Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 2
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 358
________________ उत्तराधिकार में माता के प्राथम्य का शास्त्रार्थ ६१७ इस मत की आलोचना की है। मिताक्षरा ने माता को वरीयता तीन कारणों से दी है, जिनमें दो व्याकरण के आधार पर प्रस्तुत किये गये हैं; याज्ञवल्क्य में जो 'पितरौ' शब्द आया है वह 'एकशेष' द्वन्द्व समास है, इसके विग्रह में या इतरेतरयोग द्वन्द्व में माता का स्थान प्रथम आता है, अतः उसे वरीयता मिलनी चाहिये। तीसरा कारण यह है-- एक पिता की कई पत्नियाँ और उनसे कई पुत्र हो सकते हैं, अतः माता अपने पुत्र से ही सीधे रूप में सम्बन्धित है न कि अपने पति के अन्य पुत्रों से । इसी से मिताक्षरा का कहना है कि माता पिता की अपेक्षा अपने पुत्र से अपेक्षाकृत अधिक सन्निकट ( प्रत्यासन्न ) है । ३४ 'स्मृतिचन्द्रिका' (२, पृ० २६७) एवं 'व्यवहारमयूख' ने उक्त व्याकरण सम्बन्धी तर्क नहीं माना है । किन्तु व्यवहारप्रकाश ( पृ० ५२५) ने, माता च पिता च पितरौ ' के अनुसार माता को ही प्रथम स्थान दिया है । 'पिता की अपेक्षा माता अधिक सन्निकट है, इस विषय में जो तर्क है वह सुन्दर है । 'पुल' की बात पर ध्यान दिया जाय तो इस विषय में माता एवं पिता दोनों समान रूप से सन्निकट हैं, किन्तु व्यवहारप्रकाश का तर्क है कि जहां तनिक भी अन्तर पाया जाता है वरीयता घोषित कर दी जाती है, अतः "माता च पिता च पितरी" में माता को प्रथम स्थान की वरीयता प्राप्त है इसलिए वह उत्तराधिकार में प्रथम स्थान पाती है । 'व्यवहारप्रकाश' ( पृ० ५२५ ) ने 'विष्णुधर्मसूत्र' में वर्णित पिता की वरीयता पर इस प्रकार प्रकाश डाला है -- यदि माता पतिव्रता है और पिता साधारण व्यक्ति है तो माता को ही वरीयता मिलनी चाहिये, किन्तु यदि पिता माता की अपेक्षा अधिक सुयोग्य हो तो उसे ही वरीयता प्राप्त होनी चाहिये । 'व्यवहारप्रकाश' के इस तर्क का किसी ने समर्थन नहीं किया है। माता एवं पिता की वरीयता के विषय में विभिन्न मतों के रहने के कारण न्यायालयों ने विचित्र निर्णय दिये हैं। केवल बम्बई ( पुराने प्रकार के प्रान्त में, क्योंकि अब बम्बई प्रान्त के कई भाग इधर-उधर के अन्य प्रान्तों में सम्मिलित कर दिये गये हैं, स्वयं गुजरात एक पृथक् प्रान्त बन गया है) प्रान्त के गुजराती भाग में एवं बम्बई द्वीप तथा उत्तरी कोंकण में पिता को वरीयता प्राप्त है ( क्योंकि यहाँ 'व्यवहारमयूख' को अत्यधिक प्रामाणिकता प्राप्त है), किन्तु बम्बई प्रान्त के अन्य भागों में माता को ही उत्तराधिकार के लिए वरीयता प्राप्त है। तो भी माता को जो पुत्र से उत्तराधिकार प्राप्त होता है वह विधवा के उत्तराधिकार की भाँति ही सीमित होता है। पिता को जो उत्तराधिकार प्राप्त होता है वह नित्य होता है, अर्थात् वह उसका विघटन भी कर सकता है । 'माता' शब्द में 'पालिका' का अर्थ भी सन्निहित है, अर्थात् यदि दत्तक पुत्र बिना पुत्र, विधवा पत्नी, पुत्री या दौहित्र छोड़े मर जाय तो पालिका ( गोद लेनेवाली) को उसका धन मिल जाता है । द्वयामुष्यायण दत्तक जब मर जाता है और उसके पीछे केवल उसकी जननी एवं पालिका बच रहती है तो दोनों माताएँ सह उतराधिकारिणी हो जाती हैं । यह व्यवस्था दी गयी है कि यदि व्यामुष्यायण पुत्र से उत्तराधिकार पाने के उपरान्त पालिका पुनः कोई दत्तक करती है तो नया दत्तक पुत्र उसके आधे अंश को ( जो उसे मृत द्वयामुष्यायण पुत्र से प्राप्त होता है) उससे नहीं माँग सकता । मिताक्षरा ने 'माता' शब्द में विमाता को नहीं रखा है । बम्बई को छोड़कर कहीं भी विमाता सपत्नी के पुत्र का उत्तराधिकार नहीं पाती, क्योंकि नियमानुसार स्त्रियों को तो रिक्थाधिकार मिलता नहीं, केवल वहीं पर छूट है जहाँ स्मृति वचन स्पष्ट हैं, अन्यथा सम्पति विमाता के रहने पर भी उसको न जाकर राजा की हो जाती है, किन्तु उसे भरण (जीवन-वृत्ति) मिलता है । बम्बई में वह गोत्रज सपिण्ड विधवा के समान रिक्थाधिकार पाती है, किन्तु गोत्रज सपिण्डों में उसे बहुत दूर का स्थान प्राप्त है । यदि विधवा पुनर्विवाह कर ले और उसका वह पुत्र, जो प्रथम पति से उत्पन्न हुआ है, बिना सन्तान, विधवा पत्नी, पुत्री या दौहित्र के मर जाय तो उसकी पुनर्विवाहित माता को उसका उत्तरा २४. पिता स्वपत्नीपुत्रेष्वपि साधारणः । माता तु न साधारणीति प्रत्यासत्यतिशयोऽस्तीति विप्रलम्भसदृशमिदं न हि जननोजन कयोर्जन्यं प्रति सन्निकर्षतारतम्यमस्ति । स्मृतिच० (२, पृ० २६७ ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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