Book Title: Devnar Ka Katalkhana Bharat Ke Lie Kalank Roop
Author(s): Padmasagarsuri, Narayan Sangani
Publisher: Devnagar Katalkhana Virodhi Jivdaya Committee
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है। बहुत दुःख और शोककी बात तो यह है, कि स्वयं अपनी केद्रीय सरकार भी खाराक और पौष्टिक मोजन की समस्या के हलके लिए, लेागों की आदतोंमे परिवर्तन कराकर मांसाहार को प्रोत्साहन दे रही है। मनुष्यका सहज स्वाभाविक भोजन मांस नहीं है। यदि वह स्वभावसे मांसाहारी होता तो उसकी शरीर रचना भी मांसाहारी पशुओंकी तरह होती, परन्तु वैसा नहीं है।
बालक शिक्षा दीये बिना मांस नहीं खाता है क्योंकि उसको म्वभाव से ही उसमें प्रेम नहीं है। जबकी बिल्लीका बच्चा चूहेको देखकर तुरत उसे मारने के लिए दौड पडता हे, जब बालक ऐसा नहीं करता, क्योंकि उसका प्रेम स्वभाव से फलाहार की तरफ रहता है। जो लोग मांसाहारी नहीं होते हैं, वे लोग मांस देखना भी पसंद नहीं करते, क्योंकि उसे देखकर उन्हे अरुचि पदा होती है। सभ्य देशामे पशुवधके लिए एकांतमे बंद दिवालांवाला स्थान नियत होता है, और मांस आदिके दुकानों के लिए भी अलग व्यवस्था रहती है। उसके बिभत्स दृश्योंका गुप्त रखा जाता है। उसके विभत्स दृश्योंकी कल्पना मात्र मांस से घृणा कराने के लिए यथेष्ठ है।
मांस स्वयं स्वादिष्ट नहीं होता !
मांस खानेमें खूब स्वादिष्ट बताया जाता है, किंतु मनुष्य प्रायः ज्यादातर वनस्पति खानेवाले जीवोंका ही मांस खाता है। उसमें वनस्पतिके तत्त्वो से स्वादिष्ट बनाने की प्रक्रिया नहीं होती तो वह स्वादिष्ट नहीं बनता, मांसाहारी मनुष्योंका सिंह, वाघ, कुत्ता आदि के मांससे क्यों स्वाभाविक अरुचि व घृणा पैदा होती है ? इसलिए कि वे स्वयं स्वभावतः शाकाहारी हैं। और शाकाहार के तत्त्वां के बिना मांस आन ददाई नही होता।
आज चारों औरसे शुद्ध घी, दूध-नहीं मिलने की आवाज आती है। इसका कारण यही है-कि-प्रतिदिन हजारों की संख्यामें
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