Book Title: Gita Darshan Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 343
________________ ॐ वासना अशुद्धि है - हो सकती है। इसलिए यह भी हो सकता है कि सिकंदर जैसा | | कि झरने का पानी पीने को आतुर हो जाए। इतना स्फटिक जैसा आदमी, बहादुर है, तलवार से भयभीत नहीं होता, युद्ध में मौत से स्वच्छ जल है वहां! तो उसने एक तरकीब की। सोचा कि यदि नहीं डरता, लेकिन यह इतना बहादुर शेर जैसा आदमी भी घर | डिनोशियस प्रसन्न हो जाए, तो कुछ वरदान मांग लूं। उसने झरने में आकर पत्नी से डरता है। यह क्या बात है? यह पत्नी से क्यों डरता शराब मिलवा दी। है? इसने दुनिया में किसी और से कभी कुछ नहीं मांगा, लेकिन और जब डिनोशियस आया, तो झरना सचमुच ऐसा सुगंध से पत्नी के पास आकर कमजोर हो जाता है। भरा था और ऐसा स्फटिक जैसा स्वच्छ था कि उस देवता __अक्सर यह होगा कि जो लोग मकान के बाहर बहुत हिम्मतवर | | डिनोशियस को भी स्वर्ग के झरने फीके मालूम पड़े। और उसने दिखाई पड़ेंगे, मकान के भीतर बहुत कमजोर दिखाई पड़ेंगे। और . | कहा कि तुम्हारे झरने का पानी मैं जरूर ही पीऊंगा। उसने पानी स्त्रियां उनके राज को जानती हैं कि उनके सामने वे किसी गहरे अर्थ | पीया, शराब में डूबकर बेहोश हो गया। बेहोशी में मिडास ने उससे में भिखारी हैं। किसी सुख के लिए उन पर निर्भर हैं। उस सुख की | वरदान मांग लिया। मांग लिया वरदान कि मैं जो कुछ भी छुऊं, वह निर्भरता उन्हें कमजोर बनाती है। सोने का हो जाए। और उस दिन से मिडास जो भी छता, सोने का इसलिए पति चाहे कितनी ही बहादुरी करता हो बाहर, भला हो जाता। किसी युद्ध में चैंपियन हो जाता हो, वह घर आकर पत्नी के सामने लेकिन मुश्किल शुरू हो गई। सोचता था कि किसी दिन अगर एकदम दब्बू हो जाता है। वहां भीख शुरू हो गई। वहां गुलामी शुरू | यह वरदान मिल जाए कि जो भी छुळं सोने का हो जाए, तो मुझसे हो गई। वहां कुछ मांगना है उसे। वहां किसी पर निर्भर होना है। ज्यादा सुखी कोई भी न होगा। लेकिन मिडास से ज्यादा दुखी बस, उपद्रव शुरू हो गया। आदमी पृथ्वी पर कभी भी नहीं हुआ। • यह मैं पति के लिए नहीं, सभी के लिए कह रहा हूं। जहां भी । पत्नी को छुआ, वह सोने की हो गई। बेटी को छुआ, वह सोने हम किसी पर कुछ मांगने को निर्भर होते हैं, वहां चित्त दीन होने | की हो गई। खाने को छुआ, वह सोने का हो गया। पानी को लगता है। | छुआ, वह सोने का हो गया। एक दिन, दो दिन, भूखा-प्यासा कृष्ण कहते हैं, अंतःकरण है शुद्ध जिसका। चीखने-चिल्लाने लगा। पागल होने के करीब आ गया। लोग उसे तो एक, निर्भर नहीं है जो अपने सुखों के लिए किसी पर। दूसरी | | देखकर भागने लगे कि कहीं छ न ले। घर के लोग भी ताले लगाकर बात, चित्त में अशुद्धियां, इंप्योरिटीज किस द्वार से प्रवेश करती हैं? | अपने कमरों में छिप गए कि कहीं छ न ले। वजीरों ने छुट्टियां ले ___ कल-परसों मैंने आपसे बात की कि कामना, आकांक्षा, वासना ली। सेनापतियों ने कहा, क्षमा करो! पहले इस वरदान से छुटकारा के द्वार से अशुद्धियां प्रवेश करती हैं। वासना से ग्रस्त, पैसोनेट, | लो, फिर हम आ सकते हैं। द्वारपाल अब तक लोगों से रक्षा करते इच्छा से भरा हुआ मन, कमजोर भी होता है, अशुद्ध भी होता है, थे उसकी। अब द्वारपाल बंदूकें उलटी लेकर खड़े हो गए और लोगों दुखी भी होता है, अंधकार में भी डूबता है। मजा यह है कि इच्छा की रक्षा करने लगे उससे। पूरी हो जाए, तो भी सुख नहीं मिलता! इच्छा पूरी हो जाए, तो भी | - मिडास बड़ी मुश्किल में पड़ गया। चिल्लाता है, रोता है, मगर सुख नहीं मिलता; इच्छा पूरी न हो, तब तो दुख मिलता ही है। ।। | डिनोशियस का कोई पता नहीं लगता। कहते हैं, मरा; और जब वह मुझे याद आती है एक यूनानी कथा। सुना है मैंने कि यूनान में मरा, तो उसके मुंह से जो वचन निकले, उसके मरते वक्त भी वह एक सम्राट हुआ, मिडास। कहते हैं, सारी पृथ्वी जीत ली है उसने।। | यही कह रहा था, बिफोर गोल्ड किल्स मी, एज इट किल्स आल सुंदर-सुंदर स्वर्ण के महल हैं उसके पास। अदभुत बगीचे हैं। ऐसे | | मेन, डियर डिनोशियस, गिव मी बैक टेन फिंगर टिप्स, दैट लीव अदभुत बगीचे हैं कि एक दिन खबर मिली मिडास को कि स्वर्ग | | दि वर्ल्ड अलोन। इसके पहले कि सोना मुझे मार डाले, जैसा कि का देवता डिनोशियस उसके बगीचे को देखने आ रहा है। बड़े । । | सभी को मार रहा है, मार डालता है, प्यारे डिनोशियस, वापस अदभुत झरने हैं उसके बगीचे में और एक तो उसका अपना बहुत | | लौटा दो मुझे मेरी वे दस अंगुलियां, जिनसे मैं दुनिया को छुऊं, ही प्यारा झरना है। उसने सोचा, डिनोशियस को वह झरना तो | लेकिन दुनिया उनसे अस्पर्शित रह जाए। लेकिन वह यह कहते हुए दिखाएंगे ही। फिर उसे खयाल आया कि डिनोशियस हो सकता है | | ही मरा। 317|

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