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गणितानुयोग : प्रस्तावना
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४७
.१४३१३०
बढ़ती, सर्वाबाह्य मण्डल की ओर ली गई हैं। ये मान माध्यमान इसलिए १ अभिवद्धित मास में १६ ६२८ की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं । इसी प्रकार मुहूर्त गति घटती
घटती सर्व अभ्यंतर मण्डल की ओर गति करता है। इस प्रकार १६१४ नक्षत्र मन्डल प्राप्त होते हैं। (सू० प्र०, भाग २,
यहाँ त्वरण (acceleration), मुहूर्त-गति की हानि वृद्धि की
कल्पना की गई है। पृ० ७७६)।
सूत्र ६८८ पृ० ४७६ सूत्र ९७५, पृ० ४६५
सूर्य नक्षत्रों से योगों में चन्द्र योग १० प्रकार के बतलाये इस गाथा में विभिन्न कालों में चन्द्र उदय की दिशाएँ दी गईं गये हैं, जो १ युग में घटित होते हैं। इनमें छत्रातिछत्र योग हैं जो ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं ।
कदाचित् कोईक देश में होता है, क्योंकि वह योग नियत एक रूप सूत्र ६७६, पृ० ४६६
ही रहता है। यहाँ चित्रा नक्षत्र में उक्त योग को अवलोकन यहाँ चन्द्र की वृद्धि हानि का कारण राह के द्वारा आवृत्त करने हेतु गणित भावना दी गयी है। ऐतिहासिक दृष्टि से इस होना बतलाया गया है। प्रतिदिन पन्द्रहवां भाग को बासठिया योग का शोध होना चाहिए ।
सूत्र ६८६ पृ० ४७६, ४७८ भाग भी कहा है। अर्थात ६२ में से १५ भाग करने पर ४ .
इस सूत्र में ६२ पूर्णिमाओं सम्बन्धी चन्द्र सूर्य के मण्डल भाग प्रतिदिन आच्छादित अथवा अनावरित होना माना जायेगा।
प्रदर्शभाग का विचार किया गया है। पंचवर्षात्मक युग में ६२
पूर्णिमाएँ एवं ६२ अमावस्याएँ इस प्रकार कुल १२४ सूर्यचन्द्र सूत्र ६७७, पृ० ४६७
योग होते हैं। प्रथम पूर्णिमा को चन्द्र, ६२वीं पूर्णिमा को जिस शुक्लपक्ष में चन्द्र राहु द्वारा ४४२, मुहूर्त अनावृत्त होता प्रदेश में समाप्त करता है, उसके परवर्ती मण्डल के १२४ विभाग
में से ३२वें विभाग को ग्रहण करते हैं जहाँ चन्द्र प्रथम पूर्णिमा
का योग होता है। इसी प्रकार परवर्ती मण्डल का १२४ है और कृष्णपक्ष में ४४२ ६३ मुहूर्त आच्छादित होता है।
विभाग कर पुनः ३२वें भाग में दूसरी पूर्णिमा का योग होता है । ६२ भाग अनावत्त/आच्छादन प्रतिदिन मानने पर . वास्तव में पूर्णिमायोग आधुनिक मान्यतानसार सर्यचन्द्र कल्पित भाग होते हैं। एक भाग अमावस्या की रात्रि में भी आमने-सामने पृथ्वी के विरुद्ध दिशाओं में रहते हैं। किन्तु जैन नित्य राहु से अनावृत्त होने से कुल ६३१ कल्पित चन्द्र भाग ज्योतिष में १८४ मण्डलों का गणित दूसरे प्रकार का है। १२४ होते हैं। यह ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है ।
में से ३२ भाग प्रथम पूर्णिमा के होने से निकल जाने पर, पुनः
३२ भाग जाने पर, पाँच संवत्सरों वाले युग मध्य की दूसरी सूत्र ६८१, पृ० ४६६
पूर्णिमा का प्रदेश प्राप्त होता है जब उक्त मण्डल के १२४ भाग जम्बूद्वीप में १८० योजन अवगाहन से पाँच चन्द्र मण्डल
में से अगले ३२ भाग लेते हैं। ये पांच संवत्सर क्रमशः चन्द्र, और लवण समुद्र में ३३० योजन अवगाहन से दस चन्द्र मण्डल
चन्द्र, अभिवद्धित, चन्द्र एवं अभिवद्धित नाम वाले हैं। अब होते हैं । इस प्रकार कुल ५१० योजन का अवगाहन से १५ चन्द्र
तीसरी पूर्णिमा के मण्डल प्रदेश को जानने के लिए दूसरी पूर्णिमा मण्डल कहे गये हैं जो इतिहास की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
के परिसमापक स्थान के परवर्ती मण्डल को ग्रहण कर उसके सूत्र ६८२, ६८६, पृ० ४६६, ४७४
१२४ भाग करते हैं उसमें ६४ भाग निकल जाने पर ३२ और इन गाथाओं में प्रत्येक चन्द्र मण्डल का योजनों में अन्तर, आगे के भाग १२४ में से लेते हैं। सर्वाभ्यंतर एवं सर्वबाह्य चन्द्र मण्डलों का अन्तर, सर्व आभ्यन्तर यदि प्रश्न हो कि इस पंच संवत्सर वाले युग के प्रथम वर्ष के
और बाह्य चन्द्र मण्डलों का आयाम-विष्कम्भ तथा परिधि दी गई अन्त की बारहवीं आषाढ़ी पूर्णिमा को चन्द्र किस प्रदेश में रहकर हैं। इनमें दाशमिक संकेतना, 7 का मान, महत्वपूर्ण हैं । पुनः समाप्त करता है । यहाँ ज्ञात है कि बारहवीं पूर्णिमा तीसरी पूर्णिमा सर्वाभ्यंतर और बाह्य चन्द्र मन्डलों में चन्द्र की १ मुहूर्त की गति से नवमी होती है। यहाँ ध्रुवांक ३२ होता है और हवीं पूर्णिमा व प्रमाण भी दिया गया है। स्पष्ट है कि योजन और मुहूर्त का के लिए तीसरी पूर्णिमा वाले मण्डल के स्थान से ३२४६२८८ यहाँ गणितीय सम्बन्ध जोड़ा गया है। मुहूर्त गति भी बढ़ती- भाग आगे जाकर होती है ।