Book Title: Gita Darshan Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 438
________________ गीता दर्शन भाग-20 करना, कुछ करना ही मत। उस दिन पूरे विश्राम में भीतर चले | वासनाएं भभकाए चले जा रहे हैं। खुद रोज उसमें पेट्रोल डालते हैं। जाना। और जब आग जोर से जलती है, तो कहते हैं कि बड़ी तकलीफ पर नहीं; उस दिन सिनेमा देखना है, थिएटर जाना है! टिकटें उठा रहा हूं; बड़ी मुश्किल में पड़ा हुआ हूं। खरीद ली गई हैं। सारा उपद्रव पहले से तैयार है। पवित्र दिन को रोज अपेक्षा में जीते हैं, फिर दुख आता है, तो कहते हैं कि बड़ी अपवित्र करने की पूरी तैयारी पहले से है। तो फिर अंतर में उतरने | तकलीफ में पड़ा हूं! किसने कहा था, अपेक्षा करो? एक्सपेक्टेशन का समय कब आएगा? कब? फिर शायद कभी न आए। आज से | किया कि दुख आया। रोज वासना से भर रहे हैं और कह रहे हैं ही, अभी से ही जो थोड़ा-थोड़ा भीतर की तरफ यात्रा करने कि बड़ा विषाद आता है मन में; बड़ा हारापन लगता है। किसने लगे...। कहा था? तो सांख्य का कहना है कि ज्ञान है आपके पास; वह आपका लाओत्से ने कहा है कि मुझे कोई कभी हरा नहीं सका, क्योंकि स्वभाव है। कोई अर्जन नहीं करना है। वह आप हैं ही। सिर्फ जानना हम सदा से हारे ही हुए हैं। हमने कभी जीतने की इच्छा ही न की। है; जागना है; होश से भरना है कि मैं कौन हूं। विश्राम पाने कहीं | हमें कोई हरा ही न सका, क्योंकि जीतने की हमने कभी इच्छा न जाना नहीं है किसी यात्रा पर। जहां खड़े हैं, वहीं मिल जाएगा। एक की। लाओत्से ने कहा है, हमें कभी कोई घर के बाहर न निकाल बार पीछे लौटकर देखना है कि मैं कहां हूं! सका, क्योंकि हम किसी के भी घर गए, तो बाहर ही बैठे, दरवाजे ज्ञान किसी के हाथ से भीख नहीं मांगनी है। कोई सिखाएगा नहीं | पर ही बैठे। हमने कहा, इसके पहले कि निकालने का मौका आए, ज्ञान। ज्ञान दबा पड़ा है; ऐसे ही जैसे कि हर जमीन के नीचे पानी हम बाहर ही बैठ जाते हैं। कोई हमें दुख न दे सका, लाओत्से ने दबा है। जरा मिट्टी की पर्तों को अलग करना है, और पानी के कहा है, क्योंकि हमने सुख की कभी किसी से मांग ही न की। कोई फव्वारे छूटने लगेंगे। | हमारा दुश्मन न था इस जमीन पर, क्योंकि हमने कभी किसी को हां, यह हो सकता है कि कहीं सौ फीट पर है, कहीं पचास फीट मित्र बनाने की चेष्टा ही न की। पर है, कहीं दस फीट है, कहीं दो फीट पर है। यह फर्क हो सकता अब यह जो आदमी है, यह जिस विराम, जिस शांति और जिस है मिट्टी की पर्तों का। क्योंकि सभी लोगों ने अलग-अलग जन्मों | आनंद को उपलब्ध होगा, वह सांख्य की स्थिति है। में अलग-अलग मिट्टी की पर्ते निर्मित कर ली हैं। लेकिन एक बात शेष कल हम बात करेंगे। उठेगा कोई भी नहीं। बैठे रहें। एक सुनिश्चित है, ऐसा कोई जमीन का टुकड़ा नहीं है, जिसके नीचे भी जन न उठे। मौन से देखें इस नृत्य को। देखें इसमें परमात्मा की पानी न दबा हो। कितना ही गहरा हो, एक बात का आश्वासन दिया छवि को, चारों तरफ नाचते हुए। शायद कुछ हो सके। जा सकता है कि पानी दबा ही है। चट्टान भी आ जाए बीच में, तो कोई हर्ज नहीं: पानी तो नीचे है ही। बीच की पर्त को अलग कर देंगे और जल-स्रोत उपलब्ध हो जाते हैं। ऐसा ही ज्ञान दबा है भीतर। पर भीतर की यात्रा, दि इनवर्ड जर्नी, कब करेंगे? कैसे करेंगे? जिसने पोस्टपोन किया, वह कभी नहीं करेगा। जिसने कहा, कल करेंगे, अच्छा है कि वह कह दे कि नहीं करेंगे। वह कम से कम सच्चा तो रहेगा। कल नहीं। घर में आग लगी हो, तो कोई नहीं कहता कि कल बुझाएंगे! जिंदगी में लगी है आग, और आप कहते हैं, कल! जिंदगी पूरी जलती हुई है-दुख, पीड़ा, चिंता, संताप-सब तरफ धुआं और आग है। और आप कहते हैं, कल! तो इसका मतलब यही है कि आपको पता ही नहीं है कि आप क्या कर रहे हैं। और आप ही हैं कि अपनी इस जलती हुई आग में रोज पेट्रोल डाले चले जा रहे हैं, |

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