Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 2
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 427
________________ ६८६ धर्मशास्त्र का इतिहास होगी, जाति-सम्बन्धी कर्तव्यों एवं सुविधाओं में उलट-फेर होगा और शारीरिक एवं नैतिक शक्तियों का हास हो जायगा । . पुराणों के समय के विषय में मतैक्य न होने के कारण युगों से सम्बन्धित सिद्धान्त के पूर्ण विकासकाल के विषय में कहना कठिन है, किन्तु इतना निश्चय के साथ कहा जा सकता है कि चौथी शताब्दी ई० के आते-आते यह सिद्धान्त भली-भाँति विकसित हो चुका था। आर्यभट ( कालक्रियापाद १०) ने कहा है कि जब महायुग के (कृत, नेता एव द्वापर ) तीन पाद और ३६०० वर्षं व्यतीत हो चुके थे तो वे २३ वर्ष के थे। आज की गणना के अनुसार वे सन् ४६६ ई० में २३ वर्ष के थे, स्पष्ट है, उनका जन्म ४७६ ई० में हुआ था । वराहमिहिर ( ५०५ से ५८७ ई०) ने अपनी पुस्तक पंच सिद्धान्तिका में बहुत-से ज्योतिष सिद्धान्तों के आँकड़ों का निष्कर्षं दिया है, जिसमें रोमक सिद्धान्त भी सम्मिलित है, जिसके विषय में ब्रह्मगुप्त का कथन है कि वह स्मृतियों के बाहर की वस्तु है, क्योंकि इसने ( रोमक सिद्धान्त ने ) युगों, मन्वन्तरों एवं कल्पों को, जिन्हें स्मृतियों ने कालगणना में उपयोगी माना है, छोड़ दिया है। रघुवंश ( १५-६६ ) में कालिदास ने धर्म को लेता में केवल तीन पैरवाला कहा है। यह उस समय की बात है जब राम ने इस संसार से बिदा होने के लिए विचार किया था । आज का कोई भी विद्वान कालिदास को पाँचवीं शताब्दी के उपरान्त का नहीं बता सकता । अतः युग-सम्बन्धी सिद्धांत ४०० ई० से पहले ही पूर्णता को प्राप्त हो चुका होगा। डॉ० का० प्र० जायसवाल का कथन है कि संहिता वाले युगपुराण का अध्याय लगभग ५० ई० पू० सन् में प्रणीत हुआ था । सम्भवतः उनका यह विचार ठीक है । आजकल कलिवर्ष ५०६१ ( बीता हुआ ) १६६० ई० या शक संवत १८८२ या विक्रम संवत् २०१६ के बराबर है (यह हिन्दी अनुवाद सन् १६६० में किया गया है) । किन्तु कलियुग के आरम्भ की तिथि के विषय में कई मत हैं । उपर्युक्त गणना के विषय में निश्चित तिथि ई० पू० ३१०२ की १८वीं फरवरी का शुक्रवार है। एक मत यह है कि कलियुग का आरम्भ महाभारत की लड़ाई के समय से हुआ ( आदिपर्व २।१३, शल्य० ६०/२५ एवं वन० १४६ । ३८)। यह मत ऐहोल अभिलेख में उल्लिखित है जहां यह कहा गया है कि कलियुग का आरम्भ महाभारत की लड़ाई से हुआ और ३७३५ वर्ष ( बीते हुए) शक संवत् ५५६ के बराबर हैं (ए० ३०, जिल्द १, पृ० १, ७) । आर्यभट को यह गणना ज्ञात थी, क्योंकि उन्होंने कहा है कि जब वे २३ वर्ष के थे तो महायुग के तीन भाग एवं ३६०० वर्ष व्यतीत हो चुके थे (कालक्रियापाद, १० ) । पुराणों में जो मत प्रकाशित है वह यह है कि जब कृष्ण ने अपना अवतार समाप्त कर स्वर्गारोहण किया तो कलियुग का आरम्भ हुआ । १३ इस मत से कलियुग का आरम्भ प्रथम मत के कई वर्ष उपरान्त माना जायगा । देखिए मौसल पर्व (अ० १।१३ एवं २।२० ) जहाँ कृष्ण के दिवंगत होने के पूर्व के ३६ वर्ष की ओर संकेत किया गया है । युगपुराण ने द्रौपदी की मृत्यु के दिन से कलियुग का प्रारम्भ माना है (जे० बी० ओ० आर० एस०, जिल्द १४, पृ० ४०० ) । वराहमिहिर १३ का एक पृथक मत है। उनका कहना है कि जब युधिष्ठिर राज्य कर रहे थे तो चित्रशिखण्डी नक्षत्र मघा में थे । यह काल शक संवत् में २५२६ वर्ष जोड़कर उपस्थित किया गया । इससे युधिष्ठिर कलियुग के ६५३ वें वर्ष में माने जायेंगे (आज की गणना के अनुसार), न कि द्वापर में या कलियुग के १२. यस्मिन् कृष्णो दिवं यातस्तस्मिन्न ेव तदा दिने । प्रतिपन्नः कलियुगस्तस्य संज्ञां निबोधतः ॥ वायु० (६६ । ४२८-४२६ ) ; ब्रह्माण्ड ० (२|७४१२४१) । १३. आसन् मधासु मुनयः शासति पृथ्वीं युधिष्ठिरे नृपतौ । षद्विकपञ्चद्वियुतः शककालस्तस्य बृहत्संहिता (१३/३ ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only राज्ञश्च ॥ www.jainelibrary.org

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