Book Title: Gita Darshan Part 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 341
________________ ॐ वासना अशुद्धि है ® इससे धोखे में नहीं पड़ जाना है। और ध्यान रहे, सबलता अपने आप में, अपने आप में विजय अभी केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में कुछ विद्यार्थियों पर वे एक | | है। इसलिए निर्बल के लिए मार्ग नहीं है। प्रयोग कर रहे थे। तीस विद्यार्थियों को तीस दिन तक भूखा रखा | लेकिन शरीर को वश में करने के नाम पर बहुत हैरानी की था। दस दिन के बाद ही उन विद्यार्थियों की काम में, यौन में, सेक्स | घटनाएं सारी दुनिया में घटी हैं। आसान है शरीर को निर्बल करना; में कोई रुचि न रह गई। वे कोई संन्यासी न थे; न ही वे कोई साधक कठिन है आत्मा को सबल करना। भूखा मरना बहुत कठिन नहीं थे; न ही वे कोई योगी थे। लेकिन दस दिन के बाद नंगी तस्वीरें है। न ही शरीर को सताना बहत कठिन है। कुछ लोगों के लिए तो पास पडी रहें. तो वे उनको उठाकर भी नहीं देखेंगे। पंद्रह दिन बहुत आसान है। जिन लोगों को भी सताने की वत्ति है किसी को. के बाद तो उनसे अगर कोई बात करना चाहे वासना की, तो वे | किसी को भी सताने की जिनके मन में वृत्ति है...। दूसरे को सताने बिलकुल ही विरस हो गए। उनके चेहरों का रंग खो गया, उनके | | में कानून बाधा बनता है। पुलिस है, अदालत है। दूसरे को चेहरों की ताजगी खो गई, उनके शरीर की शक्ति खो गई। तीस दिन | सताइएगा, झंझट में पड़िएगा। सताना अगर निरापद रूप से करना पूरे होने पर तीसों से पूछा गया और उन तीसों ने कहा कि हमें याद | | है, तो अपने को सताइए। न कोई पुलिस रोक सकती है, न कोई भी नहीं आता कि कभी हमारे मन में कामवासना भी उठती थी। । कानून। बल्कि लोग जुलूस भी निकालेंगे, शोभा-यात्रा भी कि सब सूख गया। क्या शरीर वश में हो गया? दो दिन भोजन दिया तपस्वी हैं आप! गया, सब हरा हो गया। फिर वही वापस। फिर वे नंगी तस्वीरें सुंदर | इसलिए जो दुष्टजन हैं, वायलेंट, जिनके मन में गहरी हिंसा है, मालूम पड़ने लगीं। फिर नंगी फिल्म को देखने का रस आने लगा। | दूसरे पर हिंसा प्रकट करने में कठिनाई है, वे अपने पर हिंसा शुरू फिर वही बात, फिर वही मजाक, फिर वही अश्लीलता! सब लौट कर देते हैं। और आत्म-हिंसा को लोग तपश्चर्या समझ लेते हैं। आई। क्या हुआ! तपश्चर्या आत्महिंसा नहीं है। . अगर इन युवकों को जिंदगीभर न्यून भोजन पर रखा जाए, तो | और ध्यान रहे, जो आदमी अपने पर हिंसा करेगा, वह दूसरे पर जिंदगी में अब वासना फिर न सिर उठाएगी। लेकिन यह शरीर पर कभी भी अहिंसक नहीं हो सकता है। जो अपने पर अहिंसक नहीं विजय न हुई, यह शरीर की निर्बलता हुई। हो सका, वह इस पृथ्वी पर किसी पर भी अहिंसक नहीं हो सकता शरीर पर तो तभी विजय है, जब शरीर हो पूरा सबल; शरीर है। जीवन की सारी यात्रा स्वयं से शुरू होती है। निर्मित करता हो सभी रसों को; शरीर की शक्तियां हों पूर्ण युवा; ___ इसलिए मैं आपसे कहना चाहूंगा, और कृष्ण को जो जानते हैं शरीर के भीतर सब हो हरा और ताजा; और फिर भी, फिर भी वश | थोड़ा भी, वे स्वभावतः समझते हैं भलीभांति कि कृष्ण का अर्थ, में हो, तभी जानना कि शरीर वश में है। लेकिन यह तभी हो पाएगा, | शरीर को जीत लेता है जो, उससे किसी निर्बल. शरीर को सताने जब आत्मा सबल हो। वाले, मैसोचिस्ट, दुखवादी, आत्मपीड़क, आत्महिंसक व्यक्ति का दो रास्ते हैं शरीर को वश में करने के। एक-झूठा, धोखे का, | नहीं होगा, नहीं हो सकता है। कष्ण तो शरीर को बड़ा प्रेम करने डिसेप्टिव। प्रतीत होता है, वश में हआ होता कभी भी नहीं। वह | वाले व्यक्तियों में से एक हैं। रास्ता है, शरीर को निर्बल करो। एक दूसरा रास्ता है, वास्तविक, | ध्यान रहे, शरीर से भयभीत वही होता है, जिसकी आत्मा प्रामाणिक, आथेंटिक, जिससे ही केवल शरीर वश में होता है। वह | कमजोर है। क्योंकि अगर शरीर सबल हुआ, तो कमजोर आत्मा है, आत्मा को सबल करो। | मुश्किल में पड़ जाएगी। शरीर लेकर भागेगा। रथ है बहुत कमजोर, शरीर को निर्बल करो, तो भी वश में मालूम होता है; आत्मा को | | घोड़े हैं बहुत मजबूत, गड्ढे में गिरना निश्चित! डरेगा आदमी। सबल करो, तो वश में हो जाता है। शरीर को निर्बल करने से लेकिन रथ भी है मजबूत, सारथी भी है सबल, कुशलता भी है आत्मा सबल नहीं होती। आत्मा तो वहीं के वहीं होती है, जहां थी; | लगाम को हाथ में साधने की, फिर मजबूत घोड़ों का मजा है। फिर सिर्फ शरीर निर्बल हो जाता है। आत्मा के सबल होने से शरीर को घोड़ों को निर्बल करने की जरूरत नहीं है। निर्बल नहीं करना पड़ता; लेकिन आत्मा पार उठ जाती है, सबल | कृष्ण घोड़ों को निर्बल करने के पक्ष में नहीं हैं। कृष्ण आत्मा को होकर शरीर के ऊपर मालिक हो जाती है। | सबल करने के पक्ष में हैं। यह आत्मा सबल कैसे हो जाएगी? 315

Loading...

Page Navigation
1 ... 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464