * कर्ताभाव का अर्पण * कि मैं इतने लाख दफा राम का नाम स्मरण कर चुका हूं। वह हिसाब | | ऐसे देखता है, जैसे दूसरा आदमी कीड़ा-मकोड़ा हो! रखे है, कापी बनाए हुए है! सारा हिसाब है कि कितने लाख दफा | | यह तो बुरे आदमी से भी बुरा होना हो गया। यह तो बुराई गहरी उसने राम का नाम लिया। यह आदमी राम के पास भी जाएगा, तो हो गई। और बुरे आदमी ने दूसरों के साथ बुरा किया, इस भले कापी लेकर जाने वाला है। और कहेगा कि याद है? कितना मैं | आदमी ने अपने साथ भी बुरा कर लिया है। और बुरे आदमी ने चिल्लाया! कितने मैंने नाम लिए! यह सब हिसाब मेरे साथ है। | दूसरों को धोखा दिया था, इस भले आदमी ने अपने को भी धोखा लोग प्रेम में भी गणित को ले आते हैं। लोग प्रार्थना में भी | | दे लिया है। हिसाब, बही-खाते रख लेते हैं! सब व्यर्थ हो गया। क्योंकि यह __पूजा और प्रार्थना करने वाले का भी बड़ा सात्विक अहंकार हिसाब-किताब जो रख रहा है, वह अहंकार है। यह जो कह रहा | मजबूत हो जाता है। और ध्यान रहे, जब अहंकार सात्विक होता है, है कि मैंने इतने नाम लिए, अब यह नाम भी संपत्ति हो गई। अब तो बहुत जहरीला हो जाता है। ये करोड़ों सिक्के हो गए मेरे पास। अब इन करोड़ों सिक्कों के साथ । कृष्ण कह रहे हैं कि तू सब छोड़ दे। बुरा-भला सब मुझ पर छोड़ मैं उसके पास पहुंचूंगा। | दे। तू जो भी कर रहा है, उसमें तू करने वाला मत रह। तू जान कि कीर्कगार्ड ने. एक ईसाई फकीर ने और एक अदभुत विचारक ने | मैं तेरे भीतर से कर रहा हूं। तू ऐसा अर्पित हो जा। अपनी डायरी में एक वक्तव्य लिखा है। उसने लिखा है कि मैंने सब | । कर्म छोड़ने को वे नहीं कह रहे हैं। इसलिए कृष्ण ने जो बात उसके लिए चढ़ा दिया; समस्त बुरे कर्म छोड़ दिए; सब पापों से | | कही है, वह अति क्रांतिकारी है। कर्म छुड़ा लेने में बहुत कठिनाई अपने को बचा लिया; सब तरह की अनीति से अपने को दूर कर नहीं है। आदमी कर्म छोड़कर जंगल जा सकता है। लेकिन कर्ता लिया। एक दुर्गुण मुझ में न रहा। और तब मुझे एक दिन ऐसा पता | | छुड़ा लेना असली कठिनाई है। और आदमी जंगल भी चला जाए चला कि मुझ में गुण ही गुण हैं! और मैंने पाया कि मेरे भीतर | | कर्म को छोड़कर, तो यह अकड़ साथ चली जाती है कि मैं सब अहंकार लपट की भांति खड़ा हो गया है। और तब मुझे पता चला | कर्मों को छोड़कर चला आया हूं। कर्ता पीछे साथ चला जाता है। कि ये मेरे गुण भी मेरे अहंकार का ही भोजन बन गए हैं। यह मेरा __ कर्म तो बस्ती में छूट जाएंगे, कर्ता नहीं छूटेगा। कर्ता आपके सदाचरण भी, यह मेरा नैतिक जीवन भी, मेरे अहंकार का ही पोषण | साथ जाएगा। वह आपकी भीतरी दशा है। आप मकान छोड़ देंगे, बन गया है। और उस दिन मैं रातभर रोया, उसने लिखा है, कि हे घर-दुकान छोड़ देंगे, काम-धाम छोड़ देंगे, सब तरफ से निवृत्त परमात्मा, इससे तो बेहतर था कि मैं पापी था, बुरा था; कम से कम | होकर भाग जाएंगे जंगल में, लेकिन वह जो भीतर कर्ता बैठा है, यह अहंकार तो खड़ा नहीं होता था। बुराई से मैं छूट गया, अब | वह इस निवृत्ति के ऊपर भी सवार हो जाएगा। निवृत्ति भी उसी का भलाई से तू मुझे छुड़ा। यह भलाई नया कारागृह बन गई। वाहन बन जाएगी। और जाकर जंगल में, वह अकड़ से कहेगा कि और ध्यान रहे, बुरे आदमी के पास जो अहंकार होता है, दीन | सब छोड़ चुका हूं। यह छोड़ना कर्म हो जाएगा। यह छोड़ना कर्म होता है; और भले आदमी के पास जो अहंकार होता है, बड़ा सबल | हो जाएगा, यह त्यागना कर्म हो जाएगा। और अहंकार इससे भी हो जाता है। इसलिए बुरे आदमी की बुराइयां बाहर हैं और भले भर लेता है। आदमी की बुराई भीतर हो जाती है। | इसलिए कृष्ण ने कहा, कर्म छोड़कर कुछ भी न होगा अर्जुन, बरा आदमी चोरी करता है, बेईमानी करता है. धोखा देता है। उसकी बराइयां बाहर हैं। भला आदमी न चोरी करता. न बेईमानी | यह दुरूह है, यह अति कठिन है। क्योंकि कर्म तो बाहर हैं। और करता। समय पर पूजा करता है, प्रार्थना करता है। नियम का पालन | | जो भी बाहर है, उसको पकड़ना भी आसान है, छोड़ना भी आसान करता है। मर्यादा से जीता है। बाहर उसकी कोई बुराई नहीं है। | है। जो भीतर है, उसे पकड़ने में भी जन्मों-जन्मों लग जाते हैं; उसे लेकिन सब के मुकाबले भीतर एक बुराई खड़ी हो जाती है कि मैं | छोड़ना भी उतना ही कठिन है। भला आदमी हूं। जहां भी वह चलता है, वह भले आदमी का | मेरे हाथ में कोई चीज है, उसे मैं छोड़ दं, आसान है। मेरी अहंकार साथ चलता है। इसलिए भला आदमी जब दूसरे की तरफ खोपड़ी में जब कोई चीज होती है, तो छोड़नी मुश्किल हो जाती है। देखता है तो गहरे में छान-बीन करना, तो पता चलेगा—वह . खोपड़ी में हो, उसे भी छोड़ा जा सकता है। लेकिन जो मेरी चेतना ताको 319

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