Book Title: Dharmopadesh Shloka
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ प्रसन्नता का विषय है कि ऐसी ही एक रम्यरचना का प्रकाशन सुशील साहित्य प्रकाशन समिति, जोधपुर 'धर्मोपदेशश्लोकाः' शीर्षक से कर रही है जो 'पूर्वमुनिपति' विरचित है। आज इन रचनाकार के सम्बन्ध में और इस रचना के लेखनकाल के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है, अन्यथा सम्पादक मुनिश्री इस सन्दर्भ में अवश्य कलम चलाते, अस्तु । १२६ श्लोकों की इस रचना को सर्वजनोपयोगी बनाने के लिए पूज्य आचार्यश्री विजय सुशील सूरि जी ने पर्याप्त श्रम किया है। वे स्वयं संस्कृत के सिद्धहस्त कवि और गद्यकार हैं। उन्होंने प्रत्येक श्लोक का पदच्छेद, अन्वय, शब्दार्थ, श्लोकार्थ (हिन्दी) और संस्कृत गद्य में अनुवाद लिखकर रचना को सर्वजनग्राह्य बना दिया है। रुचिशील जिज्ञासु इसका स्वाध्याय कर बहुत लाभान्वित होंगे। प्रवचनकारों व उपदेशकों के लिए तो यह कृति बहुत उपयोगी है, एक श्लोक को माधार बनाकर गुणविशिष्ट महापुरुष के चरित्र का आख्यान कर प्रवचनकार अपनी बात को श्रोताओं के हृदय में आसानी से प्रवेश करा सकता है। रचनाकार ने प्रत्येक श्लोक में एक गुण/भाव को विषय बनाया है और उसमें प्रसिद्ध विशिष्ट जन का उल्लेख भी किया है। अच्छा होता, सम्पादक मुनिश्री थोड़ा श्रम


Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 144