Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 2
Author(s): Pandurang V Kane
Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou

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Page 383
________________ धर्मशास्त्र का इतिहास आधुनिक काल के स्त्रीधन सम्बन्धी विवादों की चर्चा करना यहाँ सम्भव नहीं है। प्रिवी कौंसिल ने बम्बई को छोड़कर अन्य प्रान्तों के लिए 'मिताक्षरा' की स्त्रीधन- सम्बन्धी व्याख्या ठुकरा दी है, अर्थात् उत्तराधिकार एवं विभाजन से प्राप्त धन को स्त्रीधन नहीं माना गया है। कोई स्त्री किसी पुरुष से, यथा पति, पिता या पुत्र से उत्तराधिकार पा सकती है, अथवा वह किसी स्त्री से, यथा माता, पुत्री आदि से भी उत्तराधिकार पा सकती है । सम्पति के इन प्रकारों को 'मिताक्षरा' ने स्त्रीधन के अन्तर्गत रखा है, किन्तु प्रिवी कौंसिल ने इस मत को नहीं माना । कात्यायन (६०३) ने घोषित किया है- "किसी अवसर पर पहनने के लिए या किसी शर्त पर जो गया हो या पिता, भाई या पति द्वारा छल से जो कुछ दिया गया हो, वह स्त्रीधन नहीं है । " 'कुछ दिया ६४२ स्त्रीधन पर अधिकार - स्त्रीधन क्या है और उस पर स्त्री का क्या अधिकार है, यह निम्न तीन बातों पर निर्भर है; सम्पत्ति प्राप्त करने का उद्गम, प्राप्ति के समय उसकी स्थिति ( वह कुमारी है या अविवाहित है, सधवा है या विधवा) तथा वह सम्प्रदाय जिसके अनुसार उस पर स्मृति-शासन होता है। इस विषय में कात्यायन एवं नारद के वचन प्रमाण हैं । कात्यायन ( ६०५ ७, ६११) का कथन है- "सौदायिक धन की प्राप्ति पर घोषित किया गया है कि स्त्रियाँ उस पर स्वतंत्र अधिकार रखती है, क्योंकि वह उनके सम्बन्धियों द्वारा इसलिए दिया गया है कि वे दुर्दशा को न प्राप्त हो सकें। ऐसा घोषित है कि विक्रय या दान में सौदायिक सम्पति पर स्त्रियों का पूर्ण अधिकार है, इतना ही नहीं, सौदायिक अचल सम्पत्ति पर भी उनका अधिकार है। विधवा हो जाने पर वे पति द्वारा दी गयी चल भेंटों को मनोनुकूल खर्च कर सकती हैं, किन्तु उन्हें जीवित रहते हुए उसकी रक्षा करनी चाहिये या वे कुल के लिए व्यय कर सकती हैं । किन्तु पति या पुत्र और पिता या भाइयों को किसी स्त्री के स्त्रीधन को व्यय करने या विघटित करने का अधिकार नहीं है।" इससे प्रकट है कि कुमारी हिन्दू स्त्री सभी प्रकार के स्त्रीधन का उपभोग मनोनुकूल कर सकती है, विधवा स्त्री पति द्वारा प्रदत्त अचल सम्पत्ति को छोड़कर सभी प्रकार के स्त्रीधन का लेन-देन कर सकती है, किन्तु सधवा स्त्री केवल सौदायिक ( पति को छोड़ कर अन्य लोगों से प्राप्त दान) को ही मनोनुकूल स्वेच्छा से व्यय कर सकती है। आजकल सौदायिक एवं असौदायिक का अंतर ज्यों-का-त्यों सम्मानाई है किन्तु पति द्वारा दिये गये सौदायिक एवं अन्य द्वारा दिये गये सौदायिक के अंतर को मान्यता नहीं मिली है। पति के रहते आजकल स्त्री का अधिकार स्त्रीधन की विशेषता पर निर्भर है । यदि वह सौदायिक है तो उसे स्त्री विक्रय, दान या स्वेच्छा से बिना पति की सहमति के विघटित कर सकती है, किन्तु शिल्प आदि से प्राप्त धन तथा अन्य लोगों से प्राप्त दान भेट आदि स्त्रीधन के अन्य प्रकार बिना पति की आज्ञा के वह नहीं दे सकती । दायभाग ( ४।१।२० ) के मत से शिल्पादि से प्राप्त धन या अन्य लोगों से प्राप्त भेंट- दान पति के जीवित रहते पति के अधिकार में रहते हैं और पति उनका उपभोग विपत्ति में न रहने पर भी कर सकता है। ऐसे धन पर पति के अतिरिक्त किसी अन्य का अधिकार नहीं होता। पति की मुत्यु के उपरान्त स्त्री असौदायिक स्त्रीधन को स्वेच्छा से व्यय कर सकती है। कुछ परिस्थितियों में पति को सौदायिक स्त्रीधन पर भी अधिकार प्राप्त है । याज्ञ ० (२।१४७) का कथन है - - ' दुर्भिक्ष, धर्मकार्य, व्याधि में या बन्दी (ऋणदाता, राजा या शत्रु द्वारा) बनाये जाने पर पति यदि स्त्रीधन का व्यय करे तो उसे लौटाने के लिए उसे बाध्य नहीं किया जा सकता ।" यही बात कात्यायन (६१४ ) ने भी कही है। कौटिल्य ( ३।२ ) ने याज्ञवल्क्य के समान ही व्यवस्था दी है जौर इतना जोड़ दिया है कि स्त्री अपनी जीविका के लिए या अपने पुत्र या पुत्रबधू के जीविका साधन में व्यय कर सकती है या जब पति कुछ व्यवस्था किये बिना ही बाहर चला गया हो तो वह वैसा कर सकती है। कौटिल्य ( ३२, पृ० १५२ ) ने कुछ और बातें दी हैं, जो यह सिद्ध करती हैं कि उनकी उक्तियाँ स्त्रीधन के ऊपर पति के अधिकार की प्रारम्भिक अवस्था की द्योतक हैं। पश्चात्कालीन स्मृतियों ने पति एवं पत्नी की सम्पत्तियों को पृथक्-पृथक् माना है। पति के ऋण पत्नी को नहीं बांध सकते और न पत्नी के ऋणपति को बांध सकते हैं, ऐसा एक सामान्य नियम है ( याज्ञ० २।४६ एवं विष्णु० ६।३१ - ३२ ) । कुछ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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