Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 2
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 422
________________ अध्याय ३४ कलिवर्य (कलियुग में वजित कृत्य) हमने गत अध्याय में इसकी चर्चा कर दी है कि कतिपय स्मृतिवचनों के विरोधात्मक स्वरूपों के समाधान की विधियों में एक विधि अथवा एक स्थापना ऐसी थी कि उन वचनों में कुछ युगान्तर (अतीत युग) से संबंधित कहे गये थे । उदाहरणार्थ, जब हारीत ने स्त्रियों के लिए उपनयन-संस्कार की व्यवस्था दी तो 'स्मृतिचन्द्रिका' (१, पृ० २४) एवं 'पराशरमाधधीय (१, २, पृ० ८३) ने कहा कि वह वचन कल्पान्तर अर्थात् अन्य प्राचीन युग का द्योतक है। इस ग्रंथ के द्वितीय खंड में कतिपय स्थानों पर कलियुग में वजित बहुत से कृत्यों की ओर संकेत कर दिया गया है। इस संबंध में एक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जब 'पराशरस्मृति' (१।२४) ने स्पष्ट रूप से कलियुग के धर्मों की व्यवस्था कर दी थी, तब भी 'आदित्यपुराण' (जिसे १२वीं शताब्दी एवं पश्चात्काल के लेखकों ने बहुधा उद्धृत किया है) ने निम्न बातें (जो पराशर द्वारा कलियुग के लिए व्यवस्थित ठहरायी गयी थी, ४।३० एवं ११।२२) कलियुग में वर्जित मानी हैं—विधवाविवाह (पराशरस्मृति ४।३०), ज्ञानी एवं चरित्रवान् ब्राह्मणों के लिए जन्म-मरण-सम्बन्धी अशुद्धता की अवधि में भिन्नता (पराशर० ३।५-६) एवं शूद्रों की पाँच कोटियों के यहाँ भोजन करने के लिए ब्राह्मण को अनुमति (पराशर० ११।२१) ।' अतः युग सम्बन्धी सिद्धान्त के उद्भव एवं विकास तथा कलिवर्ण्य के विषय में छानबीन करना आवश्यक है। ___ महाभारत (शान्ति० ५६), मनु (१।८१), नारद (१।१-२), बृहस्पति एवं पुराणों के अध्ययन से यह प्रकट होता है कि उनके कथनानुसार आदिकाल में आदर्श समाज की स्थापना थी, जो क्रमशः पश्चात्कालीन युगों में अवनति को प्राप्त हो गयी और मानव की नैतिकताओं, स्वास्थ्य एवं जीवन-विस्तार में क्रमशः ह्रास दिखायी देने लगा। किन्तु उन्होंने इस बात में भी विश्वास रखा कि इस प्रकार की अधोगति सुदूर भविष्य में नैतिक विशिष्टता के कारण समाप्तसी हो जायगी । दुःख की बात यह है कि सभी उपस्थित ग्रंथों में यही बात प्रकट की गयी है कि उनका युग पापयुम है। किसी भी ग्रंथ ने यह नहीं कहा कि विशिष्ट सुन्दर-युग निकट भविष्य में प्रकट होनेवाला है। वर्धमान नैतिक अधःपतन वाले सिद्धान्त का मूल ऋग्वेद में भी मिलता है । यम और यमी के प्रसिद्ध उपाज्यान में यम ने एक जगह आक्रोश किया है (१०।१०।१०)-वे युग अभी आनेवाले ही हैं जब भगिनी (बहिन) अपने १. पराशरस्मृति (४।३०) के कुछ मुद्रित संस्करणों में आया है--नष्टे मृते प्रवजिते क्लीवे च पतिते पतो। पंचस्वापत्सु नारीणां पतिरन्यो न विद्यते ॥ जिसे पराशरमाधवीय (२।१, पृ०५३) ने त्रुटिपूर्ण माना है और कहा है कि कट्टर लोगों ने ही यह अनर्थ किया है । माधव ने 'पतिरन्यो न विद्यते' के स्थान पर 'पतिरन्यो विधीयते' को शुद्ध माना है और कहा है-'अयं च पुनरुद्धाहो युगान्तरविषयः।' पराशरस्मृति का यह श्लोक नारद (स्त्रीपुंसप्रकरण ६७) में मी पाया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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