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उ०-हाँ, साङ्ख्य, योग, विदान्त आदि दर्शनों में
आत्मा को चेतनरूप या मचिदानन्दरूप कहा है सो निश्चय नय .. की अपेक्षा से, और न्याय, वैशेषिक आदि दर्शनों में सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष आदि आत्मा के लक्षण बतलाये हैं सो व्यवहार नय की अपेक्षा से ।
S “पुरुपस्तु पुष्करपलाश निलेपः किन्तु चेतनः।"
[मकावलि पृ० ३६ ।] अर्थात-पात्मा कमलपत्र के समान निलेप किन्तु चतन है ।
+ 'तस्माच्च सत्वाचारिण। मनोऽत्यन्तविधर्मा विशुद्धोऽन्याश्चितिमात्ररूपः पुरुषः" [पातञ्जलसूत्र, पाद ३, सूत्र ३५ भाष्य ।
अर्थात्-पुरुप -आत्मा-चि-मात्ररूप है और परिणामा चित्वसत्व स अत्यन्त विलक्षण तथा विशुद्ध है ।
+ "विज्ञानमानन्दं ब्रह्म" बृहदारण्यक ३ । ६ । २८] अर्थात-ब्रह्म -यात्मा-आनन्द तथा शानरूप है । •. “इच्छाद्वेषप्रयन्नसुखदुःखज्ञानान्यात्मना लिङगमिति। "
न्यायदर्शन ।। 3 । १०] अर्थात्-१ इच्छा, २ द्वेष, ३ प्रयत्न, ४ मुख, ५ दुःख और ६ ज्ञान, ये अत्मा के लक्षण हैं। '“निश्चयमिह भूतार्थ, व्यवहारं वर्णयन्त्यभूतार्थम् । "
[पुरुषार्थसिध्युपाय श्लोक ५।] अर्थात-तात्त्विक दृष्टि को निश्चय-दृष्टि और उपचार-दृष्टि को व्यवहार दृष्टि कहते हैं।