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(१७) प्र० - भ्रान्तिमूलक क्यों ?
उ०- इस लिये कि ज्ञान, सुख, दुःख, हर्ष, शोक, आदि वृत्तियाँ, जो मन से सम्बन्ध रखती हैं; वे स्थूल या सूक्ष्म भौतिक वस्तुओं के आलम्बन से होती हैं, भौतिक वस्तुएँ उन वृत्तियों के होने में साधनमात्र अर्थात् निमित्तकारण हैं, उपादानकार नहीं । उन का उपादानकारण आत्मा तत्त्व अलग ही है । इस लिये भौतिक वस्तुओं को उक्त वृत्तियों का उपादानकारण मानना भ्रान्ति है ।
(१८) म०- ऐसा क्यों माना जाय ?
उ०- ऐसा न मानने में अनेक दीप आते हैं। जैसे सुख, दुःख, राज-एक भाव, छोटी-बड़ी प्रायु, सत्कार - तिरस्कार, ज्ञान अज्ञान यादि अनेक विरुद्ध भाव एक ही मातापिता की दो सन्तानों में पाये जाते हैं, सो जीव को स्वतन्त्र तत्व बिना माने किसी तरह असन्दिग्ध रीति से घट नहीं सकता
+ जो कार्य से भिन्न हो कर उसका कारण बनता है वह निमित्तकारण
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कहलाता है | जैसे कपड़े का निमित्तकारण पुतलीघर |
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8 जो स्वयं ही कार्यरूप में परिणत होता है वह उस कार्य का उपादानकारण कहलाता है । जैसे कपड़े का उपादानकारण सृत |