Book Title: Devnar Ka Katalkhana Bharat Ke Lie Kalank Roop
Author(s): Padmasagarsuri, Narayan Sangani
Publisher: Devnagar Katalkhana Virodhi Jivdaya Committee

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्या आपलोग सुखी हैं ? शांतिमें है ? वैज्ञानिक साधनांसे सजित आप अपनेको कैसा मानते है ? इस प्रश्न का उत्तर उनसे ही आपको मिल जायेगा कि विज्ञानके साधन विनाशके लिए हैं या विकाशके लिए ! इसी प्रकार आप हिंसाजन्य दवाओंका लें । उसके अंदर रहे हुए पदार्थोके नाम लेनेसे ही अपने का धृणा आती है । तब उस वस्तुका हम उपयोग कैसे कर सकते हैं ? और इन दवाओंकी प्रतिक्रिया भी खराब होती है । साथ ही यहां के जलवायू के प्रतिकूल भी हैं । बहुत से डॉक्टरेने ऐसी बहुत सी दवाओं का आविष्कार किया और उसका प्रयोग करके भी देखा, जब उसकी प्रतिक्रिया खराब नजर आई तो उसे बंद करदेना पड़ा। क्या यह किसीके जीवनके साथ खिलवाड नहीं है ? क्या उन की यह राक्षसी दिमागकी उपज नहीं हैं ? वैज्ञानिकों की खाज तो अपूर्ण है, और अपूर्ण ही रहेगी। एक ही बस्तुके लिए वे आज क्या कहते हैं, और कल उसी बस्तु के लिए वे क्या कहेंगे किसी को पता नहीं है । बादमें वैज्ञानिकोंमें मत 'क्यताका भी पूर्ण अभाव विद्यमान है । एक ही वस्तुतत्वके लिए कोई क्या कहता है, कोई क्या। मिन्न भिन्न विचार हैं। तब फिर हम उनपर ही क्यों विश्वास करें ! हम उनपर क्यों न विश्वास करें-पूर्व ऋषिमुनियों पर-जिनके विचारोंमें कभी भी अंतर नहीं आता । जिनका उपदेश यथार्थता से भराहुआ है । जिनके वचन में संदेह की गुंजाइश नहीं है । उनका छोड़कर फिर हम कयों इन अपूर्ण वैज्ञानिकांके बचनेका मान्य करें ? भौतिक विज्ञानके साथ जब तक आत्मविज्ञान नहीं सीखे गे, तबतक वैज्ञानिकों का विज्ञान अपूर्ण ही रहेगा ! पशु और मानव के हिंसाके उद्देश्यमें भी अन्तर है ! विचारे पशु दो ही कारणों से हिंसा करते हैं । एक स्व रक्षा For Private And Personal Use Only

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