Book Title: Devnar Ka Katalkhana Bharat Ke Lie Kalank Roop
Author(s): Padmasagarsuri, Narayan Sangani
Publisher: Devnagar Katalkhana Virodhi Jivdaya Committee

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Page 48
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ सिद्धान्त और आदेश तथा उपदेश है कि प्राणी मात्र के प्रति प्रेम और दया की भावना रखना । हिन्दू धर्म की ऐसी भव्य भावना एवं दिव्य उद्घोषणा है, कि प्राणी मात्र सुखी हो, सब जीव निरोग रहैं, सबका कल्याण हो और कोई भी जीव कभी भी दुःखी न हो । लाखों वर्षो तक तप, त्याग, समाधि, योग तथा भक्ति की साधना कर ईश्वर साक्षात्कार को प्राप्त करने वाले हमारे प्रातः स्मरणीय प्राचीन महर्षियों ने मन, वचन, कर्म से अहिंसा का इतनी सीमा तक अपने जीवन में पालन किया था कि एकान्त अरण्य में स्थित अपने आश्रमों में शेर, व्याघ्र, भेडिया, हरिण, सांप नेवला, बिडाल, मूषक आदि प्राणीगण अपने स्वाभाविक वैर तथा भय का परित्याग कर परस्पर प्रेमभाव से पक साथ में रहकर खेलते थे । ऐसी अहिंसा के उच्च आदर्श की रक्षा के लिये महाराज शिवि ने एक कबूतर के प्राण बचाने के लिये बदले में अपने शरीर का मांस काटकर दिया था । और आज कितने दुःख आश्चर्य एवं दुर्भाग्य की बात है कि ऐसी सर्वश्रेष्ठ संस्कृति को इस देश में भारत के जिम्मेवार साशकगण गायों, बैलां, भै सां आदि प्राणियों का यान्त्रिक कतलखाना खोल कर लाखों की संख्या में उनका वध कराकर भारत के और अन्य देशों के लोगों को उनका मांस खाने खिलाने के लिये तत्पर हो रहे हैं । इतना ही नहीं यदि इन सब प्राणियों का मांस सबके लिये पर्याप्त न हो सके तो पतीस करोड रुपयों के व्यय से मछली और इस करोड रुपयों के भय से मुरगी पालन से मांस की पूर्ति कराना चाहते हैं । इससे अधिक क्रूरता और आसुरीपन और क्या हो सकता है ? गाय की अगाध महिमा जगत्कर्ता जगदीश्वर ने सृष्टि रचने के साथ ही समुद्र मंथन द्वारा देवों के पोषण के लिये अमृत उत्पन्न किया और सुरभि For Private And Personal Use Only

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