Book Title: Gita Darshan Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 394
________________ गीता दर्शन भाग-20 किसी भय के क्षण में, डर के क्षण में रस्सी को सांप समझ लिया हो गया। उसने कहा, चकित करते हो तुम। तुम अभी तक थके है। वहां कहीं है नहीं। | नहीं? उस बीमा एजेंट ने कहा कि कौन कब थकता है? रस्सी और सांप के बीच क्या संबंध है? कोई संबंध नहीं है। कोई थकता नहीं। कितनी ही आशाएं निराशाएं हों, फिर भी क्योंकि जो उठा लेगा जाकर रस्सी, देखेगा, रस्सी है, उसके लिए लगता है कि शायद एक मौका और। एक बार और। जाल को हम सांप खो गया। संबंध कैसे बनाएगा? जिसको रस्सी नहीं दिखाई | | फैलाए चले जाते हैं। मौत भी सामने आ जाए, तो भी हम मौत के पड़ती, सांप दिखाई पड़ता है, उसके पास रस्सी नहीं है। संबंध कैसे | पार प्रोजेक्शन को फैलाए चले जाते हैं। मरता हुआ आदमी सोचता बनाएगा? है, गाय को दान कर दें, स्वर्ग में इंतजाम हो जाएगा। प्रोजेक्शन ब्रह्म और माया के बीच कोई भी संबंध नहीं है। माया है ही नहीं | | फैला रहे हैं अभी भी। मौत दरवाजे पर खड़ी है, लेकिन उनकी सिवाय प्रोजेक्शन के, प्रक्षेपण के। मन की कल्पनाओं की क्षमता | फिल्म का प्रोजेक्टर अभी भी काम कर रहा है। वह बंद नहीं हो रहा है कि हम फैलाव कर लेते हैं। फैलाव बड़ा कर ले सकते हैं। इतना | है। वे अभी फैलाए चले जा रहे हैं! वे सोच रहे हैं कि चार आने फैल सकता है, जिसका कोई हिसाब नहीं है। उसमें हम जीते हैं। | | किसी ब्राह्मण को दे दें, तो भगवान को बता सकेंगे कि चार आने एक छोटी-सी कहानी और आज की बात मैं पूरी करूं। | एक ब्राह्मण को दिए थे, जरा अच्छी-सी जगह! और अगर आपके हमारा सपना कितनी ही बार टूटे, हम फिर सम्हाल लेते हैं। रोज | मकान में ही हो सके, तो बहत अच्छा है। यहीं ठहरा लें। टूटता है। सुबह टूटता है, दोपहर टूटता है, सांझ टूटता है, हम फिर । लंदन में, लंदन यूनिवर्सिटी का मेडिकल हास्पिटल है। हर तीन थेगड़े लगा लेते हैं। हम बड़े कुशल कारीगर हैं अपने सपने में थेगड़े महीने में वहां एक अजीब घटना घटती है। उस हास्पिटल की हर लगाने में। एक इच्छा हार जाती है, कुछ नहीं पाते। तत्काल दूसरी तीन महीने में ट्रस्टीज की बैठक होती है। इच्छा निर्मित कर लेते हैं। कारण खोज लेते हैं, इसलिए हार हो गई! | अगर कभी आप उस बैठक को देखें, तो बहुत हैरान होंगे। थोड़ी अगली बार ऐसा नहीं होगा। एक आशा खंडित हो जाती है, दूसरी देर में चकित हो जाएंगे। आप देखेंगे कि प्रेसिडेंट की जगह जो आशा तत्काल निर्मित कर लेते हैं। जिंदगी रोज, यथार्थ रोज हमारे आदमी प्रेसिडेंट की चेयर पर बैठा हुआ है, कुर्सी पर बैठा हुआ है प्रोजेक्शन को तोडता है. लेकिन हम बनाए चले जाते हैं. निर्मित अध्यक्ष की.न तो हिलता. न तो डलता. न उसकी पतली हिलती।' किए चले जाते हैं! | बहुत हैरान होंगे। थोड़ी देर में आपको शक होगा कि वह आदमी मैंने सुना है, सांझ एक धनपति अपने दरवाजे को बंद करने के जिंदा है या मरा हुआ! जब आप पास जाएंगे, तो पाएंगे, वह तो ही करीब है कि उसके चपरासी ने फिर भीतर आकर कहा कि मुर्दा है। लाश रखी है सौ साल से! सुनिए, चौबीस, दो दर्जन बीमा एजेंटों को हम आज दिनभर में | जरेमी बैंथम नाम के आदमी ने वह हास्पिटल बनाया था। फिर बाहर निकाल चुके हैं। पच्चीसवां हाजिर है। कहता है, भीतर आने वह अपनी वसीयत में लिख गया कि यह मैं मरने के बाद भी बर्दाश्त दें। चौबीस लोगों को भगाया जा चुका है। उस धनपति को भी दया नहीं कर सकता कि मैं अस्पताल बनाऊं और अध्यक्षता कोई और आ गई। उसने कहा, अच्छा, उस पच्चीसवें को आ जाने दो। अब | करे। इसलिए मेरी लाश को यहां रखना। और मैं ही अध्यक्षता दरवाजा बंद ही होने के करीब है। करूंगा, जब भी ट्रस्टीज की बैठक होगी। प्रेसिडेंट मैं ही रहूंगा। __वह अंदर आया। धनपति ने उसे देखा और कहा कि तुम | तो अभी भी उसकी लाश रखी हुई है। सामने प्रेसिडेंट की तख्ती सौभाग्यशाली हो। क्योंकि चौबीस, दो दर्जन बीमा एजेंट आज मैं | उसके रखी रहती है। हर बार जब ट्रस्टीज की बैठक पूरी होती है दरवाजे के बाहर से ही भगा चुका हूं। तुम्हें पता है! तुम | | और किसी मसले पर वोटिंग होती है, तो उनको लिखना पड़ता है, सौभाग्यशाली हो। तुम्हें भीतर आने दिया। उस आदमी ने कहा कि | दि प्रेसिडेंट इज़ प्रेजेंट, बट नाट वोटिंग। मौजूद हैं सभापति, लेकिन आई नो वेरी वेल सर, बिकाज आई एम देम! मुझे अच्छी तरह पता | वोट नहीं कर रहे हैं! यह सौ साल से चल रहा है। है, क्योंकि वे चौबीस आदमी मैं ही हूं। आदमी का पागलपन! ऐसा हमारा सारा मन है। इसको हम वह आदमी चौबीस दफे आ चुका है दिनभर में। वह एक ही फैलाए चले जाते हैं। इस मन से जागे बिना कोई प्रभु की यात्रा पर आदमी है। मुझे भलीभांति पता है, वह मैं ही हूं। मालिक तो हैरान | नहीं निकला है। 1368

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