Book Title: Gita Darshan Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 371
________________ अहंकार की छाया है ममत्व आदमी तो अज्ञानी मिला। क्या तुम अपने को अज्ञानी समझते हो? + ही प्रकार के वर्ग हैं जगत में, दो ही प्रकार के लोग हैं उसने कहा कि नहीं महानुभाव, आपको अकेला खड़ा देखकर मुझे | | जगत में, सकामी और निष्कामी। आध्यात्मिक अर्थों बड़ी शर्म मालूम पड़ती है, इसलिए मैं खड़ा हो गया हूं। आप में दो ही विभाजन हो सकते हैं। वे, जो कर्म में लीन अकेले ही खड़े हैं! अच्छा नहीं मालूम पड़ता, शिष्टाचार नहीं होते हैं तभी, जब फल की आकांक्षा से उत्प्रेरित होते हैं। जब तक मालूम पड़ता। आप अजनबी हैं, बाहर से आए हैं। इसलिए मैं खड़ा | फल की आकांक्षा का तेल न मिले, तब तक उनके कर्म की ज्योति हो गया हूं, अज्ञानी मैं नहीं हूं। जलती नहीं। फ्यूल जो है, वह फल की आकांक्षा से मिलता है। वह इस पृथ्वी पर कोई अपने को अज्ञानी मानने को राजी नहीं है। जो ईंधन है, उसके बिना उनकी कर्म की अग्नि जलती नहीं। उनके कोई अपने को भोगी मानने को राजी नहीं है। कोई अपने को कर्म की अग्नि को जरूरी है कि ईंधन मिले फल की आकांक्षा का। अहंकारी मानने को राजी नहीं है। कोई अपने को ममत्व से घिरा है, और ध्यान रहे, फल की आकांक्षा बड़ी गीली चीज है; सूखी ऐसा मानने को राजी नहीं है। और सब ऐसे हैं। और जब बीमारी चीज नहीं है। होगी ही गीली। क्योंकि सूखी चीज भविष्य में कभी अस्वीकार की जाए, तो उसे ठीक करना मुश्किल हो जाता है। नहीं होती। सूखी चीज सदा अतीत में होती है। भविष्य में तो गीली बीमारी स्वीकार की जाए, तो उसका इलाज हो सकता है, निदान हो | | आकांक्षाएं होती हैं। हो सकता है, हो भी जाएं; हो सकता है, न भी सकता है, चिकित्सा हो सकती है। | हों। पता नहीं क्या मार्गलें, क्या फल आए। कुछ पक्का नहीं होता। देख लेना ठीक से। कृष्ण कहते हैं, ममत्व को छोड़ देता है जो! __भविष्य बहुत गीला है। गीली लकड़ी की तरह है; मुड़ेगा; मुड़ पर ममत्व को मानना पहले कि ममत्व है आपकी जिंदगी में, | सकता है। अतीत सूखा होता है, सूखी लकड़ी की तरह; मुड़ नहीं तभी छोड़ सकेंगे। जो बहुत चालाक हैं, वे कहेंगे, छोड़ना क्या है! सकता। भविष्य की आकांक्षाओं को जो ईंधन बनाते हैं अपने जीवन ममत्व तो हमारी जिंदगी में है ही नहीं। धोखा पक्का हो गया। | की कर्म-अग्नि में, धुएं से भर जाते हैं। गीला है ईंधन। हाथ में फल - ममत्व है। लगता है, कोई मेरा है-चाहे पत्नी, चाहे पिता, चाहे नहीं लगता है, सिर्फ धुआं लगता है-दुख-आंखों में आंसू भर मां, चाहे बेटा, चाहे मित्र, चाहे शत्रु-मेरा है! शत्रु तक से ममत्व | जाते हैं धुएं से, और कुछ परिणाम नहीं लगता है हाथ में। होता है। इसलिए ध्यान रखना, जब शत्र मरता है. तब भी आप कछ। एक तो इस तरह के लोग हैं जो कर्म में इंचभर भी न चलेंगे, जब कम हो जाते हैं, समथिंग लेस। क्योंकि उसकी वजह से भी आपमें तक फल उनको खींचे न। फल उनको ऐसे ही न खींचे, जैसे कि कुछ था। वह भी आपको कुछ बल देता था। उसके खिलाफ | कोई जानवर की गर्दन में रस्सी बांधकर खींचता है। क्या आपको लड़कर भी कुछ कमाई चलती थी। वह भी आपके ममत्व का | पता है कि पशु हम जानवर को इसीलिए कहते हैं। पशु संस्कृत का हिस्सा था। बहुत अदभुत शब्द है। उसका अर्थ है, जिसे खींचना हो, तो गले ___ ममत्व जो छोड़ दे, फिर भी कर्म में संलग्न हो। इंद्रियों और शरीर में पाश बांधना पड़ता है, उसको पशु कहते हैं। जिसे खींचने के के कर्मों को करता चला जाए, इसलिए ताकि पिछले कर्मों की गति | लिए पाश बांधना पड़े, वह पशु। इसलिए बहुत पुराने ज्ञानी हमको कटे और कर्म-बंधन से मुक्ति हो, ऐसे व्यक्ति को कृष्ण निष्काम | | पशु ही कहेंगे। जो भी भविष्य की आकांक्षा से बंधे हुए चलते हैं, कर्मयोगी कहते हैं। | वे पशु हैं। ___ पशु का मतलब, कर्म से नहीं चलते, फल से बंधे हुए चलते हैं। गर्दन फंसी है एक जाल में। भविष्य के हाथ में है वह रस्सी। वह युक्तः कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम् । | खींच रहा है। या तो भविष्य खींचे, तो हम चलते हैं; कोई हमारी अयुक्तः कामकारेण फलै सक्तो निबध्यते ।। १२ ।। | गर्दन में रस्सी बांध ले। और या अतीत धक्का दे, तो हम चलते हैं। इसी से निष्काम कर्मयोगी कर्मों के फल को परमेश्वर के | जैसे कोई जानवर को पीछे से लकड़ी मारे या कोई बाहर से रस्सी अर्पण करके भगवत प्राप्ति रूप शांति को प्राप्त होता है। खींचे आगे से। या तो कोई पुल करे या पुश करे, तो ही जानवर चले। और सकामी पुरुष फल में आसक्त हुआ कामना के द्वारा | तो पुराने ज्ञानी कहते हैं कि वह आदमी पशु है, जो या तो अतीत बंधता है। | के कर्मों के धक्के की वजह से चलता है और या भविष्य की 3451

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