Book Title: Gita Darshan Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 287
________________ * मैं ओंकार हूं * पहले भी आपको किसी न किसी रूप में होना ही चाहिए, अन्यथा | जानी चाहिए, जो फिर भरी न जा सके। आपका जन्म नहीं हो सकता। जगत एक श्रृंखला है, जगत एक | लेकिन ऐसा नहीं होगा। मेरे होने न होने से इस विराट प्रवाह में कड़ियों का जोड़ है, जिसमें हर कड़ी पीछे की कड़ी से जुड़ी है; और | कहीं भी कोई भनक भी न पड़ेगी। तो फिर मैं अलग हूं और यह हर कड़ी आगे की कड़ी से भी जुड़ी है। जिसे आप जन्म कहते हैं, | | जगत अलग है। और निश्चित ही इस जगत और मेरे बीच जो संबंध वह सिर्फ एक कड़ी की शुरुआत है; पिछली कड़ी पीछे छिपी है। | है, वह मैत्री और प्रेम का नहीं, संघर्ष का और शत्रुता का है। इस और जिसे आप मृत्यु कहते हैं, वह फिर एक कड़ी का अंत है; जगत से मुझे जीतना है, ताकि मैं ज्यादा जी सकू। इस जगत से मुझे लेकिन अगली कड़ी आगे मौजूद है। इस जगत में कोई चीज बचना है, ताकि यह जगत मुझे पीस न डाले। विच्छिन्न नहीं है। जीवन एक सतत श्रृंखला है, एक प्रवाह है। ___ जगत बिलकुल बेरुखा मालूम पड़ता है। वृक्ष के नीचे खड़े हों, अगर ईश्वर को खोजना है, तो प्रवाह को देखना पड़ेगा; और | | वृक्ष ऊपर गिर जाता है! और जरा भी खबर नहीं देता है कि मैं गिर अगर ईश्वर से बचना है, तो व्यक्ति को देखना पड़ेगा। अगर आप | | रहा हूं, हट जाओ! और तूफान आता है, और आप गिर जा सकते व्यक्ति को देखेंगे, तो ईश्वर को खोजना मुश्किल है। हैं। आंधी आपको मिटा दे सकती है। सागर आपको डुबा ले सकता मैं पैदा हुआ, मैं मर जाऊंगा; अगर यही जीवन है, तो इस जगत है। पहाड़ आपको दबा दे सकता है। इस जगत में चारों तरफ में ईश्वर का कोई अनुसंधान नहीं हो सकता। मेरा जन्म भी तब बेबूझ अस्तित्व को आपकी कोई भी चिंता नहीं है। एक शत्रुता है; जगत है, क्योंकि कोई कारण नहीं, एक एक्सिडेंट, एक दुर्घटना मालूम आपको मिटाने पर तुला है। तो आप जगत से संघर्ष करने को तत्पर होती है कि मैं पैदा हुआ; और मेरी मृत्यु भी एक दुर्घटना होगी। इन हो जाएं। दोनों के पार, जगत के अस्तित्व से मेरा क्या संबंध है? जब मैं नहीं। इसलिए पश्चिम ने एक भाषा खोजी है; वह भाषा युद्ध की भाषा था, तब भी जगत था; और जब मैं नहीं रहूंगा, तब भी जगत रहेगा। है, संघर्ष की भाषा है। इसलिए ऐसी किताबें लिखी गई हैं पिछले तो मैं इस जगत से अलग हो गया, मेरे संबंध टूट गए। | पचास वर्षों में। बड रसेल ने भी एक किताब लिखी है; नाम दिया और जब मैं नहीं रहूंगा, तब भी फूल खिलते रहेंगे। और जब मैं है, कांक्वेस्ट आफ नेचर, प्रकृति की विजय! नहीं रहंगा, तब भी वसंत आएगा और पक्षी गीत गाते रहेंगे। और विजय की भाषा ही संघर्ष और यद्ध की भाषा है। हम उसे कैसे रहंगा. तब भी झरने बहेंगे और नाचेंगे और सागर की जीत सकते हैं. जो हमारा प्राण है? हम उसे कैसे जीत सकते हैं. जो तरफ चलेंगे। तब तो इस जगत से मेरी शत्रुता भी निर्मित हो गई। | हमें धारण किए है? हमारा उससे क्या संघर्ष हो सकता है? मछली क्योंकि मेरे होने न होने से इस जगत की धारा का कोई भी संबंध | | का क्या संघर्ष सागर से? वृक्ष की जड़ों का क्या संघर्ष पृथ्वी से? नहीं मालूम पड़ता। मैं अलग हो गया। मैं टुकड़ा हो गया। | लेकिन दृष्टि पर निर्भर करेगा। पश्चिम की दृष्टि ऐसी ही है, व्यक्ति को एक टुकड़े की तरह तो कृष्ण कहते हैं, मैं तुम में ही नहीं हूं, मैं तुम्हारी मां में भी हूं, देखने की। और इसलिए पश्चिम में जीवन को देखने का ढंग संघर्ष | तुम्हारे पिता में भी, पिता के पिता में भी।। का हो गया। अगर मैं अलग हूं, तो जीवन संघर्ष है; और अगर मैं | श्रृंखला की खबर दे रहे हैं वे। वे यह कह रहे हैं कि तुम तुम में एक हूं, तो जीवन समर्पण होगा। | ही नहीं हो, तुम तुम्हारी मां में भी थे; तुम तुम्हारे पिता में भी थे; अगर मैं इस जगत से अलग हूं और मेरे जन्म से इस जगत को और तुम तुम्हारे पिता के पिता में भी थे। और तुम अपने बच्चों में कोई प्रयोजन नहीं है; मैं जब नहीं था, तो जगत में कौन-सी कमी भी रहोगे; और तुम अपने बच्चों के बच्चों में भी रहोगे। यह जगत थी? कोई भी तो मेरे न होने से फर्क नहीं पड़ता था। और जब मैं | | तुमसे कभी भी खाली नहीं होगा; और यह जगत तुमसे कभी खाली कल नहीं हो जाऊंगा, तो जगत में कौन-सी कमी हो जाएगी? कोई | | नहीं था। यह जगत तुमसे सदा ही भरा रहा है; और यह जगत सदा भी तो फर्क नहीं पड़ेगा। तुमसे भरा ही रहेगा। इस जगत के तुम अनिवार्य हिस्से हो। इस तो मेरा होना और जगत का होना, दोनों संबद्ध नहीं मालूम होते। | जगत में और तुम्हारे बीच एक पारिवारिक नाता है। यह जगत नहीं तो जब मैं नहीं था, तो जगत में कुछ कमी होनी चाहिए। और तुम्हारा पड़ोसी ही नहीं है; इस जगत के और तुम्हारे बीच, जैसे मां जब मैं न रह जाऊं, तब एक खाली जगह, एक रिक्त जगह छूट और बेटे के बीच, पिता और बेटे के बीच नाता हो, वैसा नाता है। 261

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