Book Title: Devnar Ka Katalkhana Bharat Ke Lie Kalank Roop
Author(s): Padmasagarsuri, Narayan Sangani
Publisher: Devnagar Katalkhana Virodhi Jivdaya Committee

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Page 52
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir के नाम रहन कर दिया है। किन्तु स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिये जिस प्रजा ने अनेक दुःखों एवं यातनायें सही थी उसने अपना राज्य अर्थात् प्रजातन्त्र की स्थापना की है । प्रजा ने राजतन्त्र को चलाने के लिये जिन सभ्यो अथवा प्रतिनिधियों को घाट देकर लोकसभा और विधान सभाओं में निर्वाचित कर भेजे हैं उनका चाहिये कि वे प्रजा की इच्छानुसार प्रजा के हित के लिये कार्य करें अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो प्रजा का अधिकार है-कि वह उन प्रतिनिधियों को उनके स्थान से हटायें और उनके गुन्हाहित कार्यों के लिये उनको सजा दे। तथा उन स्थानों पर दुसरे योग्य पुरुषों को निर्वाचित करके मेजे।। भारत की प्रजा इसलिये स्वतन्त्रता और स्वराज्य चाहती है, कि करों का बोझ हलका हो अथवा न हो । शुद्ध एवं शीघ्र न्याय मिले । अपने परम्परा प्राप्त धर्म का यथेष्ट पालन कर सके और गायों बैलें। आदि पशुधन' का रक्षण हो सके । किन्तु बजाय इसके उन लोग सेवकों ने अपने अधिकार को स्थिर रखने के लिये नयी-नयी योजनाओं के नाम पर सैकडों प्रकार के नये-नये कर लाद कर, विदेशों से अरबों रुपयो के ऋण में देश का डुबा. कर, देश में जो कुछ उत्पादन हेाता है उसका विदेशी मुद्रा प्राप्ति के लाभ में विदेशों में निर्यात कर जीवन प्रदाता पशुओं का बध कराकर तथा खान-पान, औषधि आदि प्रत्येक पदार्थो में मिश्रण से लोगो का जीवन रोगिष्ट, कंगाल एवं नारकीय बना हुआ हैं । समाजवादी स्थापना के नाम पर जाति-पाँति, वर्णाश्रम व्यवस्था, सदाचार, पवित्र खान-पान, लग्न-मर्यादा तथा संस्कृति धर्म का उच्छेद होने पर लोगों का घोर अधःपतन हो रहा है। ऐसी परिस्थिति में सजना ! अब आपका यह पावन कर्तव्य है कि आप अपने हित अहित और शत्रु-मित्र को पहिचान कर अपने महान् प्रतापी पूर्वजों के मार्ग का अनुगामी बनने का निश्चय करे। For Private And Personal Use Only

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