Book Title: Gita Darshan Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 372
________________ गीता दर्शन भाग-20 अभी। आकांक्षाओं के पाश में बंधकर खिंचता है। वह आदमी नहीं है। यह आप पर निर्भर करता है कि जहां आप प्रवेश कर रहे हैं, वह मंदिर है या मकान। जिस भूमि पर आप निष्काम होकर खड़े हो आदमी कौन है? आदमी वह है, जो अतीत के धक्के को भी नहीं जाएं, वह तीर्थ हो जाती है। और जिस भूमि पर आप सकाम होकर मानता और जो भविष्य की आकांक्षा को नहीं मानता, जो वर्तमान खड़े हो जाएं, वह पाप हो जाती है। भूमि पर निर्भर नहीं है यह। यह के कर्म में जीता है। जो अतीत के धक्के को भी स्वीकार नहीं करता आप पर निर्भर है। लेकिन हम तो पूरे समय कामवासना से ही जीते और जो भविष्य के आकर्षण को भी स्वीकार नहीं करता। जो कहता हैं। कुछ भी करेंगे...। है, मैं तो अभी, यह जो क्षण मिला है, इसमें जीऊंगा। एक मित्र कल मेरे पास आए। उन्होंने कहा कि इस भजन-कीर्तन लेकिन यह जीना तभी संभव है, जब कोई अतीत को और | से क्या मिलेगा? मैं भी करना चाहता हूं, लेकिन मिलेगा क्या? भविष्य को परमात्मा पर समर्पित कर दे। अन्यथा अतीत धक्के स्वाभाविक। न मिले, तो नाहक परेशान होने से कोई सार नहीं। मैंने मारेगा, अन्यथा भविष्य खींचेगा। उनसे कहा कि जब तक मिलने का खयाल है, तब तक कीर्तन न आदमी बहुत कमजोर है। आदमी स्वभावतः बहुत सीमित शक्ति | कर पाओगे। क्योंकि मिलने के खयाल से तो कीर्तन का कोई संबंध का है। आदमी भविष्य को और अतीत को बिना परमात्मा के सहारे ही नहीं जुड़ता। फिर दूकान करो। के छोड़ना बहुत मुश्किल पाएगा। लेकिन परमात्मा को समर्पित | कीर्तन का तो अर्थ ही यह है कि कुछ घड़ी ऐसी भी है, जब हम करके आसान हो जाती है बात। छोड़ देता है कि जो तेरी मर्जी होगी, कुछ भी नहीं पाना चाहते। कुछ दस क्षण के लिए हम ऐसे जीना कल वह हो जाएगा। अभी जो समय मुझे मिला है, वह मैं काम में | चाहते हैं कि कुछ पाना नहीं, नान-परपजिव, कोई प्रयोजन नहीं है। लगा देता हूं। और मेरा आनंद इतना ही है कि मैंने काम किया; फल | जीवन मिला है, इसके आनंद में, इसके उत्सव में नाच रहे हैं। से मेरा कोई प्रयोजन नहीं है। | श्वास चल रही है, इसके आनंद-उत्सव में नाच रहे हैं। परमात्मा __ आनंद जिसका कर्म बन जाता है! लेकिन तभी बन पाता है, जब | ने हमें भी इस योग्य समझा कि जीवन दे, इसकी खुशी में नाच रहे कोई प्रभु पर समर्पित करने की सामर्थ्य रखता है। इसलिए कृष्ण | | हैं। कुछ पाने के लिए नहीं, धन्यवाद की तरह, एक आभार, कहते हैं, फल की आकांक्षा को छोड़कर, निष्काम होकर प्रभु को | | ग्रेटिटयूड की तरह। कीर्तन एक आभार है, बैंक्स गिविंग। कुछ पाने समर्पित कर देता है जो सारा जीवन, वही आनंद को उपलब्ध होता | के लिए प्रयोजन नहीं है। कुछ मिलेगा नहीं उससे। है। कामीजन, सकामीजन कभी आनंद को उपलब्ध नहीं होते। दुख | ऐसा जब मैं कहता हूं, कुछ मिलेगा नहीं उससे, तो आप यह का धुआं ही उनका फलश्रुति है। | मत समझ लेना कि जो कीर्तन करते हैं, उन्हें कुछ मिलता नहीं है। लेकिन हम तो अगर मंदिर में परमात्मा पर कुछ समर्पण भी करने | | ऐसा मत समझ लेना। जब मैं कहता हूं, कुछ मिलेगा नहीं, तो मैं जाएं, तो सकाम होते हैं। प्रार्थना भी हम मुफ्त में नहीं करते; प्रार्थना | यह कहता हूं कि कीर्तन में आना हो, तो मिलने का खयाल छोड़कर में भी हम कुछ पाना चाहते हैं! हाथ भी जोड़ते हैं परमात्मा को, तो | आना। जो आ जाता है, उसे तो बहुत मिलता है, जिसका कोई शर्त, कंडीशन होती है। कुछ मिल जाए। जिसे कुछ नहीं चाहिए, | | हिसाब नहीं है। लेकिन उसका खयाल रखकर जो आएगा, उसको वह मंदिर जाता नहीं। जाता ही तब है कोई, जब उसे कुछ चाहिए। नहीं मिलेगा। यह कठिनाई है। और ध्यान रहे, जब कोई कुछ मांगने मंदिर जाता है, तो मंदिर | अगर आप यह खयाल रखकर आए कि बहुत कुछ मिलेगा, तो पहुंच ही नहीं पाता। मंदिर पहुंच ही नहीं सकता है। मंदिर के द्वार | आप खाली हाथ लौट जाएंगे। और अगर आप खाली मन आए; पर ही निष्काम हो जाए जो, वही भीतर प्रवेश कर सकता है। । | कुछ लेने नहीं, सिर्फ प्रभु को धन्यवाद देने, बेशर्त; हृदय भर आप कहेंगे, हम तो मंदिर में रोज प्रवेश कर जाते हैं। जाएगा किसी अनूठे आनंद से। एक नया ही द्वार खुल जाएगा। आप मकान में प्रवेश करते हैं, मंदिर में नहीं। मंदिर और मकान | | ध्यान रहे, कृष्ण यह नहीं कह रहे हैं कि जो निष्काम कर्म करता में बड़ा फर्क है। जिस मकान में भी आप निष्काम प्रवेश कर जाएं, | है, उसे फल मिलता नहीं है। इस भूल में मत पड़ जाना कि उसको वह मंदिर हो जाता है। और मंदिर में भी सकाम प्रवेश कर जाएं, | | फल नहीं मिलता। और इस भूल में भी मत पड़ जाना कि जो सकाम वह मकान हो जाता है। कर्म करता है, उसको फल मिलता है। हालत बिलकुल उलटी है। 346

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