Book Title: Devnar Ka Katalkhana Bharat Ke Lie Kalank Roop
Author(s): Padmasagarsuri, Narayan Sangani
Publisher: Devnagar Katalkhana Virodhi Jivdaya Committee

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Page 49
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नामक कामधेनु गाय तथा उसकी संतति रूप बछड़ा, बछी, बैल उत्पन्न कर अमृत समान दूध, दही, घी, मट्ठा तथा मनान. खिला-पिलाकर लोगों को तृप्त किया। ऐसे जीवन-प्रदाता मातापिता समान गायों तथा बैलेां को मारकर उदर में स्वाहा कर जाना इससे अधिक पशुता व कृतघ्नता और क्या हो सकती है? वेदादि शास्त्र कहते हैं कि ऐसी परम उपयोगी एवं उपकारी विश्व जननी गाय के शरीर में ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा इन्द्र, चन्द्र, सूर्यादि देवाने और महर्षियों तथा गङ्गा, यमुना, लक्ष्मी भादि ने वास किया है. अतः यह सर्व देवमयी है । गाय का इतना अद्भूत महात्म्य हैं कि उसके दर्शन, स्पर्श, सेवा, पालनपोषण, रक्षण तथा दान से मनुष्यों के पाप दग्ध हो जाते हैं और सकल मनोरथों की सिद्धि होती है। इस कारण ही साक्षात् भगवान श्री कृष्ण ने नंगे पैर वनों में ले जाकर उनको घराया भार गोवर्द्धन पर्वत उठाकर इन्द्र के कोप से उनका रक्षण किया। तथा गोपाल और गोविन्द का बिरुद धारण किया। इस कारण से महाराज नहुष गाय के दान से महषि व्यबन के अपराध से मुक्त हुए थे। इस कारण हो गायोंके हरण करनेवाले आतता. यियोंको दंड देकर नरपुङ्गव महात्मा अजुनने बारहबर्षे का पनवास स्वीकार किया था। इस कारण से महाराजा नृग, भगवान राम, भगवान श्री कृष्ण तथा युधिष्ठिर मादि महानुभाव नित्य हजारों गायों का सुपात्र ब्राह्मणों को दान दिया करते थे, और इस कारण ही शेर के पजे से मुक्त कराने के लिये महाराजा दिलीप ने अपनी देह अर्पण कर उस प्रसन्न हुई गाय के वरदान से महाराजा रघु जैसे प्रतापी पुत्र को प्राप्त किया था । गायों के विनाश की योजना का लक्षांक अब जब एसे पूज्य और परम हितकारी निदेष प्राणियों की सेवा सुश्रुषा करने के बजाय लाखों की संख्या में कतल करने For Private And Personal Use Only

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