Book Title: Gita Darshan Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 368
________________ 0 गीता दर्शन भाग-20 कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि। | जाते हैं। बच्चे सरल होते, बूढ़े जटिल हो जाते हैं। जिंदगी के सारे योगिनः कर्म कुन्ति सङ्गं त्यक्त्वात्मशुद्धये ।। ११।। | अनुभव उन्हें और गड्ढों में पहुंचा देते हैं। इसलिए निष्काम कर्मयोगी ममत्व बुद्धिरहित केवल इंद्रिय, | तो हम उतार पर हैं, एक तो यह बात खयाल में ले लें। और मन, बुद्धि और शरीर द्वारा भी आसक्ति को त्यागकर | अनंत जन्मों का हमारे कर्मों का मोमेंटम है, गति है। अगर मैं आज अंतःकरण की शुद्धि के लिए कर्म करते हैं। | सारे काम बंद भी कर दूं, तो कोई अंतर नहीं पड़ता; मेरा मन फिर भी उतरता चला जाएगा। इसलिए कृष्ण ने इसमें एक बहुत अदभुत बात कही। उन्होंने 1 मत्व बुद्धि को त्यागकर अंतःकरण की शुद्धि के लिए, | कहा है कि ऐसे पुरुष, जो निष्काम कर्म में जीते हैं, वे अपने पिछले 01 जो जानते हैं, वे पुरुष शरीर, मन, इंद्रियों से काम | कर्मों की जो गति है, उसे काटने के लिए कर्म में रत होते हैं। वह __करते हैं। जो उन्होंने गति दी है पिछले जन्मों में अपने कर्मों की, वह जो किया इस संबंध में दो-तीन बातें खयाल में ले लेनी चाहिए। है, उसे अनडन करने के लिए, उसे पोंछ डालने के लिए. कर्म में एक, मनुष्य ने जो भी किया है अनंत जीवन में, आज तक, इस | रत होते हैं। घड़ी तक, उस कर्म का एक बड़ा जाल है। और आज ही मैं सब अगर उन्होंने क्रोध किया है अतीत जन्मों में, तो वे क्षमा के कर्म करना बंद कर दूं, तो भी मेरे पिछले अतीत जन्मों के कर्मों का जाल | में लग जाते हैं। अगर उन्होंने कठोरता और क्रूरता की है, तो वे टूट नहीं जाता है। उसका मोमेंटम है। जैसे मैं साइकिल चला रहा | | करुणा के कृत्य में लीन हो जाते हैं। अगर उन्होंने वासना और हूं। पैडल बंद कर दिए हैं, अब नहीं चला रहा हूं, लेकिन साइकिल | कामना में ही जीवन को बिताया है अनंत-अनंत बार, तो अब वे चली जा रही है-मोमेंटम है। दो मील से चलाता हुआ आ रहा हूं, | | सेवा में जीवन को लगा देते हैं। ठीक जो उन्होंने किया है अब तक, साइकिल के चाकों ने गति पकड़ ली है। अगर दो-चार-पांच मिनट | | उससे बिलकुल विपरीत, उतार की तरफ जाने वाला नहीं, चढ़ाव मैं बंद भी कर दं, तो भी साइकिल चलती चली जाती है। फिर अगर की तरफ जाने वाला कर्म वे शुरू कर देते हैं। उतार हो जीव जीवन में तब तो मीलों भी चली जा सकती है। चढाव हो. लेकिन उसमें भी एक शर्त कष्ण की है। और वह जिसे खयाल तो जल्दी रुक जाएगी। | में न रहेगी, वह भूल में पड़ सकता है। वह शर्त यह है कि ममत्व और जीवन में हमारे उतार है, चढ़ाव नहीं है। जैसे हम जीते हैं, | | को छोड़कर! क्योंकि कोई आदमी ममत्व के साथ, और ऊपर की वह सदा ही उतार में जीते हैं और नीचे, और नीचे, और नीचे। | यात्रा करना चाहे, तो गलती में है, यह असंभव है। बच्चे शिखर पर होते हैं, बूढ़े घाटियों में पहुंच जाते हैं। होना नहीं ___ ममत्व नीचे की यात्रा पर सहयोगी है, ममत्व ऊपर की यात्रा पर चाहिए। होना चाहिए उलटा, होता यही है। बच्चे एकदम पवित्र | | बाधा है। कर्म निर्मित करने हों, तो ममत्व कीमिया है, केमिस्ट्री है। सुगंध लेकर आते हैं, बूढ़े सिवाय दुर्गंध के और कुछ भी लेकर जाते | उसके बिना कर्म निर्मित नहीं होते। और कर्म काटने हों, तो ममत्व हुए मालूम नहीं पड़ते हैं। जिंदगी में हम कमाते कम, लुटते ज्यादा | तत्काल ही अलग कर देना जरूरी है, अन्यथा कर्म कटते नहीं। हैं। पाते कम, खोते ज्यादा हैं। ममत्व से अर्थ क्या है? ममत्व से अर्थ है, एक तो हूं मैं, जैसे मैं जिंदगी एक उतार है हमारी। रोज हम नीचे उतरते जाते हैं। कल | | खड़ा हो जाऊं धूप में, तो एक तो मैं हूं जो खड़ा हूं, और धूप में मेरी जिसने चोरी की थी, वह आज और भी ज्यादा चोरी करेगा। कल एक छाया बनेगी। वह छाया मेरे चारों तरफ, जहां मैं जाऊंगा, घूमती जो झूठ बोला था, आज वह और भी ज्यादा झूठ बोलेगा। कल जो रहेगी। मैं तो ईगो है और ममत्व ईगो की छाया है, अहंकार की छाया क्रोधी था, वह आज और क्रोधी हो जाएगा। और रोज यह क्रोध, | है। मैं तो मेरा खयाल है कि मैं हूं; और मैं अकेला नहीं हो सकता, यह हिंसा, यह घृणा, यह काम, यह वासना, रोज बढ़ते चले| इसलिए मैं मेरे के एक जाल को फैलाता हूं अपने चारों तरफ। जाएंगे। फिर मन एक निश्चित आदत बना लेता है। फिर अपनी || मेरे के बिना मैं के खड़े होने में बड़ी कठिनाई है। इसलिए मेरे आदतों को दोहराए जाता है, बढ़ाए चला जाता है। की छाया जितनी बड़ी हो, उतना ही लगता है कि मैं बड़ा हूं। मेरा हम उतार पर हैं। बच्चे श्रद्धा से भरे होते हैं, बूढ़े चालाकी से भर धन, मेरे मित्र, मेरा परिवार, मेरा मकान, मेरा महल, मेरे पद जितने 3421

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