Book Title: Gita Darshan Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 316
________________ गीता दर्शन भाग-4 लेकिन जो यश को चाहेगा, उसे अपयश मिलेगा ही। वह उसकी छाया है। जो लाभ चाहेगा, वह हानि में पड़ेगा ही। वह उसकी छाया है। जो जीवन के प्रति मोहित होगा, मृत्यु उसे भयभीत करेगी ही । वह उसकी छाया है। अगर मृत्यु के भय से बचना है, तो जीवन के मोह से बचना पड़ेगा। और अगर दुख में गिरने से बचना है, तो सुख के आकर्षण को छोड़ देना पड़ेगा। सुख का आकर्षण जो छोड़ देता है, उसे फिर कोई दुखी नहीं कर सकता। और यश की जिसकी आकांक्षा न रही, उसका अपमान करना असंभव है। मेरा अपमान मैं ही करवा सकता हूं, आप नहीं कर सकते हैं। अगर मैं मान की आकांक्षा करूं, तो अपमान करवा सकता हूं। अगर मैं यश चाहूं, तो अपयश मेरा किया जा सकता है। अगर मैं प्रशंसा चाहूं, तो मुझे गाली दी जा सकती है। लेकिन अगर मैं प्रशंसा ही न चाहूं, तो आपकी गाली बिलकुल ही व्यर्थ हो जाती है। उसका कोई मूल्य ही नहीं रह जाता। क्योंकि जिसे मैं चाहता ही नहीं, उसको मिटाने के प्रयोजन से आप मिटा भी क्या पाएंगे? अगर मैं आदर चाहूं, तो निरादर के लिए मुझे तैयार होना चाहिए। और अगर निरादर की मेरी तैयारी न हो, तो आदर का मुझे खयाल छोड़ देना चाहिए। फिर कोई भी निरादर कर नहीं सकता। कोई उपाय नहीं है। मैं बाहर हो गया। तो कृष्ण कहते हैं कि जो लोग सुख की कामना से धर्म की साधना भी लगते हैं, वे अपने को कितना ही धोखा दे लें, वापस लौट आएंगे। कितने ही बड़े सुख को पा लें, लेकिन चुक जाएगा पुण्य । पाते ही चुक जाता है। कीमत वसूल हो गई। किया हुआ श्रम पूरा गया। फल मिल गया हाथ में; फिर स्वर्ग भी बासा हो जाता है। सुना है मैंने कि स्वर्ग के देवी-देवता भी पृथ्वी के लिए तरसने लगते हैं। कथाएं हैं, पुराणों में कथाएं हैं कि स्वर्ग के देवता अप्सराओं से ऊब जाते हैं, बुरी तरह ऊब जाते हैं। पृथ्वी की स्त्रियों की कामना करने लगते हैं। पुरूरवा की कथा है कि स्वर्ग से आज्ञा मांगी उसने कि मुझे पृथ्वी पर जाने दें, ताकि मैं पृथ्वी की किसी स्त्री को प्रेम कर सकूं ! क्या हुआ होगा पुरूरवा को? यहां पृथ्वी पर तो अप्सराओं के लिए लोग दीवाने हैं। यहां भी कोशिश करते हैं स्त्रियों को अप्सराओं जैसी सजाने की कोशिश असफल जाती है! लेकिन पुरूरवा को क्या हुआ? वह अप्सराओं को छोड़कर यहां पृथ्वी पर किसी स्त्री से प्रेम करने आना चाहता है! कोई स्त्री स्वर्ग में - कथाएं हैं - बूढ़ी नहीं होती ! सोलह वर्ष पर ही उम्र ठहर जाती | है ! तो आदमी तो कितना चाहता है, कितनी कविताएं लिखता है, और स्त्रियां तो कितनी कोशिश करती हैं। सोलह साल के बाद उनकी उम्र बढ़ती ही नहीं! बहुत कोशिश करती हैं। फिर भी, यहां तो सब बढ़ ही जाती है। वहां तो बढ़ती ही नहीं! पुरूरवा क्यों ऊब गया होगा ? यह सोलह साल पर अगर सबकी उम्र ठहर जाए, तो भी उबाने वाली हो जाएगी; यह भी घबड़ाने वाला हो जाएगा। और जो फूल कुम्हलाता ही न हो, वह प्लास्टिक का मालूम पड़ने लगेगा। जो फूल कुम्हलाता ही न हो, वह प्लास्टिक का मालूम पड़ने लगेगा। तो अप्सराएं बिलकुल प्लास्टिक की मालूम पड़ी होंगी, कागजी मालूम पड़ी होंगी । न कुम्हलाती हैं; न पसीना आता है; न उम्र ढलती है; न कभी आंख से आंसू बहते हैं; होंठों की मुस्कुराहट है | कि ऐसी बनी रहती है, जैसी कि नेताओं पर चिपकी रहती है ! वह चिपकी ही रहती है। वह कभी हटती ही नहीं । अप्सराएं सोती भी हैं, तो भी होंठ मुस्कुराते रहते हैं । यह मुस्कुराहट भी घबड़ाने वाली हो जाएगी, बेस्वाद हो जाएगी। पुरूरवा घबड़ा गया। उसने कहा कि मुझे आज्ञा दो, मैं पृथ्वी पर जाऊं, किसी स्त्री को प्रेम करूं, जो बूढ़ी भी होती हो, जो रोती भी हो; जिसके शरीर पर पसीना भी आ जाता हो; जिसकी जिंदगी में | सब उतार-चढ़ाव होते हों। ताकि मुझे कुछ असलियत का अनुभव हो; यहां तो सब कागजी हो गया है। स्वर्ग पाकर वासना तो क्षीण नहीं होगी, वासना नए आयाम पकड़ लेगी, नई दुनियाओं में खोज करने लगेगी, नई जगह तलाश करने लगेगी। और फिर जो स्वर्ग पा लिया है, जो सुख पा लिया है... स्वर्ग का अर्थ है मनोवैज्ञानिक कि जो भी सुख पा लिया है, वह पाते ही क्षीण होना शुरू हो जाता है— पाते ही । जिस शिखर को भी हम पा लेते हैं, पाते से ही उतार शुरू हो जाता है, उतरना शुरू हो जाता है। कृष्ण कहते हैं, लौट आएगा वापस वह व्यक्ति, जिसने सकाम साधना की है। परमात्मा को भी जिसने वासना के माध्यम से चाहा | और मांगा है, उसे सुख तो मिल जाएगा, लेकिन वह लौट आएगा। और ध्यान रखें, सुख को जानकर जब कोई लौटता है, तो महादुख में पड़ जाता है। कभी आपने देखा है, रास्ते से गुजर रहे हैं; अंधेरी रात, सन्नाटा है, अंधेरा है रास्ते पर। फिर एक मोटरगाड़ी पास से गुजर जाती है। तेज प्रकाश आपकी आंख में पड़ता है। 290

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