Book Title: Gita Darshan Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 399
________________ तीन सूत्र - आत्म-ज्ञान के लिए फर्क क्या है ? निकल न सकती। फिर क्या, ' आत्म-अज्ञान और आत्म-ज्ञान में फर्क ? आत्म-अज्ञान और आत्म-ज्ञान सिर्फ नींद के और जागने का फर्क है। इसलिए हम बुद्ध को कहते हैं, बुद्ध । नाम उनका नहीं है। नाम तो उनका था, सिद्धार्थ गौतम बुद्ध का मतलब होता है, दि अवेकंड, जो जाग गया। गौतम सिद्धार्थ को हम कहते हैं, बुद्ध । इसलिए कहते हैं कि जो जाग गया। महावीर को हम कहते हैं, जिन। जिन का अर्थ है, जिसने अपने को जीत लिया। जागना जीतना बन जाता है और सोना हार बन जाती है। जागने में विजय है और निद्रा में पराजय है। बड़ी से बड़ी शक्ति भी सोई हो, तो छोटी से छोटी शक्ति से पराजित हो जाती है। एक पहलवान सोया हो, एक छोटा बच्चा उसकी छाती में छुरा भोंक सकता है। एक हाथी सोया हो, एक छोटी-सी चींटी उसकी नाक में चली जाए, तो मौत हो सकती है। आत्मा बड़ी विराट शक्ति है, बड़ी प्रज्वलित अग्नि है। लेकिन सोई हो, तो क्रोध जैसी ना-कुछ चीज हावी हो जाती है। काम जैसी ना-कुछ शक्ति हावी हो जाती है। अंधेरा जो बिलकुल नहीं है, घेर लेता है उसको, जो बहुत है, गहरे में है, सदा है, कभी खोती नहीं | है। विराट से विराट शक्ति सोई हो, तो क्षुद्र से क्षुद्र शक्ति से हार जाती है। हमारी हार हमारी नींद है। हमारा आत्म-अज्ञान हमारी तंद्रा है, - स्लीपीनेस । हम सब नींद में चलते हुए लोग हैं। इसलिए आत्मा, जो कि कभी अज्ञानी नहीं है, वह भी अज्ञान से ढंकी हुई है। दीया हैबुझा हुआ, सोया हुआ । तेल भी है, बाती भी है, माचिस भी है, आग भी जल सकती है। पर सब अंधकार है। आदमी में वह सब मौजूद है, जो रोशनी बन जाए। सब मौजूद है । कोई भी कमी नहीं । परमात्मा प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण ही भेजता है। और हम सब अपूर्ण जीते हैं और अपूर्ण ही मरते हैं। बल्कि और हैरानी क़ी बात है, जितने पूर्ण पैदा होते हैं, उससे भी ज्यादा अपूर्ण होकर मरते हैं। बच्चा जो संपदा लेकर आता है, बूढ़ा उसे भी गंवाकर विदा हो जाता है। क्या होता है? हमारी नींद और गहरी होती चली जाती है। जीवन में हमारी तंद्रा और बढ़ती चली जाती है। बचपन में हम जितने होश में होते हैं, जवानी में उतने होश में नहीं होते। जवानी में बड़ी तंद्रा पकड़ लेती है । वह तंद्रा है काम की, सेक्स की। मूर्च्छा है, वासना है, वह पकड़ लेती है। बुढ़ापे में हम और भी डूब जाते हैं। बुढ़ापे में कौन सी तंद्रा पकड़ती है? जवानी में कामवासना गहरा अंधकार बनकर व्यक्ति को पकड़ लेती है । फिर वह जो भी करता है, उसी वासना के लिए करता है। धन कमाए, पद कमाए, यश कमाए, वह सब समर्पित है काम के लिए, सेक्स के लिए, वासना के लिए। जवानी में आदमी काम की तंद्रा में डूबा और सोया रहता है। बुढ़ापे में काम तो विदा हो जाता है, क्योंकि इंद्रियां शिथिल होने | लगती हैं। शरीर मरने के करीब आने लगता है। इसलिए बुढ़ापे में जीवन का मोह पकड़ता है; लस्ट फार लाइफ पकड़ती है । जीवेषणा पकड़ती है कि मैं मर न जाऊं; मैं बचा रहूं; मैं किसी भी तरह बचा रहूं। इसलिए बूढ़ा आदमी, जिस तरह जवान आदमी दूसरे को जन्म | देने के लिए लालायित होता है, बूढ़ा आदमी अपने को बचाने के लिए लालायित रहता है। दूसरे को जन्म देने की वासना काम बन जाती है; और अपने को बचाने की वासना लोभ बन जाती है । जवानी की बीमारी, काम; बुढ़ापे की बीमारी, लोभ । और अगर बूढ़ा आदमी किसी जवान को समझाता भी है कि काम से बचो, तो जो कारण बताता है, वे लोभ के होते हैं - कि बर्बाद हो जाएगा; धन खो जाएगा; स्वास्थ्य खो जाएगा। जो भी कारण बूढ़े आदमी देते हैं जवानों को, वह लोभ उनके पीछे बुनियाद होती है। काम है पीड़ा, जवानी का अंधकार; और लोभ है, बुढ़ापे की पीड़ा । बूढ़ा आदमी लोभी से लोभी होता चला जाता है। मैंने सुना है कि किसी एक महानगरी के एक बड़े राजपथ पर एक भिखारी भीख मांगता रहता था। सुबह जब वह आता, तब वह कुछ अपने बगल में छिपाए रहता। दोपहर तक नहीं निकालता था। एक तख्त छिपाए रखता था अपने कपड़ों में। दोपहर तक मांगता रहता लोगों से चिल्ला-चिल्लाकर; फिर दोपहर तक थक जाता। तो वह तख्ती निकालकर अपने सामने रखकर पीछे चुप बैठ जाता। तख्ती पर लिखा होता था, आई एम डेफ एंड डंब, मैं गूंगा और | बहरा हूं । थक जाता दोपहर तक। फिर चिल्लाने की ताकत न रहती, तो गूंगा और बहरा हो जाता। शराब पीने की उसे आदत थी। सभी भिखारियों को होती है। सिर्फ सम्राट बच सकते हैं। और अगर सम्राट भी पीते हों, तो जानना कि भिखारी हैं । और अगर भिखारी भी न पीते हों, तो जानना कि सम्राट हैं। असल में जो आदमी दुखी है, वह अपने को बेहोश करने से नहीं बच सकता। और दुखी कौन होता है इस जगत में ? दुखी वही होता है, जिसकी 373

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