Book Title: Devnar Ka Katalkhana Bharat Ke Lie Kalank Roop
Author(s): Padmasagarsuri, Narayan Sangani
Publisher: Devnagar Katalkhana Virodhi Jivdaya Committee
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संसारमें तो अधार्मिक ही ज्यादा मिलेंगे !
संसार में तो हमेशा से ही बहुमत वालेका अधर्म और अकर्तव्य की और प्रवृति रही है, और है । तो क्या उनकी बहुमती देखकर उन्हे वैसेही रहने दियाजाय ? नहीं, सज्जन और संत पुरुषांका यही तो कार्य है कि उनका सत् प्रवृत्ति की और ढालें, उनके जीवन के विकाश में पथ प्रदर्शक बनें । “सान्धोति स्वपर हितानि कार्याणि इति साधु" अपना और दूसरोंका दोनो के हित के लिए जो कार्य करें वही साधु हैं। अगर संत पुरुष ही उन्हे उपेक्षित दृष्टि से देखेंगे, तब तो वे स्वयं ही दोष पात्र बन जायेगे।
इस प्रकार उपरोक्त भ्रमपूर्ण भाषणों व लेखां की और ध्यान न देकर, जीव हिंसा का विरोध करें। उसके लिए चाहे कितनाही मूल्य क्यों न चुकाना पडे हमेशा तत्पर रहैं । मानसिक दुर्बलता को त्यागे, जाग्रत व सशक्त बने । खडे होजायें विरोध के लिए. परोपकार के लिए जो शरीर, घन आदि सामग्री प्राप्त हुई है, उसका सदुपयोग करें।
इस विषय में एक ऊर्दू कविने कहा है :“मरना भला है उसका, जो जीता है खुदके लिए,
और जीना भला है उसका, जो जीता है, औरों के लिए।" वही वास्तविक जीवन है जो औरों के काम आता हो। आपभी दूसरों के लिए जीना सीखें, और परोपकार रत बने ।
विश्व के सर्व धर्माने अहिंसा को मान्यता दी है !
अहिंसा धर्म का प्राण है, यह सभी घर्मा ने माना है। अहिंसा का आज व्यवहारिक पालन नहीं होने से ही तो इतनी
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