Book Title: Gita Darshan Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 388
________________ गीता दर्शन भाग-28 एक बच्चे को हम सिखाने बैठते हैं। उससे हम कहते हैं कि ग पहली बात तो यह कि पाप और पुण्य केवल उसी के जीवन की गणेश का। अब सेकुलर गवर्नमेंट आ गई, तो अब हम कहते हैं, धारणाएं हैं, जिसे खयाल है कि मैं कर्ता हूं। इसे ठीक से खयाल में ग गधे का! धर्मनिरपेक्ष राज्य हो गया, अब गणेश को तो उपयोग ले लें। जो मानता है, मैं कर्ता हूं, करने वाला हूं, फिर उसे यह भी कर नहीं सकते! गधा सेकुलर है, धर्मनिरपेक्ष! गणेश तो धार्मिक मानना पड़ेगा कि मैंने बुरा किया, अच्छा किया। अगर परमात्मा कर्ता बात हो जाएगी। इसलिए बदलना पड़ा किताबों में। पर गधे से या| नहीं है, तो अच्छे-बुरे का सवाल नहीं उठता है। जो आदमी मानता गणेश से ग का क्या लेना-देना? फिर बच्चा बड़ा हो जाएगा, तो | है कि मैंने किया, फिर वह दूसरी चीज से न बच सकेगा कि जो उसने हर बार जब भी पढ़ेगा कुछ, तो क्या पढ़ेगा कि ग गणेश का, ग | किया, वह ठीक था, गलत था, सही था, शुभ था, अशुभ था! गधे का ? भूल जाएंगे। गधे भी भूल जाएंगे, गणेश भी भूल जाएंगे। कर्म को मान लिया कि मैंने किया, तो फिर नैतिकता से बचना ग बचेगा। मुक्त हो जाएगा, जिससे जोड़कर बताया था। लेकिन | असंभव है। फिर नीति आएगी। क्योंकि कोई भी कर्म सिर्फ कर्म बताते वक्त बहुत जरूरी था। नहीं है। वह अच्छा है या बुरा है। और कर्ता के साथ जुड़ते ही आप अगर हम बच्चे को बिना किसी प्रतीक के बताना चाहें, तो बता | अच्छे और बुरे के साथ भी जुड़ जाते हैं। अच्छे और बुरे से हमारा न सकेंगे। और अगर बड़ा होकर भी बच्चा प्रतीक को पकड़े रहे, संबंध कर्ता के बिना नहीं होता। जिस क्षण हमने सोचा कि मैंने तो गलती हो गई; वह पागल हो गया। दोनों करने पड़ेंगे। प्रतीक | किया, उसी क्षण हमारा कर्म विभाजन हो गया, अच्छे या बुरे का से यात्रा शुरू करनी पड़ेगी, और एक घड़ी आएगी, जब प्रतीक | निर्णय हमारे साथ जुड़ गया। तो परमात्मा तक अच्छा और बुरा नहीं छीन लेना पड़ेगा। | पहुंच पाता, क्योंकि कर्ता की कोई धारणा वहां नहीं है। तो कृष्ण द्वैत की बात करेंगे, करते रहेंगे, करते रहेंगे। और जब ऐसा समझें कि पानी हमने बहाया। जहां गड्ढा होगा, वहां पानी लगेगा कि अर्जुन उस जगह आया, जहां द्वैत छीना जा सकता है, तो | भर जाता है। गड्ढा न हो, तो पानी उस तरफ नहीं जाता। कर्ता का अद्वैत की बात भी करेंगे। उस इशारे की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। लेकिन | गड्डा भीतर हो, तो ही अच्छे और बुरे कर्म उसमें भर पाते हैं। वह न इस घड़ी तक, अभी तक अर्जुन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। | हो, तो नहीं भर पाते हैं। कर्ता एक गड्डे का काम करता है। परमात्मा इसलिए कृष्ण प्रकृति और परमात्मा, दो की बात कर रहे हैं। के पास कोई गड्डा नहीं है, जिसमें कोई कर्म भर जाए। कर्ता नहीं है। परमात्मा की तो बात दूर, हममें से भी कोई अगर कर्ता न रह जाए, तो न कुछ अच्छा है, न कुछ बुरा है। बात ही समाप्त हो गई। अच्छे नादत्ते कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं विभुः। और बुरे का खयाल तभी तक है, जब तक हमें भी खयाल है कि अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यति जन्तवः ।। १५ ।। मैं कर्ता हैं। और सर्वव्यापी परमात्मा न किसी के पापकर्म को और न मुझे निरंतर प्रीतिकर रही है एक घटना। कलकत्ते के एक मुहल्ले किसी के शुभकर्म को भी ग्रहण करता है, किंतु माया के | में एक नाटक चलता था। पुरानी बात है। एक बड़े बुद्धिमान आदमी द्वारा ज्ञान ढंका हुआ है। इससे सब जीव मोहित हो रहे हैं। | विद्यासागर देखने गए हैं। सामने ही बैठे हैं। प्रतिष्ठित, नगर के जाने-माने पंडित हैं। सामने बैठे हैं। फिर नाटक कुछ ऐसा है, कथा कुछ ऐसी है कि उसमें एक पात्र है, जो एक स्त्री को निरंतर सता र न ही वह परम शक्ति किसी के पाप या किसी के | | रहा है, परेशान कर रहा है। बढ़ती जाती है कहानी। उस स्त्री की ll पुण्य या अशुभ या शुभ कर्मों को ग्रहण करती है। उस | परेशानी और उस आदमी के हमले और आक्रमण भी बढ़ते चले ____ परम शक्ति को शुभ-अशुभ का भी कोई परिणाम, | जाते हैं। और फिर एक दिन एक अंधेरी गली में उसने उस स्त्री को कोई प्रभाव नहीं होता है। लेकिन हम, वे जो अज्ञान से दबे हैं, वे | | पकड़ ही लिया। बस, फिर बरदाश्त के बाहर हो गया विद्यासागर जो स्वप्न में खोए हैं, वे उस स्वप्न और अज्ञान और माया में डूबे के। छलांग लगाकर मंच पर चढ़ गए, निकाला जूता और पीटने हुए, पाप और पुण्य के जाल में घूमते रहते हैं। इसमें दो-तीन बातें | लगे उस आदमी को! समझ लेने जैसी हैं। लेकिन उस आदमी ने विद्यासागर से भी ज्यादा बुद्धिमानी का 362]

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