Book Title: Gita Darshan Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 387
________________ CR माया अर्थात सम्मोहन ॐ एनालिसिस करती है, टुकड़े करती है। वह पाएगा कि न कोई प्रकृति है, न कोई परमात्मा है, एक ही है। इसीलिए तो विज्ञान की जो पद्धति है, वह एनालिसिस है। तोड़ो, | जैसे कि हम एक आदमी से कहें कि ये जो लहरें तुझे दिखाई पड़ खंड-खंड करते जाओ और तोडते चले जाओ। हर चीज को. रही हैं, ये सागर नहीं हैं। जिसको भी समझना हो, तोड़ना पड़ेगा। आपको खयाल नहीं होगा; आप सागर के किनारे बहुत बार गए अभी पचास साल पहले डाक्टर होता था, तो वह पूरे आदमी | होंगे, लेकिन लहरों को देखकर लौट आए और समझा कि सागर का डाक्टर होता था। वह आपकी बीमारी का इलाज कम करता था, को देखकर आ रहे हैं। सागर को आपने कभी नहीं देखा होगा; बीमार का इलाज ज्यादा करता था। आपसे परिचित होता था सिर्फ लहरों को देखा है। सागर की छाती पर लहरें ही होती हैं, भलीभांति। मरीज को पूरी तरह पहचानता था। आज हालत सागर नहीं होता। लेकिन कहते यही हैं कि हम सागर को देखकर बिलकुल बदल गई है। अगर बाएं कान में दर्द है, तो एक डाक्टर चले आ रहे हैं। सागर का दर्शन कर आए। दर्शन किया है सिर्फ के पास जाइए; दाएं कान में दर्द है, तो दूसरे डाक्टर के पास जाइए। लहरों का। सागर बड़ी गहरी चीज है; लहरें बड़ी उथली चीज हैं। उसको आपसे मतलब नहीं है। बस, उस कान के टुकड़े से मतलब कहां लहरों का उथलापन और कहां सागर की गहराई! पर लहरों है। बाकी मरीज बेकार है; हो या न हो। वह अपने कान की जांच | को हम सागर समझ लेते हैं। कर लेगा। __ आप अगर मेरे पास आएं और कहें कि मैं सागर का दर्शन करके - इसलिए आज मरीज की कोई चिकित्सा नहीं होती, सिर्फ बीमारी आ रहा हूं, तो मैं कहूंगा, ध्यान रखो, सागर और लहरें दो चीज हैं। की चिकित्सा होती है। और इनमें बड़ा फर्क है। टु ट्रीट ए डिसीज | तुम लहरों का दर्शन करके आ रहे हो, उसको सागर मत समझ एंड टु ट्रीट ए पेशेंट, बहुत फर्क बातें हैं। क्योंकि जब मरीज की | लेना। सागर बहुत बड़ा है। बहुत गहरे, भीतर छिपा है। और अगर चिकित्सा करनी हो, तो करुणा की जरूरत पड़ती है। और जब सिर्फ | सागर को देखना हो, तो तब देखना, जब लहरें बिलकुल शांत हों। बीमारी की चिकित्सा करनी हो, तो यांत्रिकता पर्याप्त है। | तब तुम झांक पाओगे सागर में। स्पेशलिस्ट जो है, वह कान की जांच करके और लिख देगा कि | | आप मुझसे कह सकते हैं कि बड़ी गलत बात आप कह रहे हैं। क्या गड़बड़ है। सागर और लहरें तो एक ही हैं। लेकिन यह उसका अनुभव है, विज्ञान जैसे विकसित होगा, चीजें खंड-खंड होती चली | | जिसने सागर को जाना। जिसने लहरों को जाना, उसका यह जाएंगी। विज्ञान की प्रक्रिया बद्धि की प्रक्रिया है। धर्म जैसे विकसित | अनभव नहीं है। होगा, चीजें जुड़ती चली जाएंगी, खंड इकट्ठे होते जाएंगे। विज्ञान | ___ तो कृष्ण की कठिनाई है। वे तो सागर को जानते हुए खड़े हैं। का मैथड है एनालिसिस, धर्म का मैथड है सिंथीसिस, जोड़ते चले | | लेकिन अर्जुन तो लहरों पर जी रहा है। उससे वे कहते हैं कि जिसे तू जाओ। इसलिए धर्म जब परम स्थिति को उपलब्ध होता है, तो एक | जान रहा है, वह प्रकृति है। इस लहरों की उथल-पुथल को, इस ही रह जाता है। और विज्ञान जब परम स्थिति को उपलब्ध होता है, लहरों की अशांति को तू सागर मत समझ लेना। यह सागर का हृदय तो परमाणु हाथ में रह जाते हैं, अनंत परमाणु। और जब धर्म | नहीं है। सागर के हृदय को तो पता ही नहीं है कि कहीं लहरें भी उठ विकसित होता है, तो अनंत अद्वैत, एक ही हाथ में रह जाता है। | रही हैं। सागर के गहरे में तो पता भी नहीं है। वहां कभी कोई लहर कृष्ण की कठिनाई है, और वह सब कृष्णों की कठिनाई है, चाहे | उठी ही नहीं है। इसलिए दो हिस्सों में तोड़ लेना पड़ता है। वे कहीं पैदा हुए हों-जेरूसलम में, कि मक्का में, कि चीन में, ज्ञान में सब द्वैत गलत है। अज्ञान में सब अद्वैत समझ के बाहर कि तिब्बत में कहीं भी पैदा हुआ हो कोई जानता हुआ आदमी, | | है। अज्ञान में अद्वैत समझ के अतीत है, पार है। ज्ञान में द्वैत विदा उसकी कठिनाई यही है कि बुद्धि से कहते ही दो करने पड़ते हैं। । | हो जाता है, बचता नहीं। इसलिए कृष्ण दो कर रहे हैं, अर्जुन की तरफ से इस बात को फिर क्या किया जाए ? जब ज्ञानी अज्ञानी से बोले, तो क्या करे? स्मरण रखना-लहर की तरफ से दो कर रहे हैं। कह रहे हैं कि मजबेरी में अज्ञानी की भाषा का ही उपयोग करना पड़ता है, इस प्रकृति है एक अर्जुन! यह सारा काम प्रकृति कर रही है। इतना तू आशा में कि उसी भाषा का उपयोग करके क्रमशः इशारा करते हुए, समझ और द्रष्टा हो जा। अगर अर्जुन द्रष्टा हो जाए, तो एक दिन किसी घड़ी धक्का दिया जा सकेगा। 361

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