Book Title: Devnar Ka Katalkhana Bharat Ke Lie Kalank Roop
Author(s): Padmasagarsuri, Narayan Sangani
Publisher: Devnagar Katalkhana Virodhi Jivdaya Committee
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बनाकर सबके दिमाग और चित्तका भी हिंसक बना डाला है। जैसा आहार होगा, वैसाही विचार आयेगा, और फिर वर्तन भी उसी प्रकारका होगा । इस प्रकारके अखाद्य भक्षणसे फिर अहिंसाकी भावना, या विश्वमैत्री व शांतिकी भावना कहांसे आयेगी, क्रूरता और जड़ता ही आयेगी।
मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी जबतक आप हिंसाजन्य वस्तुओंका त्याग नहीं करेंगे, तबतक आपमें अहिंसक विचार नहीं आ सकते, अगर आपको स्वयंविकृत से सस्कृत बनना है तो सर्वथा जीव हिंसाका त्याग करनाही पडेगा।
सरकार भी हिंसाको प्रेत्साहन दे रही है !
___ आजकी सरकार भी इसे और प्रोत्साहन दे रही है। जोकि यहांकी संस्कृति व सभ्यता के लिए कालकूट विषके तुल्य है। हमारी सरकार जनसमुदायोंके विचारोंकी उपेक्षा कर रही है। अगर लोकतत्र को जीवित रखना है, तो जनताके विचारों का पादर करना होगा । जिन्होंने उन्हे अपना मत देकर विधान सभा या लोकसभामें मेजा है। वे उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए गये हैं, न कि स्वामित्व करनेके लिए गए हैं ! बे जनताको आवाजकी अवहेलना नहीं कर सकते । ___ अनेकवार जनताके विचारों एवं विरोधेका दमन किया गया है। हिंदु कोडबिल, पब्लिक ट्रस्ट एक्ट, आदि न जाने कितने कायदे कानून धर्म और संस्कृति के विरुद्ध पास करके अपनी मनमानी करने का उदाहरण दे देया है। अब तो और भी आगे मत्स्य, मूर्गि और मांस उद्योग मादि न जाने ऐसे कितनेही उद्योग इनके दिमाग में भरे पडे हैं ! ___क्या यही लोकत त्रीपना हैं ? क्या इससे लोगोंके दिलोंको
और उनकी धर्मभावना को ठेस नहीं पहुंचती है ? अगर इसे ही हम लोकतत्रीशासन कहेंगे, तब फिर तानाशाही शासन किसे कहेंगे?
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