Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 2
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 431
________________ ६६० धर्मशास्त्र का इतिहास अब हम महाभारत के काल के विषय में उसमें प्राप्त ज्योतिष-संकेतों के आधार पर विवेचना उपस्थित करेंगे। महाभारत युद्ध एवं कलियुग के कालों के विषय में बहुत-से ग्रंथ एवं निबन्ध आदि प्रकाशित हुए हैं। दो-एक की चर्चा यहाँ अपेक्षित है। श्री शंकर बालकृष्ण दीक्षित ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ 'भारतीय ज्योतिष शास्त्रा चा इतिहास (द्वितीय संस्करण, सन १६३१) में इस विषय में लिखा है (पृ. १०७-१२७)। और देखिये चि० वि० वैद्य (महाभारत, एक समीक्षा, १६०४, पृ० ५५-७८, अनुक्रमणिका, टिप्पणी ५) । श्रीवैद्य ने महाभारत युद्ध के काल के विषय में परम्परा के आधार पर ई० पू० ३१०१ को ठीक माना है। श्री एन० जगन्नाथ राव ने अपनी पुस्तक 'महाभारत का युग' (अंग्रेजी, १६३१) में लिखा है कि मेगस्थनीज द्वारा उल्लिखित 'सैण्ड्राकोट्टस' मौर्य-चन्द्रगुप्त नहीं है, प्रत्युत वह गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त है। उनके कथन से इस प्रकार चन्द्रगुप्त मौर्य का समय लगभग ई० पू० १५३५ होगा। उन्होंने बृहत्संहिता के शककाल को पारसी सम्राट् साइरस का काल माना है जो लगभग ई० पू० ५५० माना जाता है। इस प्रकार उनके मतानुसार महाभारत युद्ध ई० पू० ३१३६ ई० में हुआ। श्री राव का ग्रंथ गम्भीरता से नहीं लिखा गया, इसकी उक्तियाँ छिछली हैं। श्री के०जी० शंकर ने भारतीय वंशावली-संबंधित कुछ समस्याओं के विषय में विस्तार के साथ एक मनोरंजक निबंध उपस्थित किया है (इन एनल्स ऑव दि बी० ओ० आर० इन्स्टीट्यूट, पूना, जिल्द १२, १० ३०१-३६१) जिसमें उन्होंने महाभारत युद्ध की ई० पू० ११६८ ई० तिथि को मान्यता दी है। 'केसरी' (पूना) के सम्पादक श्री जे० एस० करन्दीकर ने अपने कुछ लेखों (मराठी में) द्वारा महाभारत एवं पुराणों के ज्योतिष-आँकड़ों की जांच की है और यह निष्कर्ष निकाला है कि महाभारत का युद्ध ई० पू० १६३१ ई० में किया गया था। यद्यपि मैं इनकी बहुत-सी उक्तियों से सहमत नहीं हूँ, तथापि विद्वानों द्वारा उपस्थापित कतिपय तिथियों में जो दो युक्तिसंगत अथवा उत्तम तिथियाँ समझी जा सकती हैं, उनके साथ इनकी प्रतिपादित तिथि को रखने में कोई संकोच नहीं करता। प्रो० पी. सी० सेनगुप्त ने एक निबंध (जे. बी० ए० एस०, १६३७, जिल्द ३, पृ० १०१-११६) में यह दर्शाया है कि महाभारत युद्ध लगभग २४४६ में हुआ। यह भी एक सम्भावित तिथि है जिसके पीछे बृहत्संहिता की परम्परा का प्रमाण है (युधिष्ठिरकाल के उपरान्त शककाल २५२६ वर्षों के उपरान्त आता है)। और देखिये प्रो० सेनगप्त का निबंध (वही सन् १६३८, जिल्द ४, पृ० ३६३-४१३) । डॉ० के० एल० दफ्तरी ने महाभारत की सभी ज्योतिष-सम्बन्धी उक्तियों को बड़े परिश्रम के साथ जांचकर निष्कर्ष निकाला है कि महाभारत युद्ध ई० पू० ११६७ ई० में हुआ (नागपुरविश्वविद्यालय व्याख्यानमाला, सन् १६४२)। किन्तु, हम उनके निष्कर्ष को स्वीकार करने में असमर्थ हैं। प्रो. सेनगुप्त ने भी उनकी उक्तियां अमान्य ठहरायी हैं (जे० ए० एस० बी०, १६४३, जिल्द ६, पृ० २२१-२२८) । प्रो० के० बी० अभयंकर ने अपने निबंध (बी० ओ० आर० आई०, १६४४, जिल्द २५, पृ.० ११६-१३६) में बहुमत के सिद्धान्त का समर्थन किया है और बहुत छान-बीन के उपरान्त ई० पू० ३१०१ ई० को ठीक माना है । लगता है, उन्होंने डॉ० दफ्तरी एवं प्रो० सेनगुप्त की आलोचनाओं का अध्ययन नहीं किया था। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि महाभारत की तिथि को ज्योतिष के आंकड़ों से सिद्ध करना सरल नहीं है, क्योंकि उसी विधि से अन्य विद्वान् ई० पू० ११६३ एवं ई० पू० ३१०१ के बीच में ही झूलते दृष्टिगोचर होते हैं और किसी प्रकार इन तिथियों के आगे नहीं बढ़ पाते। इसके कई कारण हैं । पहली बात यह है कि महाभारत में वर्णित बहुत से संकेत अथवा संज्ञाएं सुसंगत नहीं हैं, दूसरी बात यह है कि बहुत-से विद्वानों ने इस महाकाव्य का भारतयुद्ध के उपरान्त केवल तीन वर्षों में, अर्थात् बहुत अल्प अवधि में लिखा जाना माना है (आदि पर्व, अ० ६२१५२ =५६।३२) । तीसरी बात यह है कि युद्ध के समय की तिथिपंजिका (पंचांग) के विषय में हम अभी अंधकार में हैं। बहुत-से विद्वानों का ऐसा कहना है कि उस समय की व्यवहृत पंजिका www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International

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