Book Title: Dharmopadesh Shloka
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 7
________________ कर इन विशिष्ट व्यक्तियों की कथाएँ भी संक्षेप में परिशिष्ट में सम्मिलित कर लेते तब यह कृति और अधिक उपयोगी हो जाती। रचनाकार ने अनुष्टुप् छन्द में दान, शील, तप, भक्ति, क्षमा, क्रोध, तृष्णा, अहंकार आदि अनेक गुणावगुणों पर काव्य-रचना कर आत्मविकास की प्रेरणा की है। यह छोटा छन्द याद करने में भी आसान है । मैं इस रम्य रचना को सुन्दर रीति से प्रकाशित करने हेतु 'प्रकाशन समिति' को हार्दिक बधाई देता हूँ तथा इसको सर्वजनग्राह्य बनाने वाले प्राचार्यदेवेश श्रीमद् विजय सुशोल सूरि जी के प्रति अपना आभार व्यक्त करता हूँ। प्राचार्यश्री अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी हैं और इस वृद्धावस्था में भी साहित्यसृजन में उनकी रुचि और तल्लीनता सर्वजनस्तुत्य है। मैं प्राचार्यश्री के स्वस्थ और दीर्घजीवन की कामना करता हूँ और अपेक्षा करता हूँ कि वे इसी तरह माँ सरस्वती के भण्डार को समृद्ध करते रहें । जोधपुर २ जून, १९६३ विनीत डॉ. चेतनप्रकाश पाटनी

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