Book Title: Devnar Ka Katalkhana Bharat Ke Lie Kalank Roop
Author(s): Padmasagarsuri, Narayan Sangani
Publisher: Devnagar Katalkhana Virodhi Jivdaya Committee

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Page 37
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 2 3 5 www.kobatirth.org २७ सर्ववेद, सर्वयज्ञ, तथा सर्व एक प्राणी के दया के तुल्य में और भी लिखा है । .. तिल सर्व मात्र तु यो मासं भक्षये नरः । स याति नरक घेोरं, यावश्चंद्र दिवाकरौ ॥ महाभारत तिल और सर्पव मात्र भी अगर मांस का भक्षण करे, तो वह नर्कगामी होता है । तीर्थों का अभिषेक भी नहीं आ सकता । बागे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "> मनुष्य और पशुओं का न मार । यजुर्वेद १६-३. पशुओं की रक्षा • हे पुरुषों और नारीयों तुम दोनों यजुर्वेद. करो. " " जो मनुष्य, मानव, घोड़ा या से तृप्त होता है, जो मनुष्य जो प्रजाको दूध से वंचित राजा ऐसे मनुष्य को कठोर चाहिये । अथर्ववेद ५-३-२५. अन्य पशु पंक्षी के मांस अबध्य गौ को मारता है, रखता है, हे अग्नि ! और दंड या मृत्यू दंड देना और भी अनेक ऋषि मुनियोंने अपने आत्म कल्याण के लिए अहिंसा का पालन किया है, ऐसे बहुत से उदाहरण वेदान्त दर्शन में पाये जाते हैं। शिवी कबूतर की रक्षा के लिए अपने शरीर को डाला था । क्यों कि वह जानते थे कि " Life is to all " " सबको अपना प्राण प्यारा होता है । कसोटी के अवसर पर भी वे खरे उतरे । राजाने तो एक ही अर्पण कर dear " ऐसे बौद्ध दर्शन भगवान बुद्ध ने ग्रहस्थ अवस्थामें तीर लगे हुए हंस के प्रति दया प्रगट की थी, और दिक्षीत होने के पश्चात् उन्ही के शिष्य देवदत्त ने एक समय उनके पाँव पर एक बड़ा पथ्थर फेंका, For Private And Personal Use Only

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