Book Title: Gita Darshan Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 384
________________ गीता दर्शन भाग-28 जो बच्चा अलग हुआ, उसकी ग्रोथ रुक गई, उसका विकास रुक बनाया जा सकता है। इसमें कोई अड़चन नहीं है। लेकिन फिर भी गया। उसके विकास में कोई बाधा पड़ गई। वह रुग्ण और बीमार | उसके भीतर से जो अनजानी धारा बहती थी, वह जो कैटेलिटिक रहने लगा। | एजेंट था मदरहुड का, मातृत्व का, वह नहीं पैदा किया जा सकता। चालीस साल के निरंतर अध्ययन के बाद पियागेट यह कहता है | दूध के साथ वह भी बहता था। अभी हमारे पास नापने का उसे कोई कि मां की मौजूदगी, प्रेजेंस कुछ करती है। सिर्फ उसकी मौजूदगी। | उपाय नहीं है। बच्चा खेल रहा है बाहर। मां बैठी है अपने मकान के भीतर। मां लेकिन हम आज नहीं कल...रोज-रोज जितनी हमारी समझ भीतर मौजूद है, बच्चा कुछ और है। सिर्फ मौजूदगी, एक मिल्यू, बढ़ती है, यह बात साफ होती चली जाती है कि मानवीय संबंधों में एक हवा मां की मौजूदगी की! भी कुछ बहता है। जब भी ऐसा कोई बहाव होता है, तभी हमें प्रेम अरब में एक बहुत पुरानी कहावत है कि चूंकि परमात्मा सब का अनुभव होता है। और जब परमात्मा और हमारे बीच ऐसा कोई जगह नहीं हो सकता था, इसलिए उसने माताओं का निर्माण किया। | बहाव होता है, तो हमें प्रार्थना का अनुभव होता है। ये दोनों अनुभव बहुत बढ़िया कहावत है। चूंकि परमात्मा सब जगह कहां-कहां किसी अदृश्य मौजूदगी के अनुभव हैं। आता. इसलिए उसने बहत-सी मां बना दीं. ताकि परमात्मा की लेकिन कष्ण कहते हैं. परमात्मा कछ करता नहीं। मौजूदगी मां से बह सके। ध्यान रहे, करना उसे पड़ता है, जो कमजोर हो। करना कमजोरी मां से कुछ बहता है, जो इम्मैटीरियल है, पदार्थगत नहीं है। का लक्षण है। जो शक्तिशाली है, उसकी मौजूदगी ही करती है। जिसको नापा नहीं जा सकता है। कोई ऊष्मा, कोई प्रीति, कोई स्नेह एक शिक्षक क्लास में आता है और आकर डंडा बजाकर की धार-शायद किसी दिन हम जान लें। विद्यार्थियों को कहता है कि देखो, मैं आ गया। मैं तुम्हारा शिक्षक बहुत-सी चीजें हैं, जो हमारे चारों तरफ हैं, अभी हम नाप नहीं | हूं। चुप हो जाओ! यह शिक्षक कमजोर है। सच में जब कोई पाए। जमीन में ग्रेविटेशन है, हम जानते हैं। पत्थर को ऊपर फेंकें, शिक्षक कमरे में आता है, तो सन्नाटा छा जाता है, उसकी मौजूदगी नीचे आ जाता है। लेकिन अभी तक ग्रेविटेशन नापा नहीं जा सका। | से। कहना पड़े, तो शिक्षक है ही नहीं। कि है क्या! यह जमीन की जो कशिश है, यह क्या है! चांद पर इसलिए पुराने सूत्र यह नहीं कहते कि गुरु को आदर करो। पुराने हम पहुंच गए हैं, लेकिन अभी कशिश के मामले में हम कहीं नहीं सूत्र कहते हैं, जिसको आदर करना ही पड़ता है, उसका नाम गुरु है। पहुंचे हैं। अभी हमें पता नहीं कि यह कशिश क्या है, जमीन जो | जिस गुरु को आदर करने के लिए कहना पड़े, वह गुरु नहीं है। खींचती है। | जो गुरु कहे, मुझे आदर करो, वह दो कौड़ी के योग्य है। वह कोई पियागेट कहता है कि मां और बेटे के बीच भी ठीक ऐसी ही | गुरु-कुरु नहीं है। गुरु है ही वह कि आप न भी चाहें कि आदर करो, कशिश है, कोई ग्रेविटेशन है। जिससे बेटा वंचित हो जाए, तो हमें | तो भी आदर करना ही पड़े। उसकी मौजूदगी, तत्काल भीतर से कुछ पता नहीं चलेगा, लेकिन सूखना शुरू हो जाएगा, मुाना शुरू हो बहना शुरू हो जाए। नहीं; वह चाहता भी नहीं। नहीं; वह कहता जाएगा। भी नहीं। उसे पता भी नहीं है कि कोई उसे आदर करे। लेकिन कोई आश्चर्य नहीं है कि अमेरिका में जिस दिन से परिवार उसकी मौजूदगी, और आदर बहना शुरू हो जाता है। शिथिल हआ और मां और बेटे के संबंध क्षीण हए. उसी दिन से परमात्मा परम शक्ति का नाम है। अगर उसको भी कछ करके अमेरिका विक्षिप्त होता जा रहा है। पचास सालों में अमेरिका रोज करना पड़े, तो कमजोर है। कृष्ण कहते हैं, वह कुछ करता नहीं है। पागलपन के करीब गया है। और अब मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि वह है, इतना ही काफी है। उसका होना पर्याप्त है। पर्याप्त से थोड़ा उस पागलपन का सबसे बड़ा कारण यह है कि मां और बेटे के बीच | ज्यादा ही है। और प्रकृति काम करती चली जाती है। उसकी संबंध की जो धारा थी, वह क्षीण हो गई। | मौजूदगी में सारा काम चलता चला जाता है। अमेरिका की स्त्री बच्चे को दूध पिलाने को राजी नहीं है। क्योंकि | लेकिन प्रकृति बर्तती है अपने गुणों से, अपने नियमों से। वैज्ञानिक कहते हैं, इतना ही दूध तो बोतल से भी पिलाया जा सकता। इसलिए जो ज्ञान को उपलब्ध हो जाता है, जो इस मौलिक तत्व को है। और कोई हैरानी नहीं है कि मां के स्तन से भी अच्छा स्तन और आधार को समझ लेता है, वह फिर मैं करता हूं, इस भ्रांति से 3581

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