Book Title: Gita Darshan Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 390
________________ गीता दर्शन भाग-28 हो जाने हो, घोड़े हो गए। घोड़े की आवाज करो! तो वह हिनहिनाने लगेगा। मैं एक युवक पर प्रयोग कर रहा था। उसे मैंने बेहोश किया। उसका मन मान लेता है कि मैं घोड़ा हो गया। अब उसको खयाल और मैंने उसे बेहोशी में पोस्ट-हिप्नोटिक सजेशन के लिए कहा कि भी नहीं रहा कि वह आदमी है। वह घोड़े की तरह हिनहिनाने जब तू होश में आ जाएगा, तब यह जो तकिया रखा हुआ है तेरे लगेगा। उसके मुंह में प्याज डाल दो और कहना कि यह बहुत पास, तू इसे बिना छाती से लगाए, बिना चूमे नहीं रहेगा, इसका तू सुगंधित मिठाई का टुकड़ा डाल रहे हैं। वह प्याज की दुर्गंध उसे | चुंबन लेकर रहेगा। यह बड़ा प्यारा तकिया है। इससे ज्यादा सुंदर नहीं आएगी, उसे सुगंधित मिठाई मालूम पड़ेगी। वह बड़े रस से | न तो कोई स्त्री है पृथ्वी पर, न कोई पुरुष है। यह मैंने उसे बेहोशी लेगा और कहेगा, बहुत मीठी है, बड़ी सुगंधित है। | में कहा। मान लिया उसने। उसने तकिए पर हाथ फिराकर देखा। अचेतन मैंने कहा, देखता है कितनी सकोमल त्वचा है इसकी। इस तकिए की संभावना है। जो भी हम होना चाहें, वह हम हो जा सकते हैं। | की चमड़ी कितनी सुकोमल है! उसने कहा, हां, बहुत सुकोमल है। यह तो आपने कोशिश करके सम्मोहन पैदा किया, लेकिन जन्म के कितनी गुदगुदी है! उसने कहा, बहुत गुदगुदी है। मैंने कहा, होश साथ हम अनंत जन्मों के सजेशन साथ लेकर आते हैं। उनका एक | में आने के बीस मिनट बाद तू रुक न सकेगा। इस तकिए को छाती गहरा सम्मोहन हमारे पीछे अचेतन में दबा रहता है। अनंत जन्मों में से लगाकर रहेगा और चुंबन भी लेगा। हम जो संस्कार इकट्ठे करते हैं, वे हमारे अनकांशस माइंड में, फिर उसे होश में ला दिया गया। दस-पांच मित्र बैठकर इसको अचेतन मन में इकट्ठे हैं। वे इकट्ठे संस्कार भीतर से धक्का देते रहते देखते थे। फिर वह होश में आ गया, सब बातचीत करने लगा। हैं। हमसे कहते रहते हैं, यह करो, यह करो। यह हो जाओ, यह | | सब तरह से सब दस मित्रों ने जांच कर ली कि वह बराबर होश में हो जाओ, यह बन जाओ। वे हमारे भीतर से हमें पूरे समय धक्का | | आ गया है। बाथरूम गया; लौटकर आया। उससे एक गणित करवाया; उसने जोड़ करके बताया। किताब पढ़वाई। किताब जब आप क्रोध से भरते हैं, तो आपने कई बार तय किया है कि | पढ़कर उसने बताई। उसने कहा, यह सब क्या करवा रहे हैं! वह अब दुबारा क्रोध नहीं करूंगा। लेकिन फिर जब क्रोध का मौका | | बिलकुल होश में है। लेकिन बस, अठारह मिनट के बाद, जैसे आता है, तो सब भूल जाते हैं कि वह तय किया हुआ क्या हुआ! | बीस मिनट करीब घड़ी आने लगी, उसकी बेचैनी बढ़ने लगी और फिर क्रोध आ जाता है। फिर तय करते हैं, अब क्रोध नहीं करूंगा। माथे पर पसीना आने लगा। वही पसीना, जो कोई पुरुष किसी स्त्री शर्म भी नहीं खाते कि अब तय नहीं करना चाहिए। कितनी बार तय | के सामने प्रेम निवेदन करते वक्त अनुभव करता है। अब वह कर चुके! अब कम से कम तय करना ही छोड़ो। फिर तय करते हैं | | तकिए से जुड़ गया है अचेतन में। कि अब क्रोध नहीं करेंगे। फिर कल सुबह! __ अब हम सारे लोग, और वह तकिया मेरे पीछे रखा है, वे सज्जन आदमी की स्मृति बड़ी कमजोर है। वह भूल जाता है, कितनी मेरे बगल में बैठे हैं। लेकिन अब उनका किसी में रस नहीं है। वे दफे तय कर चुका। अब तो मुझे खोजना चाहिए कि तय कर लेता चोरी-चोरी से उस तकिए को बार-बार देखने लगे हैं। वैसे ही जैसे हूं, फिर भी करता हूं, इसका मतलब क्या है? इसका मतलब यह कि कोई किसी के प्रेम की माया में पड़ता है, तो सारी दुनिया बैठी है कि आपके अचेतन से क्रोध आता है और निर्णय तो चेतन में रहे, कोई नहीं दिखाई पड़ता! सम्मोहन है। बिलकुल अचेतन की होता है। तो चेतन का निर्णय काम नहीं करता। ऊपर-ऊपर निर्णय | | बेहोशी है। होता है, भीतर तो जन्मों का क्रोध भरा है। जब वह फूटता है, सब | | मैंने तकिया और दूर हटा दिया। जब मैंने तकिया छुआ, तो उसको निर्णय वगैरह दो कौड़ी के अलग हट जाते हैं, वह फूटकर बाहर वैसी ही चोट लगी, जैसे कोई किसी की प्रेयसी को छू दे। उसके चेहरे आ जाता है। वह सम्मोहित क्रोध है; वह माया है। | पर सारा भाव झलक गया। फिर मैं उठा, और जैसे ही बीस मिनट कितनी बार तय किया है कि ब्रह्मचर्य से रहेंगे। लेकिन वह सब करीब आने को थे, मैं तकिए को उठाकर जाकर अलमारी में बंद बह जाता, वह कहीं बचता नहीं। जन्मों-जन्मों की यात्रा में करने लगा। वह भागा हुआ मेरे पास आया और बिलकुल होश के कामवासना गहरी होती चली गई है, वह बड़ी भीतर बैठ गई है, वह बाहर उसने तकिया छीना, चूमा और छाती से लगाया। सम्मोहक है। सारे लोग हंसने लगे। उन्होंने कहा, तुम यह क्या कर रहे हो? वह 3641

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