Book Title: Gita Darshan Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 364
________________ गीता दर्शन भाग-2 सकती, वे एक साधना हैं। राम के संबंध में भ्रांति नहीं हो सकती; बात साफ है। राम प्रेडिक्टेबल हैं। अगर हमें पता भी न हो, अगर रामायण का एक पन्ना खो जाए, बिलकुल खो जाए, तो उस पन्ने को हम फिर से लिख सकते हैं। आगे के पत्रे और पीछे के पन्ने बता देंगे कि इस आदमी ने बीच में क्या किया होगा। प्रेडिक्टेबल है। अगर रामायण का एक अध्याय खतम हो जाए, तो फिर से लिखा जा सकता है; इसमें अड़चन नहीं आएगी। क्योंकि राम का व्यक्तित्व एक लीक में बंधा हुआ है, सीधा है। हम जानते हैं कि दो और दो चार हुए हैं, इतना सीधा है। लेकिन कृष्ण के मामले में तय नहीं है। अगर एक अध्याय खो , तो उसको दुबारा नहीं लिखा जा सकता, जब तक कृष्ण फिर पैदा न हों। उसको कोई पूरा नहीं कर सकेगा। क्योंकि कुछ नहीं कहा जा सकता, यह आदमी क्या करेगा। यह बांसुरी बजाएगा बीच में, कि युद्ध द्र में लड़ेगा, कि सखियों के साथ नाचेगा, कि स्त्रियों के कपड़े उठाकर वृक्ष पर चढ़ जाएगा ! बीच में क्या करेगा, कुछ पक्का नहीं है। बीच में कुछ भी हो सकता है। अनप्रेडिक्टेबल है। पूर्ण आदमी सदा ही भविष्यवाणी के बाहर होगा । और इसलिए पूर्ण व्यक्ति को समझना कठिन होगा। इसलिए कृष्ण को मानने वाले, प्रेम करने वाले बहुत हैं, लेकिन फिर भी कृष्ण को मानने वाले न के बराबर हैं। कृष्ण को मानना बहुत दुरूह है, बहुत कठिन है। इसलिए जो भी मानता है, वह भी चुन लेता है। वह भी पूरे कृष्ण को नहीं मानता, वह भी चुनाव कर लेता है। कुछ लोग हैं, जो बाल-कृष्ण को मानते हैं। वे युवा-कृष्ण की बिलकुल बात ही नहीं करते। वे कहते हैं, हमारे तो बाल - गोपाल भले हैं। क्योंकि वह बाद का कृष्ण खतरनाक मालूम पड़ता है। तो वे तो कहते हैं, छोटा कन्हैया । उससे ही वे अपना काम चला लेते हैं। उनका डर अपना है। क्योंकि बाद में वह जो कृष्ण जवान हो जाता है और जवान होकर जो करता है, वह उनके लिए घबड़ाने वाला है। अब सूरदास कैसे जवान कृष्ण को मानें! वे तो स्त्रियों को देखकर आंख फोड़ लिए! बड़ी कठिनाई है। कृष्ण और सूर के बीच, जवान कृष्ण और सूर के बीच तालमेल नहीं हो सकता। क्योंकि कहां सूरदास ! देखा कि आंख भटकाती है वासना में, फोड़ दो आंख । आंख फोड़ दी और कहां कृष्ण कि पूरी आंखें नचाकर बांसुरी बजा सकते हैं। और कहां सूरदास, आंख फोड़कर बैठ गए। सूरदास कहेंगे कि बाद का कृष्ण भरोसे का नहीं है। अपना | बाल-कृष्ण ठीक है। वह सूरदास की सीमा है। इसलिए बाल-कृष्ण से अपना काम चला लेंगे। अब अगर कोई केशव को कहे कि बाल कृष्ण से काम चला | लो - दही की मटकी तोड़े, यह करे, वह करे – वे कहेंगे, उसमें कुछ रस नहीं है । उसमें कोई खास बात नहीं है। केशव के लिए तो युवा कृष्ण, यौवन के पूरे राग-रंग में नाचता हुआ। क्योंकि केशव कहते हैं कि जो परमात्मा राग-रंग में पूरा न नाच सके, वह अभी कमजोर है। अभी उसे भी भय है क्या ? आदमी भयभीत हो, समझ में आ जाए। परमात्मा भी भयभीत हो, तो फिर समझ में नहीं आता। वह तो अभय होकर ... । तो केशव बच्चे कृष्ण को छोड़ देंगे, युवा कृष्ण की कथा के | आस-पास उनके सब गीत रचे जाएंगे। वह जो गीत-गोविंद का | रूप होगा, वह युवा का होगा। वह राग-रंग है, युवा काव्य है, सौंदर्य है, संगीत है, वह सब उसमें आएगा। ये अपने-अपने चुनाव होंगे। और कृष्ण इतने विराट हैं कि पूरा | पचाने की हिम्मत न के बराबर होती है। थोड़ा-थोड़ा अपना जितना पच सके, आदमी चुन लेता है। लेकिन मेरा कहना है, जब भी कोई चुनेगा, तब वह खंड कर देगा। और खंडित कृष्ण का कोई अर्थ नहीं होता। अखंड कृष्ण का | ही कुछ अर्थ है। इसलिए मैं कहता हूं कि मानने वाले बहुत हैं, फिर भी मानने वाले न के बराबर हैं। क्योंकि जो पूरे अखंड कृष्ण को | जान पाए, वही मान पाएगा, अन्यथा नहीं मान सकता है। तो कृष्ण का कोई अपना व्यक्तित्व नहीं है। कृष्ण स व्यक्तित्व अपने हैं । इसलिए कृष्ण के हमने कितने नाम रखे, खयाल किया ! इतने नाम रखे कृष्ण के, जिसका हिसाब नहीं | जितने नाम हो सकते हैं, सब कृष्ण के रख दिए। क्योंकि इतने | आदमी इसमें झलके एक साथ ! इतने व्यक्तित्व इसमें दिखाई पड़े। कौन सोच सकता है कि जो आदमी बांसुरी बजाने जैसे कोमल जगत में जीता हो, वह आदमी चक्र लेकर खड़ा हो जाएगा ! कोई | सोच नहीं सकता कि जिन अंगुलियों ने बांसुरी बजाई हो, वे हत्या का चक्र भी हाथ ले सकती हैं। ये अंगुलियां बड़ी अजीब हैं! इनका व्यक्तित्व क्या है? बांसुरी बजाने वाली अंगुलियां चक्र हाथ में नहीं ले सकती हैं। सुदर्शन लेकर हत्या का इंतजाम करना, अचूक हत्या | का इंतजाम करना, बांसुरी बजाने वाली अंगुलियों का काम नहीं है ! इन अंगुलियों का कोई व्यक्तित्व अगर होता, तो यह मुश्किल था । 338

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