Book Title: Gita Darshan Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 184
________________ * गीता दर्शन भाग-4 के थोड़े-बहुत दिन के प्रेम में पड़ जाए, तो इससे कुछ लाभ होगा। इससे तो बात बिलकुल टूट जाएगी। लेकिन पश्चिम का मनोवैज्ञानिक ठीक कहता है। वह कहता है, दूसरी स्त्री से थोड़े दिन संबंध बनाकर वह फिर अपनी स्त्री के प्रति आकर्षित हो जाता है; अतियों में डोल जाता है। इसलिए पश्चिम में एक बहुत ही अजीब-सी घटना चल रही है, और वह यह है कि स्त्रियों की बदलाहट करनी - स्वोपिंग क्लब्स, जहां मित्र अपनी पत्नियों को बदलने का गुप्त प्रयोग करते रहते हैं। और हैरानी की बात है कि जिन पति-पत्नी के बीच नहीं बनता था, उनके बीच फिर से बनाव आ सकता है। असल में जिससे हम दूर हटते हैं, उसके प्रति हम फिर आकर्षित होने लगते हैं। दूर हटना, पास आने की तरकीब है; पास आना, दूर जाने की व्यवस्था है। हर चीज ऐसे ही खींचती रहती है। आज अमेरिका में करोड़पति परिवारों के बच्चे भिखमंगों की भांति सड़कों पर घूमने सारी दुनिया में निकल पड़े हैं। गरीबी भी अब आकर्षण बन गई है। अमीरी बहुत है, तो गरीबी पुकारती है। विपरीत फिर खींचने लगता है। तो जिसे परम मुक्ति चाहिए, उसे विपरीत से मुक्त होना पड़ेगा। ये दो विपरीत मार्ग मनुष्य के भीतर हैं। यदि इनको तत्व से कोई जान ले, तो इन दोनों का आकर्षण खो जाता है। और जब दोनों का ही आकर्षण खो जाता है, जब दोनों ही नहीं पुकारते, जब दोनों ही नहीं बुलाते, जब दोनों की विपरीतता मिट जाती है, और दोनों ही एक सिक्के के पहलू मालूम पड़ने लगते हैं— उसी क्षण व्यक्ति परम मुक्ति को उपलब्ध हो जाता है; उसी क्षण। उस क्षण के बाद उसके लिए संसार में कोई भी अर्थ नहीं है। उसके बाद उसके लिए मोह, वासना और तृष्णा का कोई उपाय नहीं है। इसलिए कृष्ण कहते हैं, तत्व से जानता हुआ कोई भी योगी फिर मोहित नहीं होता है। इस कारण हे अर्जुन, तू सब काल में योग-युक्त हो । सब काल में, सब समय में, हर स्थिति में योग-युक्त हो। यहां योग-युक्त का अर्थ दोनों अतियों के बीच मध्य में थिर हो जाना है; दो अतियों के बीच मध्य में थिर हो जाना है, निर्मोह हो जाना है। जो करते हैं आकर्षण के बिंदु बहुत आसान है एक से दूसरे पर हट जाना। एक आदमी बहुत भोजन करता है, उसे उपवास आकर्षित करने लगता है । इसलिए उपवास जहां-जहां करवाया जाता है, वहां अक्सर ज्यादा भोजन करने वाले पेटू लोग चिकित्सा के लिए इकट्ठे होते हैं। आपके उरली कांचन में आप सदा पाएंगे, वे ही लोग वहां चिकित्सा के लिए आएंगे, जो ज्यादा खा गए हैं, ओवर फेड ! यह बड़े मजे की बात है कि जो भी समाज धनी होता है, वह | ज्यादा खाने लगता है, तो उस समाज में उपवास सहज बन जाता है। हिंदुस्तान में जैनों के समाज में उपवास भारी चीज है। और | उसका कुल कारण यह नहीं कि उपवास भारी चीज है; उसका कुल कारण यह है कि हिंदुस्तान में ओवर फेड, ज्यादा खाने वाला समाज जैनों का है। जहां भी ज्यादा भोजन होगा, वहां उपवास आकर्षित करने लगेगा। यह बड़े मजे की बात है कि गरीब समाज का जब धार्मिक दिन आएगा, तो उस दिन वे अच्छा भोजन बनाएंगे। और अमीर समाज | का जब धार्मिक दिन आएगा, तो उस दिन वे उपवास करेंगे, दि | अपोजिट ! अगर गरीब आदमी का धार्मिक दिन आएगा, मुसलमान का अगर धार्मिक दिन आएगा, तो वह नए, ताजे और रंगीन कपड़े | पहनकर सड़क पर निकलेगा। और अगर अमीर धार्मिक का धर्म का दिन आ जाए, तो वह सादगी वरण करेगा, उस दिन वह सादा होगा। वह जो विपरीत है, वह हमारे मन में जगह बना लेता है। वह जो | विपरीत है, वह हमें खींचता रहता है। इसलिए ज्यादा खाने वाला उपवास में उत्सुक हो जाएगा। ज्यादा पहनने वाला नग्न होने की भी तैयारी दिखा सकता है। लेकिन विपरीत पर चले जाने से अंत नहीं होता। विपरीत पर जो गया है, वह मोह के ही बंधन में गया है। इसलिए उलटे को मत चुनना । उलटे का चुनाव खतरनाक है। अगर चुनना ही हो, तो दोनों के मध्य को चुनना । दि एग्जेक्ट मिडिल इज़ दि प्वाइंट आफ फ्रीडम | दो अतियों के बीच जो बिलकुल ठीक मध्य है, वही मुक्त होने की जगह है। अगर बहुत भोजन करते हों, तो उपवास को मत चुनना, सम्यक भोजन को चुनना; बीच में रुक जाना। वह कठिन होगा। उपवास आसान पड़ेगा, क्योंकि अति आसान है सदा। अगर क्रोधी आदमी है, तो क्षमावान बनना आसान है, अक्रोधी होना मुश्किल है। दूसरी तरफ जाना सदा आसान है। क्योंकि हम एक तरफ अति पर आकर मोमेंटम इकट्ठा कर लेते हैं। फिर पेंडुलम को छोड़ दो, वह अपने आप दूसरी तरफ चला जाता है। बीच में रुकना बहुत कठिन है। योग-युक्त होने का अर्थ है, जो व्यक्ति सदा अतियों के बीच में | खड़ा हो जाता है, वही योगी है। उसने ही जाना वह बिंदु, जहां से 158

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