Book Title: Devnar Ka Katalkhana Bharat Ke Lie Kalank Roop
Author(s): Padmasagarsuri, Narayan Sangani
Publisher: Devnagar Katalkhana Virodhi Jivdaya Committee

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Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अराजकता फैली हुई है। आज इस शद्वका लोग मनमानी अर्थ करके विश्वको धेाके में डाल रहे हैं । आजते। शांति के लिए अशांति, अहिंसा के लिए हिंसा, हो रही है। जब आप निम्न लिखित धर्मग्रन्थोंके सार को पढेगें, तब आप स्वयं समझ आयेगे कि पशु हिंसा करके, उन्हें दुख पहुंचा करके कभी भी हम शांति और सुखका अनुभव नहीं कर सकेगे । उनकी हाय कभी निष्फल नहीं जायेगी। आपका अगर इह लौकिक व पारलौकिक सुख प्राप्त करना है, आत्मतत्व का विशुद्धिकरण करना है तो इन धर्म वाक्यों को जीवन और आचरणमें उतारे। जैन दर्शन भगवान महावीरका पहला उपदेश यही है " सव्वे जीवा न हन्तव्वा " Live and let live " जीओ और जीने दो, प्रभु महावीर ने तो यहां तक कहा है कि “दानाण सेढ अभयप्पहाण" सर्व दानेमें श्रेष्ठ अभयदान ही है। स्वयं प्रभु के दिक्षा के पश्चात् जो उन पर घोर उपसर्ग हुए उस समय भी प्रभु अपने विचारों और अनों से चलाय मान नहीं हुए। उनका यही उपदेश था "सव्वे जीवाविच्छन्ति जीविऊ न मरिजिऊ" सर्व जीव जीनेकी इच्छा रखते है, किसी को भी मरण प्रिय नही हैं । फिर क्या अधिकार है कि हम उनकी हत्या करें। एक अंग्रेज विद्वान के श द्वो में यही बात देखिये "What you can not give life to any Creature you should not take. जब आप किसीको जीवन नहीं दे सकते तो उसे लेने का भी आपको अधिकार नहीं हैं। वेदान्त दर्शन सर्वे वेदान तत् कुयुः सर्वे यज्ञान भारत; सर्वे तीर्थाभिषेकाच, यत् कुर्यात् प्राणिनांदया। For Private And Personal Use Only

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