Book Title: Devnar Ka Katalkhana Bharat Ke Lie Kalank Roop
Author(s): Padmasagarsuri, Narayan Sangani
Publisher: Devnagar Katalkhana Virodhi Jivdaya Committee

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मानव सब खा जाता है। मांस पर जीवित रहनेवाले पशुओंका भी आहारक्षेत्र परिमित होता है। सिंह आदि ज्यादातर बनचरोकोही खाता हे। मगरमच्छ जलचर जीवकोही ज्यादातर खाता है, परन्तु सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानव-कुत्ता, बिल्ली, चूहा, सर्प, गिलेरी, मेड, बकरा, गाय, बैल, सूअर, मछली, कीडा, मकोडा सबकोउसका हानीलाम योग्यायोग्य का विचार किए विना ही पेटमें होम देता हैं । तब फिर मानव में और दानवमें अंतर ही कहां रहा? इस दृष्टिसे मानव पशुसेभी गया बीता हैं। मांसाहारके विरूद्ध डाक्टरोंका अभिप्राय । I. डाक्टरोंका कहना है-"मांसाहारीयोंको भोजन नली छोटी होती है और शाकाहारीयोंकी लंबी. फल और शाक की अपेक्षा मांस में जल्दी सडन पैदा हो जाती है. लंबी नलीमें मांस ज्यादा समय तक नहीं रह सकता है और अंदर सडन पैदा करता है, इसी लिये मांस अनेक रोगांको पदा करनेवाला अप्राकृतिक मोजन है।" 2 "मांसाहारसे बल नहींबढता है, किन्तु जो बल समझनेमें आता है वह केवल उत्तेजना मात्र है, मांसाहारी हृष्ट पुष्ट दिखाई देता है, क्षणिक पराक्रम भी दिखा सकता है, लेकिन वह स्थाई रूपसे पराक्रमका नहीं दिखा सकता।" डा. हेग. 3. " मांसाहार से आचार विचार पर तो प्रभाव पडताही है, परन्तु उसके भक्षणसे मानव-स्वास्थ्य परभी बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। मांसमें प्रोटीनकी मात्रा बहुत ज्यादा बताई जाती है, जिससे शरीर पुष्ट बनता है; एसे तो प्रोटीन शरीर की आवश्यकतानुसार शाकाहारसे उपलब्ध हो जाता है। जरूरत से ज्यादा प्रोटीन हानीकारक है।" For Private And Personal Use Only

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